एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने आज शनिवार 8 अप्रैल को अडानी के समर्थन में फिर बयान दिया। पवार ने आज किसानों के मुद्दों पर चर्चा के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में अडानी मुद्दे पर ही उनसे सवाल हुए। पवार ने आज कहा कि अडानी मामले में सुप्रीम कोर्ट के पैनल की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच से ज्यादा विश्वसनीय लगती है। पवार का आज दोबारा दिया गया बयान, विपक्षी एकता की कोशिशों को झटका देगा। अडानी पर उनके बयान दोहराने के कई राजनीतिक मतलब निकल रहे हैं।
शरद पवार ने कल शुक्रवार को एनडीटीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि अडानी के मामले में जेपीसी की मांग गैर जरूरी है। उन्होंने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की आलोचना की। उन्होंने कहा, जिस तरह से इस बार संसद का समय बर्बाद हुआ, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
शरद पवार के कल के बयान पर अभी तमाम विपक्षी दल जब इसके असर पर सोच-विचार कर रहे थे, पवार ने आज उसी क्रम में प्रेस कॉन्फ्रेंस में उसी बात को फिर से कहकर विपक्षी एकता की कोशिशों पर बड़ी चोट कर दी।
पवार ने आज क्या कहा
न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक पवार ने आज सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि देश में अडानी से भी ज्यादा बढ़ती महंगाई, किसानों के मुद्दे हैं। विपक्षी दलों को उन पर फोकस करना चाहिए। यूएस शॉर्ट सेलर (हिंडनबर्ग) की रिपोर्ट पर नहीं। आजकल अडानी-अंबानी के बहाने सरकार की आलोचना की जाती है। लेकिन हमें अडानी-अंबानी की आलोचना से पहले देश के लिए उनके योगदान के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा -
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मुझे लगता है कि बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्याएं ज्यादा बड़े मुद्दे हैं, विपक्ष को इन्हीं मुद्दों को उठाना चाहिए।
-शरद पवार, एनसीपी चीफ, 8 अप्रैल 2023 सोर्सः एएनआई
सवालों के जवाब में महाराष्ट्र के इस कद्दावर नेता ने कहा कि जेपीसी जांच की अडानी के मामले में जरूरत ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का पैनल इस मामले की जांच ज्यादा बेहतर ढंग से करेगा और उसकी रिपोर्ट ज्यादा विश्वसनीय होगी। उन्होंने अपनी बात और साफ करते हुए कहा कि जेपीसी का एक ढांचा होता है। उसमें 21 सदस्य होते हैं। जिसमें 15 लोग सरकार की ओर से होंगे, अधिकत 6 सदस्य अन्य दलों के होंगे। तो स्वाभाविक है कि जेपीसी रिपोर्ट सरकार के ही स्टैंड को सही ठहराएगी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के पैनल की जांच ज्यादा विश्वसनीय और बिना पक्षपात के होगी।
विपक्षी एकता पर क्या कहाः शरद पवार से सवाल किया गया कि क्या उनके इस बयान से विपक्षी एकता की कोशिशों को झटका नहीं लगेगा। इस पर पवार ने कहा - मुझे नहीं लगता कि जेपीसी की मांग का विपक्षी एकता से कोई संबंध है। हालांकि मेरी पार्टी ने जेपीसी मांग का समर्थन किया था लेकिन मुझे लगता है कि जेपीसी में सत्तारूढ़ पार्टी के ही लोग होंगे। इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि जेपीसी मांग को विपक्षी एकता से जोड़कर नहीं देखा जाए। इस बात पर जोर देते हुए कि सुुप्रीम कोर्ट पैनल ज्यादा बेहतर होगा, पवार ने कहा कि हमें इस बात पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि हम एक विदेशी फर्म (हिंडनबर्ग) पर फोकस कर रहे हैं, जबकि यह हमारा आंतरिक मामला है।
