बीएसपी में बड़ी हलचल है। नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाए जाने के दो दिन बाद ही आनंद कुमार को पद से हटा दिया गया है। मायावती ने तीन दिनों में कई बड़े बदलाव कर दिए। पहले अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया। फिर अगले ही दिन उनको पार्टी से निकाल दिया। उसके बाद आनंद कुमार पर फ़ैसले लिए। अब नया कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया है। हाल में मायावती ने कई ऐसे फ़ैसले लिए और फिर कुछ दिनों में ही खुद उसे बदल दिया।
इससे पहले, मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को न केवल नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से हटाया था, बल्कि उन्हें पार्टी से पूरी तरह बाहर का रास्ता भी दिखा दिया था। इन लगातार बदलावों ने बीएसपी के भीतर और बाहर राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। सवाल उठ रहा है कि मायावती की राजनीति अब किस दिशा में बढ़ रही है?
मायावती ने 2 मार्च को आकाश आनंद को सभी पदों से हटाते हुए यह साफ़ कर दिया था कि उनके जीते जी कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा। इस मामले में मायावती ने अपने फ़ैसले खुद ही कई बार पलट दिए। मायावती ने पहली बार दिसंबर 2023 में आकाश को राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था, लेकिन 4-5 महीने के अंदर 2024 के लोकसभा चुनाव के बीच ही आकाश को राष्ट्रीय समन्वयक पद से हटा दिया गया था और तब राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं बनाने का भी फ़ैसला ले लिया गया था।
लेकिन चुनाव ख़त्म होने के कुछ महीने बाद ही जून महीने में मायावती ने अपना फ़ैसला फिर से बदल लिया था। लोकसभा चुनाव में बीएसपी की बुरी तरह हार के बाद फिर से मायावती ने आकाश आनंद को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। इसके साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के पद पर उन्हें बहाल कर दिया गया था।
लेकिन तीन दिन पहले ही आकाश को पार्टी से भी बाहर कर दिया गया। इसके बाद आनंद कुमार और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन अब आनंद कुमार को भी इस पद से हटा दिया गया है और उनकी जगह सहारनपुर के रणधीर बेनीवाल को नियुक्त किया गया है। मायावती ने सोशल मीडिया पर बताया कि आनंद कुमार ने खुद एक पद पर रहने की इच्छा जताई, जिसके बाद वे केवल राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका में बने रहेंगे। अब रामजी गौतम और रणधीर बेनीवाल बीएसपी के दो नेशनल कोऑर्डिनेटर होंगे।
यह लगातार बदलाव बीएसपी के संगठनात्मक ढांचे में अस्थिरता का संकेत दे रहे हैं। कुछ दिनों के भीतर ही परिवार के दो प्रमुख सदस्यों को अहम ज़िम्मेदारियों से हटाना और फिर नए चेहरों को मौक़ा देना मायावती की रणनीति पर सवाल उठा रहा है।
मायावती की नई रणनीति या मजबूरी?
मायावती ने हमेशा बीएसपी को अपने मजबूत नेतृत्व के दम पर चलाया है, लेकिन हाल के वर्षों में पार्टी का जनाधार कमजोर हुआ है। 2024 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जिसके बाद संगठन में सुधार की मांग जोर पकड़ने लगी थी। आकाश आनंद को पहले उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किया गया था, लेकिन उनके आक्रामक बयानों और अपरिपक्वता के चलते मायावती ने उन्हें हटा दिया। अब आनंद कुमार को भी कोऑर्डिनेटर पद से हटाना यह संकेत देता है कि मायावती परिवारवाद के आरोपों से बचते हुए पार्टी को नई दिशा देने की कोशिश कर रही हैं।
वंशवादी राजनीति की हमेशा बड़ी आलोचक रहीं मायावती के साथ पहली बार जब आकाश आनंद दिखे थे तो उनकी तीखी आलोचना हुई थी। दरअसल, 2019 में मायावती के जन्मदिन पर उनके साथ दिखा एक नौजवान अचानक राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बन गया था। उसके बारे में हुई तमाम तरह की चर्चाओं पर बीएसपी सुप्रीमो ने तब जवाब दिया था कि वह उनका भतीजा आकाश आनंद है और वह उसे बीएसपी मूवमेंट में शामिल करेंगी। तब आकाश सिर्फ़ 24 वर्ष के थे।
वंशवाद को लेकर आरोपों के बीच 2019 में मायावती ने कहा था, ‘मेरे जन्मदिन पर आनंद के बेटे आकाश को मेरे साथ देखकर कुछ मीडिया समूहों ने उसे सस्ती राजनीति का शिकार बनाने का षड्यंत्र किया गया है, जिसकी मैं निंदा करती हूँ।' उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद कुमार के बारे में कहा था कि उनके भाई ने पार्टी के लिए बिना किसी स्वार्थ के काम किया है।
रणधीर बेनीवाल जैसे नए चेहरों को आगे लाना और रामजी गौतम जैसे अनुभवी नेताओं पर भरोसा जताना मायावती की उस रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें वे पार्टी को जमीनी स्तर पर मज़बूत करना चाहती हैं।
मायावती ने यह भी कहा है कि उनके दिशा-निर्देश में ही संगठन चलता रहेगा, जिससे साफ़ है कि वे अभी भी बीएसपी की कमान पूरी तरह अपने हाथ में रखना चाहती हैं।
राजनीति की दिशा क्या?
मायावती के इन फ़ैसलों से कई सवाल उठते हैं। पहला, क्या वे बीएसपी को परिवार से अलग कर एक व्यापक नेतृत्व तैयार करना चाहती हैं? दूसरा, क्या यह बदलाव पार्टी के खोए हुए दलित वोट बैंक को वापस लाने की कोशिश है? और तीसरा, क्या मायावती अब अपने राजनीतिक करियर के अंतिम पड़ाव में संगठन को मज़बूत करने के लिए जोखिम ले रही हैं?
माना जा रहा है कि मायावती का यह क़दम बीएसपी को नई ऊर्जा दे सकता है, लेकिन यह जोखिम भरा भी है। आकाश आनंद को हटाने से युवा नेतृत्व की संभावनाएं कम हुई हैं, वहीं आनंद कुमार को सीमित भूमिका में रखने से परिवार का प्रभाव भी कम हो रहा है। लेकिन अगर नए कोऑर्डिनेटर पार्टी को संगठित करने और वोट बैंक को मज़बूत करने में नाकाम रहे, तो बीएसपी की स्थिति और कमजोर हो सकती है।
मायावती की राजनीति हमेशा से अप्रत्याशित रही है। बीएसपी में यह बड़ा बदलाव उनकी उस सोच को दर्शाता है, जिसमें वे पार्टी को अपने जीवनकाल में मज़बूत और स्वतंत्र बनाना चाहती हैं। लेकिन लगातार बदलते फ़ैसले कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भ्रम भी पैदा कर सकते हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मायावती का यह दाँव बीएसपी को नई दिशा दे पाता है या यह महज एक अस्थायी प्रयोग साबित होता है। अभी के लिए मायावती की राजनीति की दिशा अनिश्चितता और संभावनाओं के बीच झूल रही है।