अमेरिका में गर्भपात के अधिकार पर हंगामा मचा है। 14 मई को बड़े विरोध-प्रदर्शन की तैयारी है। विरोध शुरू भी हो गया है। ऐसा इसलिए कि संभावना है कि वहाँ का सुप्रीम कोर्ट 50 साल पुराने उस ऐतिहासिक फ़ैसले को पलट देगा जिसमें महिलाओं को गर्भपात का अधिकार मिला हुआ है। पूरे अमेरिका में इसपर तहलका मचा हुआ है कि क्या देश एक बार फिर से आधा दशक पीछे चला जाएगा? यानी क्या देश फिर से उस रूढ़िवादी और दकियानूसी दौर में लौट रहा है जहाँ महिलाओं का अधिकार कम था?
अमेरिका में यह बहस तब शुरू हो गई है जब गर्भपात के अधिकार पर आने वाला सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का मसौदा लीक हो गया है। 'पोलिटिको' ने सोमवार को इस पर एक ख़बर प्रकाशित की और लीक हुए प्रारंभिक मसौदे को सार्वजनिक कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए मसौदे में बहुमत राय के अनुसार अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 'रो बनाम वेड' के फ़ैसले को पलटने के लिए मतदान किया है। सुप्रीम कोर्ट ने क़रीब 50 साल पहले 'रो बनाम वेड' फ़ैसले में देश भर में गर्भपात को वैध कर दिया था। उस समय यह फ़ैसला प्रगतिशील जजों ने दिया था जो लोगों के अधिकार की पैरवी करते थे, लेकिन अब जो सुप्रीम कोर्ट का मसौदा सामने आया है उसमें रूढ़िवादी सोच वाले जज बहुसंख्यक में हैं।
हालाँकि, पोलिटिको ने रिपोर्ट दी है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने 'रो बनाम वेड' फ़ैसले को उलटने के लिए आंतरिक रूप से मतदान किया है, लेकिन अंतिम निर्णय सुनाए जाने से पहले मसौदे की राय बदल भी सकती है। हालाँकि, इसकी उम्मीद कम ही लगती है। यदि अदालत वास्तव में 'रो बनाम वेड' को उलटने का फ़ैसला करती है तो यह अमेरिकी समाज और राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है।
यह बदलाव क्या हो सकता है, इसको जानने से पहले यह जान लें कि 'रो बनाम वेड' फ़ैसला क्या था। 'रो बनाम वेड' अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक निर्णय था जिसमें कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान बिना सरकारी दखल के एक गर्भवती महिला की गर्भपात कराने की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले ने कई संघीय और राज्य के गर्भपात कानूनों को रद्द कर दिया था।
'रो बनाम वेड' फ़ैसला
दरअसल, यह मामला 1969 से शुरू होता है। टेक्सास राज्य की नोर्मा मैककोर्वे (छद्म नाम जेन रो) 1969 में तीसरी बार गर्भवती थीं, यानी उनके दो बच्चे पहले ही जन्म ले चुके थे। मैककोर्वे गर्भपात कराना चाहती थीं लेकिन टेक्सास में गर्भपात अवैध था। वहाँ गर्भपात की तभी इजाजत थी जब मां के जीवन को बचाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी हो। उन्होंने अमेरिकी संघीय अदालत में स्थानीय जिला अटॉर्नी हेनरी वेड के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया। उसमें आरोप लगाया गया कि टेक्सास के गर्भपात क़ानून असंवैधानिक थे। फ़ैसला उनके पक्ष में अया। लेकिन बाद में टेक्सास ने सीधे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