पवार ने कहा - मुझे नहीं पता कि ये हिंडनबर्ग क्या चीज है। एक विदेशी कंपनी इस देश के आंतरिक मामले में दखल दे रही है। हमें सोचना चाहिए कि यह कंपनी हमारे लिए कितना मायने रखती है। इसके बजाय हमें सुप्रीम कोर्ट नियंत्रित जांच पैनल से इस मामले की जांच की मांग करना चाहिए।
बता दें कि पवार का यह बयान उसके गठबंधन दल कांग्रेस के उस बयान से अलग है। कांग्रेस ने जेपीसी जांच की मांग सबसे पहले उठाई थी। उसके बाद अन्य विपक्षी दलों ने उसका समर्थन किया था। पवार ने आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद भी स्वीकार किया कि उनकी पार्टी एनसीपी ने भी जेपीसी जांच की मांग का समर्थन किया था। लेकिन पवार का स्टैंड कल से बदला हुआ है।
पवार के स्टैंड का मतलबः शरद पवार के कल के बयान को आज दोहराने का मतलब साफ है कि एनसीपी की रुचि अडानी मुद्दे को आगे बढ़ाने में नहीं है। बहुत मुमकिन है कि विपक्ष इस मुद्दे को इसी हाल में छोड़कर आगे बढ़ जाए। और एक तरह से कांग्रेस भी विपक्षी एकता के मद्देनजर इस मुद्दे को छोड़ दे। ऐसे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उस मुहिम को धक्का लगेगा, जो उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान छेड़ी थी। दरअसल, राहुल को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने अडानी समूह के खिलाफ सबसे पहले बोलना शुरू किया और इसे मुद्दा बना दिया। लेकिन जिस तरह एनसीपी ने यह रूप दिखाया है, वो हैरान करने वाला है।
कल क्या कहा था पवार ने
पवार ने कल एनडीटीवी से कहा था कि इस तरह की चीजें पहले भी होती थीं, उनकी वजहों से हंगामा भी होता था लेकिन इस बार तो अडानी समूह के मुद्दे को इतना बढ़ा चढ़ाकर रखा गया कि पूरा संसद सत्र बर्बाद हो गया, हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा। जिन्होंने इस मुद्दे को उठाया उन्होंने देश भर में हंगामा करा दिया। इसकी कीमत देश की अर्थव्यवस्था को वहन करनी पडेगी।
पवार ने इंटरव्यू में यह भी साफ किया कि वे अडानी-अंबानी पर हमले की शैली से सहमत नहीं हैं। इस हमले पर उन्होंने पहले के टाटा-बिड़ला के दौर को याद किया और कहा कि, 'यह देश में कई वर्षों से हो रहा है। वे कहते हैं जब हम राजनीति में आए थे तब, अगर हमें सरकार के खिलाफ बोलना होता था, तो हम टाटा-बिड़ला के खिलाफ बोलते थे। निशाना कौन था? टाटा-बिड़ला। जब हम टाटा के योगदान को समझते थे, तो हम आश्चर्यचकित होते थे कि हम टाटा बिड़ला क्यों कहते रहे। लेकिन किसी को निशाना बनाना होता था इसलिए हम टाटा-बिड़ला को निशाना बनाते थे। आज सरकार के सामने नए अंबानी-अडानी के रूप में नए टाटा-बिड़ला आ गये हैं।
इंटरव्यू में पवार ने ये भी कहा कि अडानी समूह पर जांच की मांग उठाए जाने के बाद उच्चतम न्यायालय ने जांच समिति का गठन किया जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। पवार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच के आदेश दिए जाने के बाद जेपीसी द्वारा जांच की मांग का कोई मतलब नहीं था।
पवार ने कल कहा था कि सवाल यह है कि जिन लोगों को आप निशाना बना रहे हैं, अगर उन्होंने कुछ गलत किया है, अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है, तो लोकतंत्र में आपको उनके खिलाफ बोलने का शत-प्रतिशत अधिकार है। लेकिन बिना किसी सार्थक चीज के हमला करना, यह समझ नहीं आता।