महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले एक साल से आत्महत्याओं पर बहस का दौर शुरू है। ये हत्याएँ थीं या आत्महत्याएँ इस बात को लेकर संशय बरकरार है, लेकिन राजनीति खामोश नहीं है। कोरोना का लॉकडाउन काल हो या विधानसभा का बजट सत्र सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद से लेकर मनसुख हिरेन की मौत एक पहेली ही बनी हुई है। इस बीच दिशा सालियान, आर्किटेक्ट अन्वय नाईक, सांसद मोहन डेलकर आदि के नाम भी जुड़ते गए।
राजनीति और अपराध की सांठगांठ के क़िस्सों के अलावा इस बार टेलीविजन चैनलों के चाल और चरित्र का नया चेहरा भी देखने को मिला। मीडिया की लक्ष्मण रेखा को निर्धारित करने के लिए मांग उठी और सामाजिक संगठनों ने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया। लेकिन इन सभी लोगों की मृत्यु का गूढ़ अभी तक कायम है।
मंगलवार को महाराष्ट्र के बजट सत्र के दौरान विधानसभा और विधान परिषद (दोनों सदनों ) में भी ये सवाल गूंजते रहे। मामला नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने उठाया और कहा कि पुलिस अधिकारी सचिन वजे ने मनसुख हिरेन की हत्या की है और सरकार इस मामले में उन्हें बचा रही है। सचिन वजे मुंबई पुलिस में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जाने जाते हैं और उन्होंने ‘अब तक 56’ नहीं 63 एनकाउंटर किये हैं। 2 दिसम्बर 2002 में घाटकोपर बम विस्फोट मामले के संदिग्ध आरोपी ख्वाजा यूनिस की पुलिस हिरासत में मौत के आरोप वजे सहित 14 पुलिसकर्मियों पर लगे। 30 नवम्बर 2007 को उन्होंने पुलिस सेवा से रिटायरमेंट की अर्जी दी थी, लेकिन राज्य सरकार ने उसे अस्वीकार कर दिया था।
कोरोना महामारी के दौरान राज्य में पुलिस बल की कमी का हवाला देते हुए 6 जून 2020 को उन्हें वापस सेवा में लिया गया और रिपब्लिक चैनल के अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद वजे फिर से आरोपों के घेरे में आ गए। बीजेपी नेता उन पर सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप लगाने लगे और अब हिरेन मनसुख मामले में तो फडणवीस ने विधानसभा में उन पर हत्या का आरोप लगाया। फडणवीस के आरोपों के बाद विधानसभा में हंगामा शुरू हो गया।
इस हंगामे में आवाज़ें उठने लगीं कि जस्टिस लोया की मौत की जाँच किसने नहीं होने दी? अन्वय नाईक की आत्महत्या की जाँच कौन रोक रहा था? कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने जस्टिस लोया की मौत का मामला उठाते हुए फडणवीस पर आरोप लगाए कि उस मामले की जाँच कौन दबा रहा था?
मामले में गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि फडणवीस जो कि पाँच साल मुख्यमंत्री और गृह मंत्री रहे उन्हें अचानक से मुंबई और महाराष्ट्र पुलिस इतनी ग़लत कैसे दिखने लगी। देशमुख ने कहा कि दादर नगर हवेली के सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या की जाँच के लिए एसआईटी का गठन किया जाएगा। देशमुख ने कहा कि डेलकर के सुसाइड नोट में यह ज़िक्र किया गया है कि उन्हें पटेल से यह धमकी मिल रही थी कि उनका सामाजिक जीवन ख़त्म हो जाएगा। उन्होंंने कहा, ‘डेलकर की पत्नी और बेटे ने भी मुझे पत्र लिख कर यह चिंता प्रकट की है।’
देशमुख ने कहा कि डेलकर ने यह भी कहा था कि वह मुंबई में अपनी जीवनलीला समाप्त कर रहे हैं क्योंकि उन्हें (महाराष्ट्र के) मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राज्य सरकार पर विश्वास है। देशमुख ने विधानसभा में कहा कि डेलकर के सुसाइड नोट में केंद्र शासित क्षेत्र के प्रशासक प्रफुल्ल खेड़ा पटेल का ज़िक्र है, जो गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान राज्य (गुजरात) मंत्रिमंडल में शामिल रहे थे। मंत्री ने कहा, ‘डेलकर ने अपने सुसाइड नोट में कहा था कि उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और वह प्रफुल्ल पटेल के दबाव में हैं, जो दादर एवं नगर हवेली के प्रशासक हैं।’
उन्होंने कहा कि अन्वय नाईक प्रकरण में महाराष्ट्र पुलिस सही दिशा में कार्य कर रही है और सच सामने आएगा। फडणवीस के आरोपों पर शिवसेना नेता एवं राज्य के संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब ने लोकसभा सदस्य डेलकर के सुसाइड नोट में ज़िक्र किये गये लोगों को गिरफ्तार करने की माँग की। इस पर फडणवीस ने कहा, ‘मेरे पास (डेलकर का) सुसाइड नोट है, प्रशासक (केंद्र शासित क्षेत्र दादर एवं नगर हवेली) के सिवा किसी के नाम का ज़िक्र नहीं है। प्रशासक किसी पार्टी के नहीं हैं।’
सवाल यह है कि जस्टिस लोया, सुशांत सिंह राजपूत, मोहन डेलकर, दिशा सालियान, हिरेन मनसुख, अन्वय नाईक जैसे इन मुद्दों पर सिर्फ़ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप ही चलेंगे या इनका सच भी सामने आएगा?
सुशांत सिंह मामले की जाँच सीबीआई से कराने को मुद्दा बनाया गया, लेकिन उसका परिणाम क्या निकला? हत्या या आत्महत्या अभी भी पहेली है, लेकिन जाँच सिने अभिनेताओं के गांजे या मादक पदार्थों के सेवन को ढूंढने लगी! सवाल उठता है, क्या इसी तरह से हत्या या आत्महत्या पर राजनीति खेली जाएगी या इनके राज भी खुलेंगे?