पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ आरिफ अल्वी ने पाकिस्तान चुनाव आयोग से कहा है कि वो चुनाव की तारीखें सुझाए। राष्ट्रपति ने बुधवार को आयोग को संविधान के अनुच्छेद 224 (2) के तहत देश में आम चुनाव कराने की तारीखों का प्रस्ताव देने के लिए पत्र लिखा। इस बीच पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक उसने कोई फैसला नहीं सुनाया था।
नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर द्वारा पीएम इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक संकट बना हुआ है। राष्ट्रपति ने 3 अप्रैल को इमरान की सलाह पर संसद को भंग कर दिया।
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में डिप्टी स्पीकर के फैसले की वैधता के मामले की सुनवाई कर रहा है।
चुनाव आयोग को भेजे गए राष्ट्रपति के पत्र में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 48(5)(ए) और अनुच्छेद 224(2) के तहत, राष्ट्रपति को नेशनल असेंबली के भंग करने की तारीख से 90 दिनों के भीतर आम चुनाव की तारीख तय करनी है। आम चुनाव की तारीख की घोषणा करने के संविधान के जनादेश को पूरा करने के लिए चुनाव अधिनियम, 2017 की धारा 57 (1) के तहत चुनाव आयोग के साथ सलाह मशविरे की जरूरत है।
आयोग के पास विकल्प
मंगलवार को डॉन अखबार की रिपोर्ट में पाकिस्तान चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से कहा गया था कि आयोग विभिन्न कानूनी अड़चनों और चुनौतियों का हवाला देते हुए तीन महीने के भीतर चुनाव नहीं कराने को कह सकता है।
हालांकि, चुनाव आयोग को यह स्पष्ट करना पड़ा कि उसने चुनाव कराने के बारे में कोई बयान जारी नहीं किया था। लेकिन उसने यह नहीं बताया कि वह तीन महीने में चुनाव कराने के लिए तैयार है या नहीं।
इस बीच, सूत्रों ने डॉन को बताया कि चुनाव आयोग ने कम से कम समय में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया है। सूत्रों ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सिकंदर सुल्तान राजा नेशनल असेंबली भंग करने से उत्पन्न संवैधानिक संकट और तैयारियों पर चर्चा करने के लिए बैठकों की अध्यक्षता कर रहे है। आयोग विचार कर रहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी के फैसले को खारिज करने से इनकार कर दिया तो अविश्वास प्रस्ताव और उसके बाद विधानसभा भंग करने पर क्या स्थिति बनेगी।
चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 17 (2) आयोग को हर जनगणना के आधिकारिक रूप से अधिसूचित होने के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करने का निर्देश देती है। वर्तमान परिसीमन 2017 की जनगणना के अंतिम परिणामों के आधार पर कानूनी प्रावधान की एकमुश्त छूट के तहत किया गया था। पिछले साल मई में जनगणना के अंतिम परिणामों के प्रकाशन के बाद भी, आयोग ने परिसीमन नहीं किया।