दिल्ली की पूर्व केजरीवाल सरकार के खिलाफ ₹2,002 करोड़ के कथित शराब घोटाले पर सीएजी की रिपोर्ट लेकर बवाल मचा रही भाजपा यूपी में यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण YEIDA में हुए ₹8,125.52 करोड़ के घोटाले की सीएजी की ही सनसनीखेज रिपोर्ट पर आश्चर्यजनक रूप से चुप है।
सीएजी रिपोर्ट दिखाकर भाजपा कह रही है कि केजरीवाल सरकार की शराब नीति से दिल्ली सरकार को ₹2,002 करोड़ रूपये का घोटाला हुआ। दिल्ली सरकार के अधिकारी कहते हैं कि शराब के व्यापार से दिल्ली सरकार के उत्पाद शुल्क ने 2024-25 की पहली तीन तिमाहियों में लगभग 13 प्रतिशत की छलांग लगाई और सरकार का राजस्व पिछले वित्त वर्ष में इसी अवधि में 5,361 करोड़ रुपये से 6,061 करोड़ रुपये तक बढ़ गया। कमाल है- इसी शराब घोटाले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार चली गयी। मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और अनेक मंत्री जेल की सजा काट आये, घोटाले का कोई सबूत अबतक नहीं मिला, अधिकारी कहते हैं कि राजस्व बढ़ गया और भाजपा कहती है कि घोटाला हो गया।
इसी सीएजी ने 2008 में 2G स्पेक्ट्रम आवंटन (2008) में अनुमानित ₹1.76 लाख करोड़ की राजस्व हानि की बात कही थी। तब भी भाजपा ने भारी बवाल मचाया था। डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार चली गयी थी। और 2017 में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। क्या ये कोई छोटा मोटा कमाल था? क्या किसी ने सीएजी से पूछा कि मान्यवर ये क्या था?
आगे बढ़ने से पहले एक यूपी के ताजा रिपोर्ट की चर्चा कर लें।
हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट संख्या 7, वर्ष 2024 आयी है, जिसका शीर्षक है Performance Audit on the Working of Yamuna Expressway Industrial Development Authority (YEIDA)। इसमें उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की नाकामियों और घोटालों का विस्तार से उल्लेख है। रिपोर्ट में ₹8,125.52 करोड़ के वित्तीय नुकसान की बात कही गई है, जो भूमि अधिग्रहण, परियोजना कार्यान्वयन, संपत्ति आवंटन और प्रशासनिक कुप्रबंधन में भ्रष्टाचार का संकेत देता है। अब सवाल ये है कि दिल्ली में AAP की पूर्व सरकार पर CAG रिपोर्ट के आधार पर जो भाजपा हमलावर है, वही भाजपा उत्तर प्रदेश की अपनी योगी सरकार में इतने बड़े घोटाले पर पूरी तरह चुप क्यों है।
आइये देखें कि उत्तर प्रदेश के YEIDA में कैसे हुआ ₹8,125.52 करोड़ का घोटाला?
ये रहे CAG रिपोर्ट के प्रमुख खुलासे:
CAG रिपोर्ट में 2005-06 से 2020-21 तक YEIDA की कार्यप्रणाली की समीक्षा की गई है, जिसमें कई स्तरों पर भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताएँ उजागर हुई हैं।
1. भूमि अधिग्रहण में गड़बड़ियाँ
• सीएजी की उत्तर प्रदेश यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण की परफ़ॉर्मेंस रिपोर्ट संख्या 7/2024 के पृष्ठ संख्या 31-42 पर लिखा है कि योगी सरकार के प्राधिकरण ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 17(4) का दुरुपयोग किया गया, जिससे किसानों को उचित मुआवजा और कानूनी अपील के अधिकार से वंचित कर दिया गया।
CAG रिपोर्ट के पेज 34 पर लिखा गया है: “YEIDA ने लगभग सभी मामलों में बिना उचित कारण आपातकालीन धारा का उपयोग किया, जिससे भूमि मालिकों को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं मिला। इससे ₹188.64 करोड़ का नुकसान हुआ।”
2. परियोजनाओं में वित्तीय अनियमितताएँ
सीएजी रिपोर्ट संख्या 7/2024 के पृष्ठ 47-63 पर लिखा है कि (योगी सरकार ने) नए बुनियादी ढांचे के विकास के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद कर दिए, लेकिन कई परियोजनाएँ अधूरी रह गईं।
- ₹38.63 करोड़ का नुकसान हुआ, क्योंकि ठेकेदारों से आवश्यक परफॉर्मेंस गारंटी नहीं ली गई।
CAG रिपोर्ट के पेज 57 पर उल्लेख है: “YEIDA ने भारतीय सड़क कांग्रेस (IRC) की गाइडलाइंस का पालन न करने के कारण ₹9.93 करोड़ का अनावश्यक खर्च किया।”
