कोरोना की बूस्टर डोज़ लगाया जाए या नहीं, इसको लेकर दुनिया भर के डॉक्टरों में विवाद छिड़ गया है। कई डॉक्टर अब ये भी कह रहे हैं कि वैक्सीन की दो डोज़ से भी स्थाई नुक़सान हो रहा है। ब्रिटेन के स्वास्थ्य सुरक्षा एजेन्सी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने वाले लोगों का प्राकृतिक इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो रहा है। इसके आधार पर कुछ डॉक्टरों का कहना है कि सरकारों को वैक्सीन नीति पर फिर से विचार करना चाहिए। इस विवाद के बीच ब्रिटेन ने तीसरी डोज़ लगाने की अनुमति दे दी है।
इसराइल ने तो चौथी डोज़ लगाना शुरू कर दिया है। भारत में स्वास्थ्य कर्मियों और 60 साल से ऊपर के ऐसे लोगों को बूस्टर लगाने की अनुमति दी गयी है, जिनका इम्यून सिस्टम कमज़ोर है या फिर किसी और बीमारी से पीड़ित हैं। बूस्टर डोज़ का विरोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि प्राकृतिक इम्यून सिस्टम कमज़ोर होने से किसी भी संक्रमण से प्राकृतिक तौर पर लड़ना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी तरफ़ ओमिक्रॉन स्वरूप के तेज़ी से फैलने के कारण बूस्टर डोज़ की माँग बढ़ गयी है।
बूस्टर डोज़ से ओमिक्रॉन में कोई फ़ायदा नहीं!
डॉक्टर तुषार शाह ने एक वीडियो में कहा है कि ओमिक्रॉन से बचने के लिए बूस्टर की कोई ज़रूरत नहीं है। ओमिक्रॉन पिछले म्यूटेशन डेल्टा से काफ़ी कमज़ोर है। अबतक जो आँकड़े सामने आए हैं उसके मुताबिक़ ये स्वरूप गंभीर बीमारी पैदा नहीं कर सकता है। डॉ. शाह बताते हैं कि ओमिक्रॉन नाक, गला और साँस की ऊपरी नली में ही संक्रमण पैदा कर रहा है। डेल्टा की तरह इसका असर फेफड़ा और शरीर के दूसरे महत्वपूर्ण अंगों पर दिखाई नहीं दे रहा है। ख़ून पर भी इसका प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा है। डेल्टा स्वरूप से ख़ून में थक्के जमने लगते थे जिसके चलते ख़ून में घुले ऑक्सीजन की कमी हो जाती थी। बीमारी के गंभीर होने का यह एक बड़ा कारण था।
ओमिक्रॉन से ऑक्सीजन की कमी नहीं होती है। इसलिए यह जानलेवा नहीं है और अस्पताल में भर्ती होने की नौबत भी नहीं आती है। ब्रिटेन के डॉ. अशोक जैनर का कहना है कि बूस्टर डोज़ ज़रूर लगानी चाहिए।
ज़्यादातर वैक्सीन लगाए जाने के तीन से छह महीनों में कमज़ोर पड़ने लगते हैं। कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए पहले दोनों डोज़ के छह महीने बाद बूस्टर लगाने से पूरी सुरक्षा मिल जाती है।
डब्ल्यूएचओ की शर्तें
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वमीनाथन ने एक बयान में कहा है कि बूस्टर लगाने का फ़ैसला कुछ तथ्यों को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिए।
1.
वैक्सीन कौन सी है। सभी वैक्सीनों का प्रभाव एक समान नहीं होता। कुछ का असर देर तक रहता है जबकि कुछ जल्दी ही प्रभाव खोने लगती हैं।
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यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कोरोना का कौन सा रूप फैल रहा है। सभी वैरिएंट एक समान व्यवहार नहीं करते। जैसे ओमिक्रॉन जानलेवा नहीं है लेकिन डेल्टा था। लेकिन यह भी देखा जा रहा है कि ओमिक्रॉन सभी वैक्सीनों को मात दे रहा है। कोई भी वैक्सीन संक्रमण रोकने में सक्षम नहीं है।
3.
जिस व्यक्ति को बूस्टर लगाया जाना है उसकी स्वास्थ्य की स्थिति क्या है। उसका इम्यून सिस्टम अगर पहले से कमज़ोर है या वो किसी अन्य बीमारी से पीड़ित है या ज़्यादा उम्र का है तो उसे बूस्टर दिया जा सकता है। आम तौर पर वैक्सीन 6 महीने तक पूरी तरह कारगर रहता है इसलिए बूस्टर उसके बाद लगाया जा सकता है।
'ओमिक्रॉन ख़ुद ही एक वैक्सीन है'
अमेरिका के एक डॉक्टर अफ़शिन एमरनी ने एक ट्वीट में यह कह कर खलबली मचा दी कि ओमिक्रॉन तो कोरोना के ख़िलाफ़ एक ऐसे वैक्सीन की तरह है जिसे कोई दवा कंपनी बना नहीं सकी। कोरोना का ये स्वरूप हमें नुक़सान नहीं पहुँचाता बल्कि हमारे इम्यून सिस्टम को मज़बूत कर देता है।
डॉ. एमरनी हृदय रोग विशेषज्ञ हैं इसलिए कुछ डॉक्टर उनके दावे को ख़ारिज कर रहे हैं।
अब तक जो स्थिति सामने आयी है उससे इतना साफ़ है कि ओमिक्रॉन पिछले डेल्टा के मुक़ाबले 15 गुना ज़्यादा तेज़ी से फैलता है। ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के जज बिज़नेस स्कूल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले दो हफ़्तों में ओमिक्रॉन भारत में तेज़ी से फैलेगा। इस स्कूल ने भारत में कोरोना पर नज़र रखने के लिए एक मॉडल तैयार किया है। उसके आधार पर यह भी कहा गया है कि ये जितनी तेज़ी से फैलेगा उतनी ही तेज़ी से ख़त्म भी हो जाएगा।
अनुमान है कि ये देश की 80 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करेगा लेकिन पिछली वेव की तरह अस्पतालों में जाने तथा ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की ज़रूरत नहीं होगी। इसलिए इस बार ज़्यादा चिंता की बात नहीं है। लेकिन सभी डॉक्टरों का मानना है कि बुज़ुर्गों की सुरक्षा पर ध्यान देना ज़रूरी है। उन्हें अभी से एकांतवास में रखना चाहिए। और घर के लोगों को भी उनसे दूरी बना कर रखना चाहिए ताकि उन्हें संक्रमण से बचाया जा सके।