युद्ध का नतीजा यूक्रेन के लिए कुछ भी हो, लेकिन रूस के लिए नतीजे सामने हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के नेतृत्व में नाटो देशों ने जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं उससे रूस की अर्थव्यवस्था अब छटपटाने लगी है। तो क्या रूस नाटो के इस नये 'युद्ध' तकनीक के जाल में फँस गया है? क्या नाटो यह लड़ाई सैनिकों से नहीं, बल्कि आर्थिक प्रतिबंध से लड़ रहा है?
यूक्रेन में रूसी हमले के बाद यूरोपीय यूनियन और नाटो देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध के कुछ दिनों में ही रूस की अर्थव्यवस्था पर इसके नतीजे दिखने लगे हैं। रूसी मुद्रा का जबरदस्त अवमूल्यन हुआ है। यानी रूसी मुद्रा का मूल्य गिर गया है। बुधवार को तो एक डॉलर के लिए 117 रूसी रूबल चुकाने पड़ रहे हैं। रूस के केंद्रीय बैंक को अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए ब्याज दर दुगुना करना पड़ा है और यह 9.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है। केंद्रीय बैंक जमा को बढ़ावा देने के लिए ऐसा करते हैं। लेकिन यह ब्याज दर अप्रत्याशित है।
रूबल के अवमूल्यन के कारण रूसी उद्यमों को अपने निर्यात राजस्व का 80% बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। रूस की अर्थव्यवस्था को अब काफी हद तक असामान्य ब्याज दरों पर जुटाई गई घरेलू बचत पर निर्भर होना पड़ेगा क्योंकि उसकी अपनी जमा राशि का 21% हिस्सा वर्तमान में विदेशी मुद्रा में है जो कि उसके काम की नहीं है। उच्च ब्याज दर का बड़ा नुक़सान यह भी है कि इससे अर्थव्यवस्था में विश्वास कम होगा और अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से कमजोर कर देगा।
तो सवाल है कि क्या यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के बाद पश्चिमी देशों के ऐसे प्रतिबंध से मुक़ाबला करने के लिए रूस की कोई योजना है? इसका जवाब यह हो सकता है कि रूस के पास लगभग 630 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार और सोना है। इसका इस्तेमाल आर्थिक प्रतिबंधों के मुक़ाबले से क़िले के रूप में रणनीतिक तौर पर किया जा सकता है।
रूस ने 2014 में क्रीमिया पर कार्रवाई के दौरान अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों से मुक़ाबले के लिए ऐसा किया था और शायद इस बार के लिए भी इसने ऐसा ही कुछ आकलन किया होगा। लेकिन इस बार के अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, ब्रिटेन और जापान के आर्थिक प्रतिबंध इतने बड़े पैमाने पर असर करने वाले साबित हो सकते हैं कि उसके बैलेंस के 630 अरब डॉलर में से 70 फ़ीसदी जोखिम में हो सकते हैं। ऐसा इसलिए भी कि वह आर्थिक प्रतिबंधों के कारण ही इस विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन जैसे देशों ने रूस के बैंकों को स्विफ्ट सिस्टम से बाहर कर दिया है। स्विफ्ट दुनिया भर के बैंकों और आर्थिक लेनदेन करने वाली संस्थाओं का मैजिसिंग सिस्टम है जो लेनदेन को आसान बनाता है। दुनिया के 200 देशों की 11 हज़ार कंपनियाँ और संस्थाएँ इससे जुड़ी हुई हैं।
कभी शक्तिशाली महाशक्ति रही रूसी अर्थव्यवस्था अब उस स्थिति में नहीं है। उसकी अर्थव्यवस्था आईएमएफ के आंकड़ों के अनुसार इटली की तुलना में भी छोटी है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद लगभग 1.7 ट्रिलियन डॉलर है। इस लिहाज से आर्थिक प्रतिबंध रूस के लिए गंभीर परिणाम लेकर आ सकते हैं।
ऐसी स्थिति में अब यदि रूसी सेना यूक्रेन में सफल भी होती है तो क्या रूस जीत का जश्न मनाने की स्थिति में होगा? आर्थिक प्रतिबंधों के नतीजे अभी भले ही उतने गंभीर नहीं दिख रहे हैं, लेकिन बाद में क्या रूस उससे उबर पाएगा? क्या सैन्य कार्रवाई से पहले उसने अपनी अर्थव्यवस्था की स्थिति संभालने के लिए पर्याप्त रूप से होमवर्क नहीं किया था या फिर अमेरिका और यूरोपीय देशों से ऐसे आर्थिक 'हमले' का उसका आकलन ग़लत साबित हुआ? किसी भी स्थिति में क्या यह रूस के लिए हार से कम है?