ऐसे समय जब रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप डोमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन से लगभग 40 सीटों से पीछे चल रहे हैं और उनका जीतना बेहद मुश्किल हो चुका है, उनकी प्रचार टीम ने पेनसिलविनिया, मिशिगन और विस्कॉन्सिन में अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
ट्रंप के लोगों ने अदालत में याचिका दायर कर इन राज्यों में वोटों की गिनती रोकने की माँग की है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा गया है कि वह बताए कि क्या पेनसिलविनिया में मतदान के तीन दिन बाद पहुँचे पोस्टल बैलट की गिनती की जा सकती है या नहीं।
अदालत क्यों
ट्रंप की टीम ने अदालत में दायर याचिका में कहा है कि पेनसिलविनिया में वोटों की गिनती तब तक रोक दी जाए जब तक सभी बैलट को एक बार फिर न देख लिया जाए। ट्रंप पेनसिलविनिया में बाइडन से आगे चल रहे हैं, पर वोटों का अंतर लगातार कम होता जा रहा है।दूसरी ओर, मिशिगन में वह अपने प्रतिद्वंद्वी से पीछे हैं। विस्कॉन्सिन में काँटे की टक्कर है, लेकिन बाइडन का पलड़ा भारी है और वह धीमी रफ़्तार से ही सही, लेकिन लगातार आगे बढ़ते ही जा रहे हैं।
इसके पहले डोनल्ड ट्रंप ने अपनी जीत का दावा किया था और कहा कि उन्हें डर है कि वोटों की गिनती में घपला किया जाएगा।
उसके बाद बुधवार को ही ट्रंप ने कई ट्वीट किए और कहा कि वोटों की गिनती में गड़बड़ियाँ की जा रही हैं और उन्हें छल से हराया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका के साथ धोखा किया जा रहा है।
ट्वीट
उन्होंने ट्वीट किया, “यह कैसे हो रहा है कि जब कभी वे लोग कूड़े के ढेर पर पोस्टर बैलट पाते हैं, वे विनाशकारी होते हैं।”
उन्होंने एक दूसरे ट्वीट में कहा, “उन्हें बाइडन के लिए हर जगह वोट मिल रहे हैं-पेनसिलविनिया, विस्कॉन्सिन और मिशिगन में भी। हमारे लिए देश के लिए कितना बुरा है!”
एक दूसरे ट्वीट में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, “कल रात को मैं तमाम जगहों पर जीत रहा था, वे वोट कहां गायब हो गए”
ट्रंप का जीतना मुश्किल
उसके साथ ही उनकी टीम ने अदालत में याचिका भी दायर कर दी।यह ख़बर लिखी जाने तक जो बाइडन 253 और डोनल्ड ट्रंप 213 सीटों पर आगे चल रहे हैं, जबकि 466 सीटों का रुझान साफ हो चुका है। अमेरिकी चुनाव के प्रावधानों के अनुसार, 538 इलेक्टोरल वोटों यानी सीटों में 270 सीटें जीतने वाला विजेता घोषित कर दिया जाएगा। बाइडन और ट्रंप के बीच 40 सीटों का अंतर हो चुका है और समझा जाता है कि ट्रंप के लिए चुनाव जीतना अब बेहद मुश्किल हो चुका है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ट्रंप ने चुनाव परिणाम की घोषणा में देर करने और अड़ंगा लगाने के मक़सद से अदालत का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट और ज़्यादातर राज्य अदालतों में जज रिपब्लिकन रुझान के हैं और अदालतों की निष्पक्षता पर सवाल उठता है।
लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब अमेरिका में चुनाव के नतीजों को चुनौती दी गई है या अदालत में मामला ले जाया गया है।
जॉज बुश बनाम अल गोर
साल 2000 के चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज बुश से सिर्फ 537 वोटों के अंतर से हार गए डेमोक्रेट अल गोर ने सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर कर फ़्लोरिडा में वोटों की गिनती फिर से कराने की मांग की।सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले में कहा कि यह 14वें संशोधन का उल्लंघन होगा और तयशुदा समय सीमा के अंदर यह काम पूरा नहीं किया जा सकता है। अदालत ने 5-4 के निर्णय से वोटों की फिर से गिनती की मांग को खारिज कर दिया। अल गोर ने इसे स्वीकार कर लिया और मामला वहीं ख़त्म हो गया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में कई दिन लग गए और तब तक राजनीतिक अनिर्णय की स्थिति बनी रही।