3. संपत्तियों की बिक्री में हेराफेरी
CAG रिपोर्ट की पृष्ठ संख्या 65-82 और 78 पर दर्ज है कि “भूमि की कीमतें जानबूझकर कम रखी गईं। गलत मूल्य निर्धारण नीति के कारण, YEIDA को ₹469.02 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ।” औद्योगिक और व्यावसायिक भूमि गलत कीमत पर बेची गई, जिससे ₹175.55 करोड़ का घाटा हुआ। ₹95.59 करोड़ का नुकसान हुआ, क्योंकि स्टांप ड्यूटी में छूट लेने के बावजूद बैंक गारंटी जमा नहीं कराई गई।
4. प्रशासनिक लापरवाही और जवाबदेही का अभावः रिपोर्ट के पृष्ठ संख्या 155-167-162 पर तो साफ लिखा है कि “YEIDA ने कई वर्षों तक यूपी सरकार को अपनी वार्षिक वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी हुई। कई अनियमितताओं में शामिल अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। वित्तीय रिकॉर्ड और आंतरिक डेटा को डिजिटल रूप से सही तरीके से नहीं रखा गया, जिससे पारदर्शिता की भारी कमी उजागर हुई।”
पहले भी आयी हैं भ्रष्टाचार पर रिपोर्टें
चाहे दिल्ली हो या यूपी, यह कोई पहली बार नहीं है जब CAG ने सरकारों की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया है।
उदाहरण के लिए पहले यूपी को ही लेते हैं:
- 2019: नोएडा अथॉरिटी घोटाले में ₹58,000 करोड़ की वित्तीय अनियमितता।
- 2021: यूपी सरकार के कई विभागों में बिना पारदर्शिता के करोड़ों रुपये खर्च किए गए।
- 2022: जल जीवन मिशन में वित्तीय घोटालों की पुष्टि हुई, लेकिन किसी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई।
2019: नोएडा अथॉरिटी घोटाले में ₹58,000 करोड़ की वित्तीय अनियमितता।
2021: यूपी सरकार के कई विभागों में बिना पारदर्शिता के करोड़ों रुपये खर्च किए गए।
2022: जल जीवन मिशन में वित्तीय घोटालों की पुष्टि हुई, लेकिन किसी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई।
CAG की रिपोर्ट संख्या 2 (राज्यों के लिए) वर्ष 2014-15 में भी य़ूपी में खाद्य सुरक्षा योजना के तहत राशन वितरण में अनियमितता के कारण सरकारी खजाने को ₹1,200 करोड़ की हानि बतायी गयी। लेकिन राज्य सरकार ने कुछ अधिकारियों के खिलाफ जांच करने की खानापूर्ति करके बैठ गयी।
इसी तरह पिछले दस वर्षों में, CAG ने गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार और असम समेत अनेक राज्य सरकारों के वित्तीय प्रबंधन पर कई रिपोर्टें प्रस्तुत कीं, जिनमें विभिन्न वित्तीय अनियमितताओं और राजस्व हानियों के मामलों का उल्लेख किया गया, लेकिन कोई खास कार्रवाई नहीं हुई। कुछ उदाहरण देखियेः
गुजरात: CAG की रिपोर्ट संख्या 3 (राज्यों के लिए) वर्ष 2015-16 में गुजरात में सिंचाई परियोजनाओं में अनावश्यक खर्च और देरी से ₹1,500 करोड़ की अतिरिक्त हानि दर्ज हुई। कुछ परियोजना अधिकारियों के खिलाफ जांच हुई, पर ठेकेदारों और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
मध्य प्रदेश: CAG की रिपोर्ट संख्या 4 (राज्यों के लिए) वर्ष 2016-17 के अनुसार मध्य प्रदेश में खनन पट्टों के आवंटन में अनियमितता के कारण ₹2,000 करोड़ की राजस्व हानि हुई। दिखावे के लिए कुछ अधिकारी निलंबित हुए, लेकिन उच्च पदस्थ व्यक्तियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बिहार: बिहार में मनरेगा योजना में ₹500 करोड़ की अनियमितता की चर्चा CAG की रिपोर्ट संख्या 5 (राज्यों के लिए) वर्ष 2017-18 में की गयी। लेकिन यहां भी कुछ पंचायत सचिवों के खिलाफ कार्रवाई कर मामले की इतिश्री कर दी गई।
असम: असम के स्वास्थ्य विभाग में उपकरणों की खरीद में अनियमितता के बारे में CAG की रिपोर्ट संख्या 6 (राज्यों के लिए) वर्ष 2018-19 में दर्ज हुईं, जिससे ₹300 करोड़ की हानि हुई। लेकिन यहां भी निर्णायक कार्रवाई की कमी रही।
इस तरह रिपोर्ट तो कई हैं। सरकार विपक्ष की हो तो इतनी बेशर्मी से इतना शोर मचाओ कि नेता जेल चले जायं, उनकी सरकारें चली जायं, मगर रिपोर्ट अपनी सरकारों के खिलाफ हो तो कुंडली मार कर बैठ जाओ, क्लीन चिट दे दो।