जनवरी 1973 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मैककोर्वे यानी जेन रो के पक्ष में 7-2 से फ़ैसला दिया और इस तरह ऐतिहासिक फ़ैसले में गर्भपात का अधिकार मिल गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में चौदहवाँ संशोधन 'गोपनीयता का अधिकार' देता है जो एक गर्भवती महिला को यह चुनने का अधिकार देता है कि उसे गर्भपात कराना है या नहीं। इसने यह भी फ़ैसला सुनाया कि यह अधिकार पूर्ण नहीं है और महिलाओं के स्वास्थ्य और प्रसवपूर्व जीवन-रक्षा में संतुलन होना चाहिए।
लेकिन पोलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार अब सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए मसौदे में उस फ़ैसले को पलटने की तैयारी है। उस रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के रूढ़िवादी न्यायमूर्ति सैमुअल अलिटो ने मसौदे की राय में लिखा है- "रो (रो बनाम वेड फ़ैसला) शुरू से ही ग़लत था।"
अलिटो की राय के आधार पर अदालत ने पाया कि गर्भावस्था के 24-28 सप्ताह के बीच गर्भपात की अनुमति देने वाला 'रो बनाम वेड' पर गलत तरीके से निर्णय लिया गया क्योंकि अमेरिकी संविधान में गर्भपात के अधिकार का कोई विशेष उल्लेख नहीं है।
लीक हुए दस्तावेज के अनुसार अलिटो ने कहा है, 'गर्भपात एक गहरा नैतिक सवाल खड़ा करता है। संविधान प्रत्येक राज्य के नागरिकों को गर्भपात को नियंत्रित करने या प्रतिबंधित करने से नहीं रोकता है।'
तो सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट के इस लीक हुए मसौदे के अनुसार यदि फ़ैसला आया तो क्या पूरे अमेरिका में गर्भपात का अधिकार ख़त्म हो जाएगा? इसका जवाब है- नहीं।
कुछ राज्यों में गर्भपात का अधिकार रहेगा
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार समझा जाता है कि 22 राज्यों में लेजिसलेचर (विधानमंडल) लगभग निश्चित रूप से गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने या काफी हद तक प्रतिबंधित करने के लिए आगे बढ़ेंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार इन 22 राज्यों में ही अमेरिका में बच्चे पैदा करने की उम्र की 42 फ़ीसदी महिलाएँ रहती हैं।
इसका एक मतलब यह भी है कि जो राज्य गर्भपात को प्रतिबंधित नहीं करना चाहेंगे वहाँ क़ानूनी रूप से गर्भपात करने का विकल्प रहेगा। लेकिन यहाँ भी पेचीदगियाँ हैं। इन आशंकाओं की वजह से सोशल मीडिया पर विरोध भी हो रहा है।
समझा जाता है कि गर्भपात प्रतिबंध वाले राज्यों में जो कुछ महिलाएँ राज्य से बाहर यात्रा करने में सक्षम होंगी, वे तो गर्भपात करा लेंगी, लेकिन उनका क्या होगा जो ऐसा करने में सक्षम नहीं होंगी यानी ग़रीब व सुविधाविहीन घरों की महिलाओं का। सुविधा संपन्न घरों की महिलाओं की गर्भपात की गोलियों तक पहुँच होगी, भले ही कुछ मामलों में यह अवैध है। जो महिलाएँ गरीब हैं, अनचाहे रूप से गर्भवती हो जाती हैं और गर्भपात पर प्रतिबंध के चलते बच्चे को जन्म देती हैं, उनके पालन-पोषण का ज़िम्मा कौन उठाएगा? वैसे, यह ज़िम्मा सरकारें सामाजिक सुरक्षा के तहत उठाती हैं। लेकिन अमेरिका में सामाजिक सुरक्षा अन्य अमीर देशों की तुलना में उतनी ठीक नहीं है।
अमेरिकी राज्यों में ही कुछ राज्यों में दूसरों की तुलना में सामाजिक सुरक्षा अलग-अलग स्तर की है।
दूसरे ख़तरे भी बढ़ेंगे?
