दुनिया में उथल-पुथल है। कुछ घंटों में तस्वीरें तेजी से बदली हैं। इन बदली हुई तस्वीरों को कुछ घटनाओं के आईने में देखा जा सकता है। ये घटनाएँ अपने आप में बड़ी और ऐतिहासिक घटनाएँ हैं लेकिन समूह में और एक सीमा के भीतर घट रही घटनाओं का वैश्विक बदलाव को चिन्हित करने वाले मायने हैं। भू-राजनीतिक स्थिति की संरचना पुनर्गठित होती दिख रही है। अमेरिका अपनी बादशाहत को पुनर्स्थापित करने की जद्दोजहद में आक्रामकता के साथ भिड़ा हुआ दिख रहा है।
विश्व में घटित चंद घटनाओं पर गौर करें
- यूक्रेन ने कहा है कि रूस ने चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट पर ड्रोन से हमला किया है।
- नाटो के जनरल सेक्रेट्री मार्क रयूट ने कहा है कि यूक्रेन को कभी नाटो की सदस्यता का वादा नहीं किया गया।
- ट्रंप ने रूस से जी-7 में दोबारा जुड़ने की अपील की है। कहा है कि निष्कासन ‘भूल’ थी।
- रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने शी जिनपिंग और डोनाल्ड ट्रंप को 9 मई की विक्ट्री परेड में हिस्सा लेने का निमंत्रण भेजा है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है- “BRICS मर चुका है”।
अमेरिका, रूस और चीन परस्पर शक्ति संतुलन स्थापित करते दिख रहे हैं। रूस-यूक्रेन यूद्ध में अमेरिका मोर्चा बंदी से अलग होने का संकेत दे रहा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की छाती पीट रहे हैं कि हमारे बिना युद्ध विराम की बात अमेरिका-रूस के बीच बेमतलब होगा।
चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट पर रूसी हमला और अमेरिका की चुप्पी इस बात का संकेत है कि ‘यूक्रेन का सौदा’ हो चुका है या प्रक्रिया में है।
अमेरिका, चीन को रूस का न्योता
रूसी राष्ट्रपति पुतिन की ओर से 9 मई को विक्ट्री परेड में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को निमंत्रण देना 21वीं सदी की बड़ी घटना है। इसका सीधा संबंध डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में BRICS की मृत्यु के एलान से भी है। BRICS के तमाम देश असहाय छोड़ दिए गये हैं और BRICS के दो ताक़तवर देश रूस और चीन BRICS की क़ीमत पर अमेरिका से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। अमेरिका ने यूक्रेन की क़ीमत पर ऐसा किया है या कर रहा है।
जी-7 में रूस को दोबारा शामिल करने की अमेरिकी पहल वैश्विक भू राजनीतिक समीकरण को नये सिरे से व्यवस्थित करने की कोशिश है। 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद रूस को जी-7 से बाहर कर दिया गया था। अब डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि यह एक ‘भूल’ थी।
BRICS की मौत का एलान
अमेरिका ने जो रेसिप्रोकल टैरिफ का एलान किया है, BRICS देशों को धमकी दी है कि डॉलर की अनदेखी करने पर इसकी भारी क़ीमत चुकानी होगी- यह रूस और चीन को जितना बड़ा चैलेंजे है उससे ज्यादा भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को है। रूस और चीन लगातार अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी की ओर बढ़ रहे हैं। ये तीनों देश वैश्विक खेमेबंदी को एक ओर करके दुनिया के बाजार को मिल-बांट कर साधने की ओर बढ़ रहे हैं। रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्यों के हितों की कुर्बानी देंगे और अपने हितों के लिए सीधे अमेरिका से बातचीत कर लेंगे। वहीं, अमेरिका को रूस के साथ यूक्रेन का सौदा कर लेने में कोई संकोच नहीं है। बदले में वह ग़ज़ा पर कब्जा करेगा, मेक्सिको, कनाडा जैसे देशों पर दबाव बनाने की खुली छूट चाहेगा।
कहां खड़ा है भारत?
भारत कहां खड़ा है? भारत ब्रिक्स का सक्रिय व सम्मानित सदस्य है। ब्रिक्स की मौत का एलान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने डोनाल्ड ट्रंप ने क्यों किया? क्या इसका मक़सद भारत को अपमानित करना था? एक समूह के जब आप सदस्य होते हैं और उस समूह की मौत का एलान होता है तो सदस्य के तौर पर अपनी मौत का भी वह एलान हो जाता है। क्या भारत को मजबूर किया गया कि वह ब्रिक्स की मौत का एलान सुनने के लिए बाध्य रहे और अपनी भी मौत का एलान सुने?
डॉलर के अलावा किसी और मुद्रा में कारोबार करने पर 100 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की धमकी ब्रिक्स के किसी और देश से ज़्यादा भारत के लिए क्यों न माना जाए जब पीएम की मौजूदगी में यह धमकी दी गयी हो?
विस्तारवाद का नया दौर!
ख़तरा यह भी है कि चीनी विस्तारवाद को रूस और अमेरिका समर्थन दें और रूसी व अमेरिकी विस्तारवाद पर चीन चुप रह जाए। पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी, इटली, जापान ने दुनिया के बंदरबांट की जो समझ परस्पर विकसित की थी, क्या वही समझ अमेरिका-रूस-चीन विकसित करने जा रहे हैं? यह ख़तरनाक स्थिति है। पुराने विश्वयुद्ध के समय जर्मनी-इटली-जापान का मुक़ाबला करने के लिए अमेरिका और नवोदित राष्ट्र रूस थे। आज यह भूमिका कौन निभा सकता है?
अमेरिका और चीन की जीडीपी ग्लोबल जीडीपी का 40 फ़ीसदी से ज़्यादा है। अगर यूरोपीय यूनियन की जीडीपी भी देख लें तो 60 फ़ीसदी हो जाता है। यूरोपीय यूनियन वैश्विक राजनीति में अमेरिका के साथ चलने का आदी रहा है। ऐसे में बाक़ी देशों की सम्मिलित जीडीपी 40 फ़ीसदी भी नहीं है और इनमें से सबसे बड़ी भारतीय इकॉनोमी का आकार भी 4 ट्रिलियन नहीं है। ऐसे में इन तीन देशों की संभावित धुरी के सामने कोई रुकावट दिखती नहीं है। वैश्विक स्तर के तमाम संगठन चाहे ब्रिक्स हो या फिर अन्य संगठन अब मायने खोने जा रहे हैं। भारत जैसे देश के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चिंता की घड़ी है।