कोरोना वायरस के प्रकोप ने मानव जीवन और स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। हर सुबह भयावह आँकड़ों से सामना होता है। लोग मर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, अस्पताल मरीजों से भरे हुए हैं। मनोचिकित्सकों के क्लीनिक और परामर्श केंद्रों में मरीज लगातार आते ही जा रहे हैं। आखिर परेशानी है क्या... बहुत गहरी बेचैनी, शोक, अनिद्रा और अवसाद।
इस भयानक बीमारी में जकड़े जाने का या अपने प्रियजनों के बीमार हो जाने का डर। अस्पताल में जाने का और अपने परिवार से अलग-थलग हो जाने का डर या दिनचर्या के चौपट हो जाने का डर। इन सब कारणों से मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। बहुत से लोगों की नौकरी चली गई है या उनका वेतन लगभग आधा कर दिया गया है। और कुछ ने तो अपने घनिष्ठ मित्रों या परिवार जनों को खो दिया है।
दिल्ली के मनोचिकित्सक अवधेश शर्मा का कहना है कि ‘केवल कोविड का डर ही नहीं जो लोगों को खाए जा रहा है बल्कि यह है भविष्य का डर, एक अनिश्चितता की अवस्था।’ यह परामर्श मैं सबको देता हूँ कि 'यहाँ और अब' में जिएँ। वर्तमान समय विश्व की ओर से हमारे लिए एक उपहार है। हम भूतकाल में ही जी कर अपने वर्तमान को बर्बाद कर रहे हैं। हमें अपने विचारों की शक्ति को बढ़ाना होगा। और नकारात्मक विचारों को रोकना होगा। हमारे पास मुश्किल हालातों से निपटने के लिए अपार शक्ति है।
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का कहना है, ‘यह कठिन दौर जिसमें से हम गुज़र रहे हैं, हमारी सहनशक्ति और जीतने की ताक़त को उजागर करती है। इससे हम ज़्यादा मज़बूत, दयालु और बुद्धिमान होकर उभरते हैं। यही वह समय है जब हम अपने भीतर के शौर्य को जगा सकते हैं, एक दूसरे के साथ खड़े हो सकते हैं और इस संकट से निपट सकते हैं और अध्यात्म इसमें हमारी सहायता कर सकता है।’
आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर का कहना है कि ‘आध्यात्मिक ध्यान करने से आंतरिक बल का विकास होता है। जब हम अपने चारों ओर मृत्यु देखते हैं तो हमारा मन, जिसे रोजमर्रा की चिंताएँ घेरे रखती हैं, उन से ऊपर उठने को मजबूर हो जाता है और हमारी सोच को जीवन की सच्चाई की ओर खींचता है। जीवन की सच्चाई क्या है? हमारे अंदर ऐसा कुछ है जो कभी नहीं बदलता, कभी नष्ट नहीं होता। वह अनादि है, अविनाशी है। हमें इस तत्व की ओर ध्यान देना होगा। जब हम ऐसा करेंगे तो हम अपने चारों ओर दिखाई देने वाली समस्याओं पर नियंत्रण कर पाएँगे। नहीं तो जब मन टूट जाता है तो दिल भी अंदर से टूट जाता है और तब मनुष्य कुछ भी करने लायक नहीं रहता। ध्यान, ज्ञान और जीवन की सच्चाई को जान लेने से आन्तरिक बल को प्राप्त किया जा सकता है। एक मज़बूत मन एक निर्बल शरीर को तो संभाल सकता है किंतु एक निर्बल मन एक मज़बूत शरीर को नहीं संभाल सकता।’
क्या योग और ध्यान करने से इंसान अपनी चिंता, शोक और संताप से बाहर आ सकता है?
