भारत को इस चुनाव नतीजे को क्यों जानना चाहिए, चिली में दक्षिणपंथ की बड़ी हार

02:06 pm Dec 21, 2021 | सत्य ब्यूरो

लैटिन अमेरिकी देश चिली के राष्ट्रपति चुनाव में 35 साल के गेब्रियल बोरिक ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। चिली में इतना युवा पहली बार राष्ट्रपति बना है।

वामपंथी बोरिक पूर्व छात्र नेता हैं और चिली में दो साल से चल रहे सरकार विरोधी आंदोलन से निकल कर आए हैं। बोरिक ने दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जोस एंटोनियो कस्तू को दस प्वाइंट से हराकर बड़ी जीत दर्ज की है।

कस्तू के 44 फीसदी के मुकाबले बोरिक ने 56 फीसदी वोट पाए। कस्तू ने मतदान बंद होने के डेढ़ घंटे बाद और लगभग आधे मतपत्रों की गिनती के साथ हार मान ली।

मशहूर पत्रकार एमा वाट्सन ने चिली के लोगों के हवाले से कहा कि चिली के लोग कह रहे हैं - उन्हें अब आजादी मिल गई है।

बहुत कम देशों में उनके मुकाबले युवा राष्ट्रपति हैं।

अलबत्ता दक्षिणी यूरोप के देश सैन मरीनो के राष्ट्रपति जियाकोमो साइमनसिनी 27 साल के हैं। उनके बाद अब चिली के बोरिक हो गए हैं। बोरिक की जीत से पहले फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मिरेला मारिन 36 साल की हैं।

पिछले महीने जब चुनाव शुरू हुआ था तो चिली के वामपंथी नेता बोरिक के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों ने भविष्यवाणी की थी कि चिली के मौजूदा राष्ट्रपति जोस एंटोनियो कस्तू आसानी से जीत रहे हैं।

क्योंकि उस समय जब पहले राउंड के वोट गिने गए थे तो बहुत सारे दक्षिणपंथी प्रत्याशी जीत गए थे और इस आधार पर राजनीतिक विश्लेषकों ने एंटोनियो कास्तू को जीता हुआ मान लिया था।

पिछले महीने भारत की तरह आये ओपिनियन पोल में भी कास्तू को ही संभावित जीत के नजदीक बताया गया था। कई दशक तक तानाशाही का सामना करने वाले चिली में 1990 में लोकतंत्र की वापसी हुई।

2017 के चुनाव में एंटोनियो कास्तू को 8 फीसदी वोट मिले थे, उस समय भी उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बोरिक ही थे।

जोस एंटोनियो कस्तू, चिली के पराजित राष्ट्रपति

पिछले दो साल से चिली की जनता भ्रष्टाचार, असमानता और मुक्त बाजार व्यवस्था के खिलाफ सड़कों पर थी। बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे थे। वामपंथियों ने इसे आंदोलन का रुप दे दिया।

बोरिक छात्र नेता के रूप में ही इस आंदोलन से शुरू से जुड़े रहे हैं।

एंटोनियो कास्तू के नेतृत्व में चिली में नवउदारवादी मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था का बोलबाला है।

बोरिक ने जीत के बाद वादा किया है कि वो इस पर अंकुश लगाएंगे।

बोरिक ने कहा -

"हम जानते हैं कि अमीरों के लिए इंसाफ और गरीबों के लिए नाइंसाफी जारी है, और हम अब यह अनुमति नहीं देंगे कि गरीब चिली की असमानता की कीमत चुकाते रहें"।


दक्षिणपंथी हार की वजह

चिली की जनता पर्यावरण को लेकर बहुत सजग है। एंटोनियो कस्तू ने एक ऐसी खनन परियोजना को अनुमति दी थी, जिससे चिली की हरियाली को खतरा था। इस मामले को सबसे पहले बोरिक ने उठाया।

बहुत जल्द चिली की जनता इस मुद्दे पर लामबंद हो गई। यही वजह है कि जीतने के बाद बोरिक ने जो पहली घोषणा की है वो यही है कि इस खनन परियोजना को बंद कर दिया जाएगा।

दक्षिणपंथी हार की एक वजह वहां का संविधान भी बना। यह संविधान तानाशाही युग का था, जिसे एंटोनियो कास्तू ने बदला ही नहीं। जनता इसे बदलने के लिए 2019 से आंदोलन चला रही थी। दरअसल, 2019 और 2020 के जन आंदोलनों से चिली हिल गया था।

लेकिन सवाल यही है कि क्या इस हार से चिली में दक्षिणपंथी राजनीतिक रूप से खत्म हो जाएंगे?

वहां के समाचारपत्रों ने लिखा है कि बोरिक की जीत बताती है कि जनता अपने अधिकारों को लेकर सचेत है।

राजनीतिक लोग अगर उसके मुद्दों से खिलवाड़ करेंगे तो उनका अंत एंटोनियो कस्तू जैसा ही होगा।

वहां के अखबारों के मुताबिक चिली की जनता पर्यावरण को लेकर काफी सचेत है। कोविड19 में जनता के असमानता का व्यवहार हुआ।

कुल मिलाकर चिली के नतीजों का निष्कर्ष ये है कि अगर जनता के मुद्दों के साथ कोई पार्टी खिलवाड़ करेगा तो उसका अंजाम एंटोनियो कास्तू की पार्टी जैसा होगा।

बेशक कल को बोरिक भी ऐसा करेंगे तो उन्हें भी हार का सामना करना पड़ेगा। जनता के मुद्दों को जो पार्टी तरजीह देगी, वह सत्ता में लौटेगी। इसलिए चिली में दक्षिणपंथियों की पराजय को उनका अंत मान लेना जल्दबाजी होगी।

चिली के नतीजों के संदर्भ में यह सवाल तो बनता है कि क्या भारत की जनता अपने मुद्दों के प्रति सचेत है। शीघ्र ही उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं। उसी से पता चल जाएगा कि इन राज्यों के लोग अपने मुद्दों के प्रति कितन जागरूक हैं?