गर्भपात पर प्रतिबंध के चलते दूसरी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की दिक्कत भी बढ़ सकती है। ऐसा इसलिए कि जब अमेरिका में 1973 से पहले गर्भपात पर अधिकतर राज्यों में प्रतिबंध था तब वहाँ ऐसे ही हालात थे। 1973 में सुप्रीम कोर्ट के रो बनाम वेड फ़ैसले से पहले सिर्फ़ 4 राज्यों में गर्भपात क़ानूनी रूप से वैध था और 13 अन्य राज्यों में स्वास्थ्य कारणों के आधार पर इसकी इजाजत दी जा सकती थी। तब ऐसे हालात थे कि दूसरे राज्यों से महिलाएँ गर्भपात कराने उन राज्यों में जाया करती थीं जहाँ गर्भपात वैध था।
लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम थी और ये अमीर घरों की महिलाएँ थीं। ग़रीब और सुविधाविहीन घरों की महिलाएँ कोट हैंगर, रसायन, अकुशल गर्भपात करने वालों और अन्य ख़तरनाक तरीक़ों की ओर रुख करती थीं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 1960 के दशक की शुरुआत में शिकागो में कुक काउंटी अस्पताल हर साल अवैध रूप से अवैध गर्भपात के कारण ख़तरनाक स्थिति में पहुँची 4,000 से अधिक महिलाओं का इलाज कर रहा था।
हालाँकि, अब हालात वैसे नहीं हैं और इंटरनेट के जमाने में यह काफ़ी आसान हो गया है। लेकिन फिर भी अवैध रूप से गर्भपात कराने से ख़तरे बने रहेंगे। ऐसा अभी भी देखने को मिलता है।
फ़ैसले के पलटने से क्या असर होगा?
राज्य में गर्भपात क़ानून हटाना गर्भपात विरोधी आंदोलन का लक्ष्य रहा है। अब कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के संभावित फ़ैसले के बाद गर्भपात विरोधी आंदोलन वाले कुछ आगे बढ़ेंगे और पूरे देश में गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनवाना चाहेंगे। बहरहाल, कहा जा रहा है कि जिन राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध है, उनमें सबसे ज़्यादा प्रभावित महिलाएँ होंगी जो आसानी से यात्रा नहीं कर सकती हैं। ज़्यादा प्रभावित होने वाली महिलाओं में अपेक्षाकृत गरीब, अश्वेत, लैटिना, किशोर, बिना बीमा वाली और आप्रवासी महिलाएँ होंगी। यह संख्या बहुत बड़ी है।
यही वजह है कि गर्भपात से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए मसौदे ने अचानक कई अमेरिकियों को झकझोर दिया है। वैसे, गर्भपात अमेरिकी राजनीति में सबसे विभाजनकारी मुद्दों में से एक है और लगभग आधी सदी से यह सबसे बड़े मुद्दों में से एक है।
रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा है, 'यह निर्णय महिलाओं की गरिमा, अधिकारों और जीवन पर सीधा हमला है। दशकों से चले आ रहे व्यवस्थित क़ानून का ज़िक्र क्या किया जाए।' उन्होंने कहा है, 'यह महिलाओं को मार डालेगा और उन्हें अपने अधीन कर लेगा। अधिकांश अमेरिकियों को लगता है कि गर्भपात क़ानूनी होना चाहिए। क्या घोर कलंक है।'
जैसी प्रतिक्रिया हिलेरी क्लिंटन ने दी है, कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया ट्विटर पर बड़ी संख्या में महिलाओं और महिला अधिकार की पैरवी करने वालों ने भी दी है। आम तौर पर ये प्रतिक्रियाएँ यही सवाल उठाती दिखती हैं कि क्या अमेरिका पीछे की ओर लौट रहा है, एक रूढ़िवादी समाज की ओर? या फिर यह महज एक इत्तिफाक है कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में रूढ़िवादी जज 6-3 से बहुसंख्यक में हैं और इसलिए ऐसा फ़ैसला आ गया? रिपब्लिकन नेता और पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में खाली हुए पदों पर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में 3 जजों की नियुक्ति हुई थी और इसके साथ ही रूढ़िवादी जजों की संख्या बहुसंख्यक हो गई। बता दें कि रिपब्लिकन पार्टी रूढ़िवादी विचारों वाली पार्टी मानी जाती है। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन गर्भपात पर पाबंदी लगाना तो महिलाओं के हित में नहीं ही हो सकता है!