मुंबई में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी ने इतिहास रच दिया। इसने क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में दुनिया के शीर्ष 150 विश्वविद्यालयों में पहली बार जगह बनाई। यह इसकी अब तक की सर्वोच्च रैंक है। यह आठ वर्षों में पहली बार है कि किसी भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान ने शीर्ष 150 की सूची में जगह बनाई है। इससे पहले भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर ने 2016 में 147वीं रैंकिंग के साथ यह उपलब्धि हासिल की थी। शीर्ष 500 की रैंकिंग में पहली बार दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय ने भी जगह बनाई है।
दुनिया भर की शैक्षिक संस्थाओं के लिए क्वाक्वारेली साइमंड्स (क्यूएस) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग काफ़ी मायने रखती है। इस रैंकिंग से संस्थाओं की गुणवत्ता का अनुमान लगाकर छात्र और अभिभावक पढ़ाई के लिए इनका चयन करते हैं।
आईआईटी बॉम्बे ने रैंकिंग के इस वर्ष के संस्करण में वैश्विक स्तर पर 149वीं रैंक हासिल करने के लिए 23 स्थान की बड़ी छलांग लगाई है। सूची में काफ़ी उतार-चढ़ाव भी देखा गया है। भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर 155वें रैंक से 70 स्थान गिरकर 225वें स्थान पर आ गया है। यह पिछले साल सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्थान था। अब यह तीसरा सर्वोच्च रैंक वाला भारतीय संस्थान बन गया है। इसी तरह आईआईटी दिल्ली 174 से गिरकर 197 वें स्थान पर आ गया है।
इस वर्ष 45 विश्वविद्यालयों की रैंकिंग के साथ भारत वैश्विक स्तर पर सातवाँ सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाला देश है। यह जापान (52 विश्वविद्यालय) और चीन (71 विश्वविद्यालय) के बाद एशिया में तीसरा देश है। दुनिया के शीर्ष 500 विश्वविद्यालयों में भारत की दो और प्रविष्टियाँ हैं, जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय 407वें स्थान पर और अन्ना विश्वविद्यालय 427वें स्थान पर है। दोनों ने इस स्तर पर अपनी शुरुआत की है। चार नए भारतीय विश्वविद्यालयों- पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय यानी यूपीईएस, चितकारा विश्वविद्यालय, गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय और भारतीय सांख्यिकी संस्थान को इस वर्ष स्थान दिया गया है।
यूके स्थित यह रैंकिंग एजेंसी क्यूएस ने आंशिक रूप से इस साल मूल्यांकन मापदंडों में संशोधन को उतार-चढ़ाव के लिए जिम्मेदार ठहराया है। इसने तीन नए संकेतक शामिल किए हैं- स्थिरता, रोजगार परिणाम और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क। तीन नए संकेतकों को शामिल करने के लिए क्यूएस ने अन्य मापदंडों को समायोजित किया है। शैक्षणिक प्रतिष्ठा संकेतक को दिया जाने वाला महत्व 40 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है। इसी प्रकार, संकाय छात्र अनुपात पर जोर भी 15% से घटाकर 10% कर दिया गया है और नियोक्ता प्रतिष्ठा संकेतक के महत्व को 10% से बढ़ाकर 15% कर दिया गया है।
संकाय-छात्र अनुपात यानी एफएसआर पर जोर कम करने से आईआईएससी जैसे संस्थानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जो मुख्य रूप से आईआईटी की तुलना में कम शिक्षण भार वाला एक शोध-केंद्रित संस्थान है। आईआईएससी एफएसआर संकेतक पर अच्छा प्रदर्शन कर रहा था। वेटेज कम होने से इसकी रैंकिंग पर असर पड़ा है। हालाँकि, क्यूएस प्रवक्ता के अनुसार यह एकमात्र कारक नहीं है जिसके कारण आईआईएससी की रैंकिंग में गिरावट आई है।
क्यूएस के प्रवक्ता ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'आईआईएससी ने इस वर्ष संकाय छात्र अनुपात के अलावा कई संकेतकों में गिरावट देखी है, और विशेष रूप से वैश्विक जुड़ाव (अंतरराष्ट्रीय छात्रों का अनुपात, अंतरराष्ट्रीय संकाय अनुपात, अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क) पर ध्यान केंद्रित करने वाले संकेतकों में गिरावट देखी गई है।'
रिपोर्ट के अनुसार आईआईटी बॉम्बे के निदेशक सुभासिस चौधरी के अनुसार, संस्थान के अनुसंधान को महामारी लॉकडाउन के दौरान बढ़ावा मिला। इसके परिणामस्वरूप ज़्यादा प्रभाव वाली पत्रिकाओं में प्रकाशित कई शोध पत्र अब उद्धृत किए जा रहे हैं, जो बेहतर रैंकिंग में योगदान दे रहे हैं।
क्यूएस के वरिष्ठ शोध प्रबंधक एंड्रयू मैक फरलेन ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'आईआईटी बॉम्बे ने 2018 से 2022 तक 15,905 अकादमिक पेपर तैयार किए, जिससे 143,800 उद्धरण प्राप्त हुए। इस अवधि में इसने लगभग 17% की अनुसंधान वृद्धि दर्ज की है। प्रति संकाय औसत उद्धरणों के लिए, वे वैश्विक औसत से लगभग चार गुना बैठते हैं - किसी भी मानक द्वारा एक प्रभावशाली उपलब्धि...।'
कुल मिलाकर, अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) इस साल लगातार बारहवीं बार विश्व विश्वविद्यालय रैंकिंग में शीर्ष पर है, इसके बाद यूके की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी हैं। विशेष रूप से नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (एनयूएस) पिछले साल रैंक 11 से तीन स्थान ऊपर चढ़कर शीर्ष 10 क्लब में शामिल होने वाला पहला एशियाई विश्वविद्यालय बन गया है।