
परमाणु क़रार पर ट्रंप की धमकी, ईरान की पलटवार की तैयारी! तनाव बढ़ेगा?
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया है। सरकारी मीडिया तेहरान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने डोनाल्ड ट्रंप की बमबारी धमकी के आगे झुकने से इनकार कर दिया है और ज़रूरत पड़ने पर अमेरिका से संबंधित ठिकानों पर हमला करने के लिए वह अपने भूमिगत मिसाइल शस्त्रागार को तैयार कर रहा है।
रिपोर्टों के मुताबिक़, तेहरान ने किसी भी संभावित हमले का जवाब देने के लिए कमर कस ली है। यह घटनाक्रम तब सामने आया है जब परमाणु समझौते को लेकर दोनों देशों के बीच पहले से ही तनातनी बनी हुई है। ट्रंप ने हाल ही में ईरान को दो महीने की समयसीमा दी थी कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम पर एक नया समझौता करे, नहीं तो सैन्य कार्रवाई का सामना करे। तो क्या अब यह नया घटनाक्रम पश्चिम एशिया में एक और बड़े संघर्ष की ओर इशारा कर रहा है?
ट्रंप की ताज़ा धमकी के क्या मायने हैं, यह समझने से पहले यह जान लें कि आख़िर ईरान के साथ परमाणु समझौता क्या है। अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते का मुद्दा दशकों से वैश्विक कूटनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा का एक केंद्रीय विषय रहा है। संयुक्त व्यापक कार्य योजना यानी जेसीपीओए के रूप में जाने जाना वाला ईरान परमाणु समझौता 2015 में अमेरिका व ईरान और रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस व जर्मनी के बीच हस्ताक्षरित किया गया था। इसका उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना था। इसके बदले में ईरान को आर्थिक प्रतिबंधों से राहत देने का वादा किया गया।
यह समझौता तब तक प्रभावी रहा जब तक डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में अमेरिका को इससे बाहर नहीं निकाल लिया। ट्रंप ने कहा था कि यह ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से पूरी तरह रोकने में सक्षम नहीं था। ट्रंप ने इसे सबसे खराब सौदा करार देते हुए दावा किया था कि यह ईरान के मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को नियंत्रित करने में विफल रहा। इसके बाद से ईरान ने यूरेनियम संवर्धन की सीमा को पार कर लिया और अब वह लगभग हथियार-ग्रेड यूरेनियम का उत्पादन कर रहा है, जो केवल परमाणु हथियार रखने वाले देश ही करते हैं।
ट्रंप ने हाल ही में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई को एक पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने बातचीत का प्रस्ताव रखा था। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि समझौता नहीं हुआ तो ईरान को ऐसी बमबारी का सामना करना पड़ेगा जैसा पहले कभी नहीं देखा गया।
अमेरिका ने भारतीय महासागर में डिएगो गार्सिया सैन्य अड्डे पर बी-2 स्टील्थ बॉम्बर तैनात किए हैं, जो ईरान के भूमिगत परमाणु ठिकानों को तबाह करने में सक्षम हैं।
ईरान ने ट्रंप के प्रस्ताव को धमकी भरा रवैया करार देते हुए सीधी बातचीत से इनकार कर दिया है। राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान ने कहा कि ओमान के माध्यम से अप्रत्यक्ष वार्ता की संभावना खुली है, लेकिन ट्रंप की दबाव नीति के रहते कोई प्रगति मुश्किल है। इस बीच, ईरान की कट्टरपंथी रिवोल्यूशनरी गार्ड ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें भूमिगत मिसाइल ठिकानों को दिखाया गया। इसमें वैसी मिसाइलें हैं जो अमेरिकी ठिकानों और इसराइल को निशाना बना सकती हैं। ईरान ऑब्जर्वर ने इस वीडियो को एक्स पर साझा किया है।
⚡️BREAKING
— Iran Observer (@IranObserver0) March 25, 2025
Iran has unveiled perhaps its largest missile city ever that can destroy all US assets in the region
The new underground missile base houses thousands of precision-guided missiles such as Kheibar Shekan, Haj Qasem, Ghadr-H, Sejjil, Emad and others pic.twitter.com/QYR24ZN7TS
ईरान के संसद अध्यक्ष मोहम्मद बाघर कालिबाफ ने चेतावनी दी कि अगर उसकी संप्रभुता पर हमला हुआ तो 'यह क्षेत्र में बारूद के ढेर में चिंगारी की तरह होगा।' ईरान ने यह भी संकेत दिया कि वह डिएगो गार्सिया जैसे अमेरिकी ठिकानों पर हमला कर सकता है। यह स्थिति क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकती है, खासकर जब इसराइल और ईरान पहले से ही ग़ज़ा और लेबनान में संघर्षों को लेकर आमने-सामने हैं।
ईरान और अमेरिका के बीच यह तनाव कई संभावित नतीजों की ओर इशारा करता है। यदि ट्रंप सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुनते हैं, तो यह मध्य पूर्व में एक बड़े युद्ध को जन्म दे सकता है, जिसमें इसराइल, सऊदी अरब और अन्य अमेरिकी सहयोगी शामिल हो सकते हैं। ईरान अपनी परमाणु नीति बदल सकता है और खामेनेई के फतवे को दरकिनार करते हुए परमाणु हथियार बनाने की दौड़ शुरू कर सकता है, जिसे वह अस्तित्व की रक्षा के लिए जरूरी बता रहा है। अप्रत्यक्ष वार्ता के ज़रिए कोई सीमित समझौता हो सकता है, लेकिन ट्रंप की सख्त शर्तें और ईरान का अड़ियल रवैया इसे मुश्किल बनाता है।
ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही प्रतिबंधों से जूझ रही है और उसकी मुद्रा रियाल का मूल्य गिरता जा रहा है। ऐसे में वह सैन्य ताक़त दिखाकर अपनी स्थिति मज़बूत करना चाहता है। दूसरी ओर, ट्रंप की रणनीति 'अधिकतम दबाव' के ज़रिए ईरान को झुकाने की है, लेकिन यह उल्टा भी पड़ सकता है। माना जा रहा है कि ईरान के लिए अमेरिका के सामने पूरी तरह झुकना आत्मघाती होगा, क्योंकि इससे उसकी क्षेत्रीय साख ख़तरे में पड़ सकती है।
ईरान और अमेरिका के बीच यह ताज़ा टकराव वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। ट्रंप की धमकी और ईरान की मिसाइल तैयारियों ने परमाणु संकट को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। आने वाले हफ्तों में यह पता चलेगा कि क्या यह तनाव युद्ध में बदलता है या कूटनीति से सुलझता है। लेकिन मौजूदा हालात से बातचीत दूर की कौड़ी लगती है।
(रिपोर्ट का संपादन: अमित कुमार सिंह)