आर्ट ऑफ़ लिविंग के शिक्षक दिनेश घोड़के का कहना है कि ‘इस कठिन समय में बहुत से लोग अध्यात्म की ओर अग्रसर हो रहे हैं। योग से शरीर स्वस्थ और दिमाग कुशाग्र हो जाता है और ध्यान से आत्मा का उत्थान होता है और आपको मुश्किल हालातों से निपटने की सामर्थ्य मिलती है।’
तल्लीना श्रीकांत, शिक्षा सलाहकार हैं। वह और उनका परिवार जिसमें दो बुजुर्ग आंटी भी हैं सबको कोरोना हो गया। उनको इस बीमारी की वजह से होने वाला सामान्य तनाव भी हुआ। वह कहती हैं, ‘हाँ मैं बहुत चिंतित और व्यथित थी और मैं बहुत कमजोर महसूस कर रही थी लेकिन मैं क्रियाशील थी और घर के कामकाज कर पा रही थी। बौद्ध धर्म की अनुयाई होने के कारण मैं जाप करती रहती थी और अपने आप को समझाती रहती थी कि मैं और मेरा परिवार स्वस्थ हो जाएँगे। सोने से पहले आंतरिक स्वास्थ्य के लिए कुछ प्रार्थना भी करती थी। अब बुरा समय बीत चुका है।’
तल्लिना को अपनी दोनों आंटियों की चिंता थी क्योंकि दोनों ही 80 वर्ष की थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन घटनाओं ने मानसिक और दिमागी शक्तियों पर बुरा प्रभाव छोड़ा है। कोविड रोगी होने के कारण उसने सकारात्मक ढंग से सोचना सीखा है।
बिंदु गुप्ता के 26 वर्ष के बेटे को कोविड हो गया। वह कहती हैं कि ‘मैं आशावान बनी रही और अपने आसपास अनेक बार सैनिटाइज करने की प्रक्रिया में लगी रही, डिस्पोजेबल बर्तन प्रयोग करती रही, अपने बेटे और परिवार के अन्य सदस्यों को सकारात्मक रहने के लिए समझाती रही और रोगी के ऑक्सीजन स्तर को नियंत्रित करती रही।’ वह और उसके पति मधुमेह के रोगी हैं इसलिए अत्यधिक सावधानी बरत रहे हैं। उनको भी चिंता होती है। वह कहती हैं, ‘घूमना फिरना कम हो गया है। मधुमेह के रोगियों के लिए पैदल चलना बहुत ज़रूरी है। यह तो बिल्कुल ही बंद हो गया है।’
हैप्पीनेस कोच सुधांशु मिश्रा कहते हैं कि शांत और प्रसन्न रहने के लिए, सोने के अच्छे नियम, नियमित व्यायाम, सामाजिक मेलजोल और मित्रों और परिवार के साथ बहुत अच्छे संबंधों पर जोर देते हैं।
वह कहते हैं कि वर्तमान समय में यह बहुत आवश्यक हो गया है कि हम मिलें-जुलें और दयालु, करुणामय और क्षमाशील होकर नकारात्मकता से बचें।
मधुरिता वर्मा का कहना है कि वह बहुत व्याकुल थी कि कहीं उनको यह बीमारी ना लग जाए। वह अपने 74 वर्षीय पति जो कि मधुमेह के रोगी हैं, के बारे में भी बहुत चिंतित थीं। वे आगे कहती हैं कि वे उचित सावधानियां बरतते हैं और ज़्यादा बाहर नहीं जाते, व्यस्त रहते रहते हैं और स्वावलंबी रहने पर जोर देते हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि सकारात्मक दृष्टिकोण, जो कुछ भी अपने पास है उसकी सराहना करना, आपको मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में बहुत सहायक होगा। इस भयानक महामारी ने हमें बहुत सबक़ सिखाए हैं इसने हमें प्रशंसा करने और कृतज्ञ रहने के मूल्य को भी सिखाया है। कहीं ना कहीं लोग चीजों के महत्व को नहीं समझते थे। वे कहते हैं अब हम फ्रिज में खाना और भंडार घर में राशन होने और सांस ले पाने, अपने पांव से चल पाने और सबसे अधिक ज़िंदा होने के लिए आभारी महसूस कर रहे हैं।