जिस तरह के आरोपों में केजरीवाल या हेमंत सोरेन जैसे नेता जेल चले गये, उससे ज्यादा गंभीर आरोपों वाले अजित पवार को क्लीन चिट मिल गया और हिमंता बिस्वा शर्मा आराम से मुख्यमंत्री पद पर कैसे विराजमान हैं। है न शुचिता की इस नयी राजनीति का कमाल?
मसलन 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले को लेते हैं। CAG ने नयी दिल्ली में आयोजित 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी के चरण और आचरण के दौरान करीब 70,000 करोड़ रुपये की हेराफेरी का अनुमान लगाया। इसके बाद कई अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई हुई। लेकिन क्या कॉमनवेल्थ गेम्स का बजट इतना था भी?
CAG की ही एक रिपोर्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स का कुल अनुमानित बजट कुछ विभागों को छोड़कर करीब 18 हजार करोड़ ही लगाया था। अगर अन्य विभागों के 2-4 हजार करोड़ जोड़ भी दें तो ये 70 हजार करोड़ का घोटाला कैसे हो गया।
और कमाल है कि यही सीएजी कहती है कि ये कमाल का सफल आयोजन था। भारत 37 गोल्ड, 27 सिल्वर और 38 कांस्य पदक जीतकर दूसरे पायदान पर रहा। लेकिन घोटाला इसके कुल बजट से भी ज्यादा हो गया। कैसे भई?
CAG ने 2G स्पेक्ट्रम आवंटन (2008) में अनुमानित ₹1.76 लाख करोड़ की राजस्व हानि की बात कही थी। लेकिन उसके बाद 3G – 4G स्पेक्ट्रम उससे भी कितने कम में और किस तरह बिका, इसे सभी जानते हैं।
CAG रिपोर्ट पर क्या करती है सरकार
PRS की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार सभी CAG ऑडिट रिपोर्ट संबंधित मंत्रालय, विभाग या सरकारी कंपनी को प्रतिक्रिया के लिए भेजती है। मंत्रालय को इस पर एक निश्चित समय सीमा के भीतर जवाब देना होता है। अंतिम ऑडिट रिपोर्ट फिर वित्त मंत्रालय (या राज्य वित्त विभाग) को सौंपी जाती है, जो फिर इसे संसद या राज्य के राज्यपाल को सौंपता है। सभी CAG रिपोर्ट सार्वजनिक दस्तावेज हैं। 10 मंत्रालयों को CAG द्वारा की गई विभिन्न टिप्पणियों और सिफारिशों पर 'कार्रवाई' नोट तैयार करने और उन्हें लोक लेखा समिति या सार्वजनिक उपक्रमों की समिति को प्रस्तुत करने की भी आवश्यकता होती है।
CAG के ऑडिट को मोटे तौर पर तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है - एक लेनदेन ऑडिट, एक प्रदर्शन ऑडिट और एक वित्तीय ऑडिट। दो अलग-अलग प्रकार की संस्थाओं (सरकारी विभाग और स्वायत्त निकाय/सरकारी कंपनियाँ) का ऑडिट किया जाता है, प्रत्येक केंद्रीय और राज्य स्तर पर।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल डब्ल्यू.पी. (सिविल) अरुण कुमार अग्रवाल बनाम भारत संघ (469 ऑफ 2012 दिनांक 9-5-2013) के मामले में माननीय न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने कहा कि कैग की रिपोर्ट हमेशा संसद द्वारा जांच के अधीन होती है और यह संसद पर निर्भर करता है कि वह रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणी करे या नहीं। इसलिए यह तत्कालीन केन्द्र सरकारों पर निर्भर हो जाता है कि वह किस मामले पर क्या कार्रवाई करे या ना करे।
अब तो कुछ स्वतंत्र विशेषज्ञ सीएजी पर राजनीतिक दबाव या प्रभाव के कारण कुछ रिपोर्टों के निष्कर्षों में बदलाव की आशंका भी जता रहे हैं। रिपोर्टों के प्रकाशन के बाद आवश्यक कार्रवाई का अभाव तो देखा ही गया है।
एक समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने CAG की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की सराहना करते हुए कहा था कि यह संस्था लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। उससे पहले प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने CAG की रिपोर्टों को सरकार की नीतियों की समीक्षा में महत्वपूर्ण बताया था। डॉ. मनमोहन सिंह ने भी CAG की भूमिका को सरकारी खर्चों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने में अहम और सरकार की जवाबदेही बढ़ाने वाला बताया था। पर क्या अब ऐसा हो रहा है?
