हाथरस कांड पर मचे बवाल, आजमगढ़, बुलंदशहर और बलरामपुर में बलात्कार व हत्या जैसी घटनाओं के बाद सवालों के घेरे में आयी योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए फिलहाल कानून व्यवस्था से भी ऊपर कथित रूप से उसकी छवि बिगाड़ने की साजिश करने वालों की पड़ताल करना अहम हो चुका है। जबकि बीते पांच दिनों में खुद सत्तारुढ़ बीजेपी के दर्जन भर बड़े राष्ट्रीय नेता, पदाधिकारी, सांसद व विधायक हाथरस कांड को लेकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं।
बीते दो दिनों से योगी सरकार के कर्ता-धर्ता पत्रकारों के बीच एक मैसेज भेज रहे हैं जिसमें कहा गया है कि हाथरस में विपक्ष, कुछ पत्रकारों व नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन से जुड़े संगठनों के साथ कुछ सामाजिक संगठन योगी सरकार की छवि बिगाड़ने की साजिश रच रहे थे और इनके ख़िलाफ़ कारवाई की जा रही है।
इस संबंध में सरकार के सलाहकारों की ओर से एक वेबसाइट का भी हवाला दिया गया है जिसे षड्यंत्रकारी आंदोलन का आयोजक बताया जा रहा है। वेबसाइट का नाम ‘जस्टिस फ़ॉर हाथरस रेप विक्टिम’ बताया जा रहा है जिसमें साजिश के नाम पर प्रदेश व देश के अलग-अलग शहरों में हो रहे विरोध प्रदर्शनों की जानकारी के साथ ही लोगों से विभिन्न संवैधानिक संगठनों से न्याय मांगते हुए पत्र लिखने को कहा गया है।
योगी सरकार की ओर से ‘हाथरस केस में बड़ा खुलासा’ के नाम से प्रसारित किए जा रहे मैसेज में कहा जा रहा है कि जातीय दंगे करा कर दुनिया भर में मोदी और योगी को बदनाम करने के लिये रातों-रात ‘दंगे की वेबसाइट’ बनाई गई।
पीएफ़आई, विपक्ष निशाने पर
मैसेज में कहा गया है कि दंगे की इस वेबसाइट के तार एमनेस्टी इंटरनेशनल से जुड़े हैं और इसलामिक देशों से जमकर फंडिंग हुई है। इसी मैसेज में दावा किया गया है कि जाँच एजेंसियों के हाथ अहम और चौंकाने वाले सुराग लगे हैं। कहा गया है कि वेबसाइट में फ़र्ज़ी आईडी से हज़ारों लोग जोड़े गए हैं।
विरोध के तरीकों को बताया साजिश
जिस वेबसाइट को योगी सरकार अपने ख़िलाफ़ साजिश रचने का हवाला दे रही है उसमें महिला अत्याचारों को लेकर प्रदर्शन करने वालों को कुछ सलाह दी गयी है। सलाहों में शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने, आंसू गैस व लाठीचार्ज होने की दशा में बचने व दमन की शुरुआत होने पर क्या करें और क्या न करें जैसी चीजें लिखी गयी हैं। योगी सरकार इसी वेबसाइट के स्क्रीन शॉट को साजिश के सुबूत के नाम पर पेश कर रही है।
सरकार के सलाहकारों के दावे
सरकारी मैसेज (जो पत्रकारों को अनऑफिशियल कह कर भेजा गया है) में कहा गया है कि चेहरे पर मास्क लगाकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को विरोध प्रदर्शन की आड़ में निशाना बनाने की रणनीति वेबसाइट में बताई गई है। इसके साथ ही इसमें बहुसंख्यकों में फूट डालने और प्रदेश में नफरत का बीज बोने के लिए तरह-तरह की तरकीबें बताई गई हैं। सरकारी सलाहकारों का दावा है कि वेबसाइट पर बेहद आपत्तिजनक कंटेंट मिला है।
फिर निशाने पर मुसलमान, सीएए विरोधी
योगी सरकार का अब तक का सबसे प्रिय बहाना इस बार भी नजर आ रहा है। तमाम सरकारी, गैर सरकारी व्यक्तियों व कुछ जेबी पत्रकारों के जरिए सोशल मीडिया पर प्रसारित मैसेज में हाथरस बवाल के पीछे इसलामिक देशों की फंडिंग, पीएफ़आई और एसडीपीआई जैसे संगठनों व सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों का हाथ बताने की कोशिश की गयी है।
सबूत का पता नहीं
मैसेज में कहा जा रहा है कि अमेरिका में हुए दंगों की तर्ज पर यूपी की घटना को लेकर देश भर में जातीय दंगे कराने की तैयारी की गयी थी। साथ ही दावा है कि बहुसंख्यक समाज में फूट डालने के लिए मुसलिम देशों और इसलामिक कट्टरपंथी संगठनों से पैसा आया था। हालांकि पैसा आने का कोई सुबूत पेश नहीं किया गया है।
योगी सरकार के कामकाज पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष की टिप्पणी-
हाथरस कांड की मीडिया कवरेज को लेकर बौखलाई योगी सरकार ने इस पर भी अपनी छवि बिगाड़ने की साजिश का हिस्सा होने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई करने की बात कही है।
मीडिया को भी नापने की तैयारी
सरकारी तंत्र की ओर से प्रसारित मैसेज में कहा जा रहा है कि मदद के बहाने दंगों के लिए फंडिंग की जा रही थी और फंडिंग की बदौलत अफ़वाहें फैलाने के लिए मीडिया और सोशल मीडिया के दुरूपयोग के भी सुराग सरकार को मिले हैं। सरकार का कहना है कि मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए दंगे भड़काने के लिए फेक न्यूज, फोटो शॉप्ड तस्वीरों, अफवाहों, एडिटेड विजुल्स का इस्तेमाल किया गया। सरकार का दावा है कि नफरत फैलाने के लिए दंगों के मास्टर माइंड ने कुछ मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया के महत्वपूर्ण अकाउंटों का इस्तेमाल किया और इसके लिए मोटी रकम खर्च की गई।
एफआईआर भी दर्ज
योगी सरकार ने कहा है कि साजिश रचने वाले लोगों की जांच की जा रही है और कुछ एफ़आईआर भी दर्ज की गयी हैं। हालांकि न तो सरकार और न ही पुलिस की ओर से यह बताया गया है कि किसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हुई है। पूछने पर सरकार की ओर से एफआईआर के पहले पन्ने की तसवीर दी गयी है जिसमें 20 अलग-अलग धाराएं दिखायी गयी हैं पर किसके ख़िलाफ़ ये लगी हैं, इसे छुपा लिया गया है।
कुछ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आधा दर्जन पत्रकारों व डिजिटल मीडिया के कुछ लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।