इसके पहले सिर्फ एक बार 1876 में रदरफ़ोर्ड बी हेज और सैमुएल टिल्डन के बीच के मुक़ाबले में मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था।
ट्रंप ने सुप्रीम कोर्ट में अभी सिर्फ पेनसिलविनिया में मतदान के तीन दिन बाद मिले पोस्टल बैलट के बारे में राय मांगी है।
लेकिन यदि वे पूरे चुनाव नतीजे को ही सुप्रीम कोर्ट ले गए या अलग-अलग राज्यों के मामलों को सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग उठाया या अलग-अलग राज्यों में मामला उठाया तो स्थिति काफी गंभीर हो सकती है।
क्या कहना है संविधान
अमेरिकी संविधान के अनुसार, 20 जनवरी को नया राष्ट्रपति पदभार संभालेंगे, यानी उस समय तक ट्रंप राष्ट्रपति हैं। इसे ट्रांजिशन पीरियड कहते हैं। पहले यह अवधि लंबी होती थी और नया राष्ट्रपति 4 मार्च को पदभार संभालता था। लेकिन साल 1933 में 20वें संशोधन के ज़रिए इसे घटा कर 20 जनवरी कर दिया गया।लेकिन यदि ट्रंप पीछे चल रहे सभी राज्यों के मामलों को अदालत तक ले गए तो क्या होगा, यह अधिक चिंता की बात है। जो बाइडन ने विश्वास जताया है कि वह चुनाव जीत जाएंगे। लेकिन उन्होंने कहा है कि जब तक हर वोट की गिनती नहीं हो जाती है, तब तक प्रक्रिया पूरी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि अंतिम वोट गिने जाने तक लोगों को इंतजार करना चाहिए।
बाइडन भी हैं तैयार!
डेमोक्रेट उम्मीदवार के प्रचार मैनेजर ने कहा है कि उनके वकीलों की टीम तैयार है और अदालत में सभी मामलों का मुक़ाबला किया जाएगा। ऐसे में इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि ट्रंप चाहें तो मामले को लंबा खींच सकते हैं। अल गोर ने 2000 में तो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को स्वीकार कर लिया था, लेकिन यदि ट्रंप ने यह उदारता नहीं दिखाई तो क्या होगा।
अमेरिकी संविधान के अनुसार, सबसे अधिक पॉपुलर वोट पाने वाला राष्ट्रपति नहीं बनता है, बल्कि सबसे अधिक इलेक्टोरल वोट पाने वाला देश का मुखिया चुना जाता है। हर राज्य में जनसंख्या के आधार पर इलेक्टोरल वोट होता है।
कैसे होता है फ़ैसला
अधिकतर राज्यों में 'विनर गेट्स ऑल' का नियम है, यानी जिसे राज्य के अधिक इलेक्टोरल वोट मिल जाएंगे, उसके खाते में उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट चले जाएंगे। मसलन, यदि पेनसिलविनिया के 20 इलेक्टोरल वोट में से 11 ट्रंप को मिल गए तो सभी 20 इलेक्टोरल वोट उनके खाते में गिने जाएंगे। चुनाव ख़त्म होने के बाद हर राज्य इलेक्टर्स चुनते हैं।इसके बाद कांग्रेस के दोनों सदनों यानी सेनेट और हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव्स की बैठक होगी। इस बैठक में सभी उम्मीदवारों को मिले इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों की गिनती होगी और विजेता घोषित किया जाएगा। इस बार यह बैठक 6 जनवरी को होगी।
लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि अदालत का फ़ैसला 14 दिसंबर तक नहीं आया और आया तो ट्रंप ने उसे मानने से इनकार कर दिया तो क्या होगा।
चुप है संविधान
इसकी अगली कड़ी में ट्रंप इस मामले को कांग्रेस तक ले जा सकते हैं। कांग्रेस इस पर बैठक करेगी, बहस करेगी और सुप्रीम कोर्ट की राय लेगी या उसे ही यह मामला सौंप देगी।अब अगला सवाल यह है कि यदि सब काम 20 जनवरी 2021 तक पूरा नहीं हुआ तो क्या होगा।
अमेरिकी संविधान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है कि इस स्थिति में क्या होगा। मौजूदा राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति का कार्यकाल 20 जनवरी 2021 को ख़त्म हो जाएगा।
भारत के संविधान की तरह अमेरिकी संविधान में संतुलन नहीं है। राष्ट्रपति के बाद कौन या उस स्थिति में कांग्रेस या सुप्रीम कोर्ट की क्या भूमिका होगी, साफ नहीं है।
ट्रंप जिद पर अड़ गए तो अमेरिका के सामने बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा कर सकते हैं।