नेपाल के प्रधानमंत्री ओली संसद को क्यों करवा रहे हैं भंग?

02:14 pm Dec 20, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

नेपाल में सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में अंतर्कलह के बीच प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने नेपाली संसद को भंग करने की अनुशंसा कर दी है। उन्होंने रविवार सुबह कैबिनेट की एक आपात बैठक के दौरान यह निर्णय लिया और इस अनुशंसा को देश के राष्ट्रपति के पास भेज दिया। उन्होंने यह फ़ैसला तब किया है जब पिछले हफ्ते जारी किए गए संवैधानिक परिषद अधिनियम में संशोधन से जुड़े एक अध्यादेश को लेकर वह घिर गए थे। अब इस ताज़ा फ़ैसले से नेपाल में राजनीतिक संकट बढ़ता दिख रहा है। 

नेपाल में सत्ता को लेकर सत्ताधारी पार्टी में लंबे समय से खींचतान चल रही है और उसी का नतीजा है कि ओली ने संसद को भंग करने की अनुशंसा की है। सत्ता पाने का यह संघर्ष मौजूदा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रीमियर पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के बीच चल रहा है।

पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' की अगुवाई में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी यानी एनसीपी के प्रतिद्वंद्वी गुटों से पीएम ओली पर काफ़ी ज़्यादा दबाव रहा है। प्रतिद्वंद्वियों में पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल भी शामिल हैं। प्रचंड और माधव नेपाल काफ़ी लंबे समय से ओली को प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं। ओली और प्रतिद्वंद्वियों के बीच आरोप-पत्यारोप का दौर लंबे समय से चल रहा है। 

जून महीने में ही ओली ने दावा किया था कि उनका तख्ता पलट करने का प्रयास किया जा रहा था। उन्होंने यह दावा तब किया था जब उनकी सरकार ने देश का नया राजनीतिक मैप जारी किया था जिसमें भारत के तीन क्षेत्रों को शामिल किया हुआ दिखाया गया था। 

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंद्वियों में इस विवाद के बीच ही ताज़ा मामला यह हुआ कि इसी हफ़्ते एक अध्यादेश पर विवाद हो गया और प्रधानमंत्री ओली बेहद दबाव में आ गए।

काठमांडू पोस्ट अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, 'पीएम ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को वापस लेने का दबाव था जिसे उन्होंने मंगलवार को जारी किया था और उसी दिन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा हरी झंडी मिल गई थी।' 

संवैधानिक परिषद अधिनियम में संशोधन करने का अध्यादेश 15 दिसंबर को पेश किया गया था, और कथित रूप से 'चेक और बैलेंस' के सिद्धांत को कमजोर कर दिया था। इसने संवैधानिक परिषद को बैठक बुलाने की अनुमति दी, यदि इसके अधिकांश सदस्य इसमें भाग लेते हैं। 

संवैधानिक परिषद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होती है और इसमें मुख्य न्यायाधीश, स्पीकर, नेशनल असेंबली के चेयरपर्सन, विपक्ष के नेता और इसके सदस्यों के रूप में डिप्टी स्पीकर शामिल होते हैं। यह विभिन्न संवैधानिक निकायों के लिए महत्वपूर्ण नियुक्ति की सिफारिश करती है।

इस बीच जब ओली ने संसद को भंग करने की सिफारिश की तो उनके इस फ़ैसले को असंवैधानिक बताया जाने लगा। एनसीपी नेता माधव कुमार नेपाल ने साफ़ तौर पर इस फ़ैसले को असंवैधानिक क़रार दिया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार संविधान के जानकार विशेषज्ञों ने सरकार के ताज़ा फ़ैसले को असंवैधानिक क़रार दिया है। 

नेपाल के संविधान के प्रावधान के अनुसार, बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री द्वारा संसद को भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है।