महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ी कुछ सामग्री को एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से हटाए जाने पर विवाद हो गया है। पूछा जा रहा है कि भारत के इतिहास की इतनी अहम घटना को हटाने का आख़िर क्या मतलब है? आलोचनाओं पर एनसीईआरटी की ओर से इस फ़ैसले के पीछे की दलील दी गई है। इसने कहा है कि किसी भी सामग्री को 'अनुपात से ज़्यादा नहीं होना चाहिए'।
हालाँकि, एनसीईआरटी की वेबसाइट पर एक नोट में लिखा है, 'कोविड-19 महामारी को देखते हुए छात्रों पर सामग्री के बोझ को कम करना अनिवार्य महसूस किया गया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी 2020 भी सामग्री के भार को कम करने और रचनात्मक मानसिकता के साथ अनुभव से सीखने के अवसर देने पर जोर देती है। इस पृष्ठभूमि में एनसीईआरटी ने सभी कक्षाओं और सभी विषयों की पाठ्यपुस्तकों को तर्कसंगत बनाने की कवायद की थी।'
तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया में पाठ्यपुस्तकों में जो बदलाव किया गया है उसमें से एक तो यह है कि बिना किसी अधिसूचना के पाठ्यपुस्तकों से कई अंश हटा दिए गए है। इसके लिए भी आलोचना की जा रही है। इस पर एनसीईआरटी के प्रमुख दिनेश सकलानी ने पीटीआई से बुधवार को कहा है कि यह एक 'अनजाने' में चूक हुई होगी और यही वजह है कि पिछले साल इसके तर्कसंगत बनाए जाने के दौरान कुछ हटाए जाने की घोषणा नहीं की गई थी।
उन्होंने कहा है कि पाठ्यपुस्तकों को तर्कसंगत बनाए जाने के दौरान सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया गया है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से कई महत्वपूर्ण अध्यायों को काट दिया गया था। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सकलानी ने कहा कि इसे 'अनुपात से बढ़ा-चढ़ा कर पेश नहीं किया जाना चाहिए' और नई पाठ्यपुस्तकों में किए गए सभी बदलाओं को एक या दो दिनों में अधिसूचित किया जाएगा।
एनसीईआरटी की ओर से यह टिप्पणी तब आई है जब एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तकें बाजार में आई हैं। इन पुस्तकों के आने के बाद यह पाया गया है कि पिछले साल पाठ्यक्रम युक्तिकरण पुस्तिका में अधिसूचित सामग्री की तुलना में अधिक सामग्री गायब है।
एनसीईआरटी ने गांधी हत्या और उसमें नाथूराम गोडसे तथा राष्ट्रीय स्वंय सेवक की भूमिका को बताने वाले अध्याय और हिस्सों को या तो हटा दिया है या कम कर दिया है।
'गांधीजी की मृत्यु का देश में सांप्रदायिक स्थिति पर जादुई प्रभाव पड़ा', 'गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता की खोज ने हिंदू चरमपंथियों को उकसाया' और 'आरएसएस जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था'- ये हिस्से कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से गायब हैं।
कक्षा 12वीं की इतिहास की किताब में गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 'पुणे का ब्राह्मण' और 'एक चरमपंथी हिंदू अखबार का संपादक' कहा गया है, जिसने गांधीजी को 'मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाला' बताते हुए उनकी निंदा की थी।
राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम के तौर पर इसे 12वीं कक्षा के छात्रों को 15 साल से ज्यादा समय से पढ़ाया जा रहा था।
एनसीईआरटी के प्रमुख सकलानी ने पीटीआई से कहा कि विषय विशेषज्ञ पैनल ने गांधी पर कुछ ग्रंथों को हटाने की सिफारिश की थी और इसे पिछले साल ही स्वीकार किया गया था। उन्होंने कहा कि तर्कसंगत सामग्री की सूची में इसका उल्लेख नहीं किया गया हो सकता है। उन्होंने कहा, 'रातोंरात कुछ भी नहीं हटाया जा सकता है, उचित प्रक्रियाएं हैं और पेशेवर नैतिकता का पालन करना होता है। इसके पीछे जानबूझकर कुछ भी नहीं है।'
सकलानी ने दावा किया कि इस साल कोई पाठ्यक्रम में कुछ भी कटौती नहीं हुई है और पिछले साल जून में पाठ्यक्रम को तर्कसंगत बनाया गया था।
यह पूछे जाने पर कि क्या अन्य विषयों और कक्षाओं के लिए ऐसी और सामग्री हैं जिन्हें हटा दिया गया है और तर्कसंगत के दौरान घोषित नहीं किया गया था, एनसीईआरटी के प्रमुख ने कहा, 'हम इस पर गौर कर रहे हैं'। उन्होंने कहा, 'अगर ऐसी और सामग्री मिलती है, जो चूक के कारण छूट गई थी, तो हम उन्हें जल्द ही सूचित करेंगे...ज्यादातर एक या दो दिन में।'