भाजपा की चुप्पी और दोहरी नीति पर सवालः सवाल लाजिमी है कि दिल्ली में AAP पार्टी को CAG रिपोर्ट के आधार पर घेरने वाली भाजपा उत्तर प्रदेश में ₹8,125.52 करोड़ के घोटाले पर क्या कहेगी? हाल के वर्षों में CAG की रिपोर्टों पर दलगत सुविधा से सिर्फ विपक्ष को कठघड़े में खड़ा करने और अपने मामलों पर लीपापोती करने के अनेक उदाहरणों से साफ है कि सत्तारूढ़ भाजपा इन रिपोर्टों को राजनीतिक हथियार बनाने लगी है।
क्या CAG भी पिंजरे में कैद तोता हो गयी है?
नहीं तो किसी ने क्यों नहीं पूछा कि 2G स्पेक्ट्रम के कथित घोटाले की आपकी रिपोर्ट सही थी, तो सभी अभियुक्त अदालत से बरी कैसे हो गये? यूपीए सरकार चली गयी, उसके मंत्री जेल गये। वो अभियुक्त अगर बेकसूर थे तो, उन्हें जेल की सजा क्यों काटनी पड़ी? और जेल की सजा से हुई उनकी मानसिक यंत्रणा, सामाजिक और राजनीतिक छवि के नुकसान की भरपाई कौन करेगा? अगर ऐसे ही आरोप मात्र से केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, सांसद और विधायक जेल भेजे जा सकते हैं, सरकारों को बदनाम किया जा सकता है, गिराया जा सकता है, तो न्याय कहां है और आम आदमी को न्याय कौन देगा?
अगर दिल्ली में CAG रिपोर्ट भ्रष्टाचार का प्रमाण है, तो उत्तर प्रदेश में भी है। तो कार्रवाई दोनों पर क्यों न हो?
लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा की रणनीति AAP जैसे विपक्षी दलों को घेरने के लिए CAG रिपोर्ट का selective इस्तेमाल करने की है। उस पर अपने ही शासित राज्यों में हुए घोटालों को दबाने और गोदी मीडिया को निर्देशित करने के आरोप लग रहे हैं कि वह सिर्फ विपक्षी राज्यों की CAG रिपोर्ट पर ध्यान केंद्रित करे।
साफ है कि मोदी सरकार की न खाउंगा, न खाने दूंगा की नीति अथवा भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम सिर्फ एक राजनीतिक हथकंडा भर है।
इसीलिए जरूरी है कि क्यों न अब CAG के भी कामकाज और उसके परफॉर्मेंस रिपोर्टों की ऑडिट की जाय? क्यों न सरकार से पूछा जाय कि सीएजी की तमाम रिपोर्टों को राजनीतिक मुद्दा बनाने के अलावा कितने दोषियों पर गंभीर कार्रवाइयां की गयीं।
चोरी, भ्रष्टाचार और घोटाले किसी भी राष्ट्र की साख को कमजोर करते हैं। आम जनता अपने अधिकारों से वंचित रहती है, जबकि सत्ता में बैठे लोग बेखौफ होकर अपनी ताकत का दुरुपयोग करते हैं। समस्याओं पर चर्चा तो बहुत होती है, लेकिन समाधान नहीं—अब बातें नहीं, कार्रवाई जरूरी है।