क्या अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते में एक नया मोड़ आने वाला है जहाँ जो बाइडन प्रशासन ने रियाद का राजकाज देखने वाले शहज़ादे मुहम्मद-बिन-सलमान को कड़ा संकेत दिया है? क्या अमेरिका इसके बावजूद सऊदी शहज़ादे के ख़िलाफ़ किसी तरह का कदम उठा सकता है?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि पत्रकार जमाल खशोजी (खशोगी) की हत्या से जुड़ी रिपोर्ट आने के पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सऊदी शहजादे, जिन्हें एमबीएस भी कहा जाता है, उनसे बात नहीं की। बाइडन ने सीधे 85 साल के बुजुर्ग और अशक्त व बीमार रहने वाले शाह सलमान से बात की, जबकि पूरा राजकाज शहज़ादे के हाथ में है और व्यावहारिक तौर पर उन्हें ही असली राजा माना जाता है।
लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि क्लासीफ़ाइड फाइलों में जमाल खशोजी की हत्या के आदेश देने की ज़िम्मेदारी एमबीएस पर डालने के बावजूद बाइडन प्रशासन ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह उनके ख़िलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई करेगे।
क्या है मामला?
बता दें कि 59 साल के ख़शोगी सऊदी अरब सरकार की बहुत-सी नीतियों के मुखर आलोचक थे और इनके ख़िलाफ़ बेबाकी से लिखा करते थे। ख़ास तौर पर वह शहज़ादे मुहम्मद-बिन-सलमान के कटु आलोचक थे। वह अमेरिकी नागरिक थे और हाल के महीनों में सऊदी सरकार तरह-तरह के प्रलोभन देकर उन्हें सऊदी अरब बुलाने में लगी थी। अपने पुनर्विवाह के सिलसिले में उन्हें कुछ दस्तावेज़ों की ज़रूरत थी, जिसे लेने के लिए ही वह 2 अक्तूबर 2018 को इस्ताम्बुल में सऊदी कौंसुलेट गये थे, लेकिन उसके बाद वह अचानक ग़ायब हो गये। फिर उनका कुछ पता नहीं चला।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कहा है कि राष्ट्रपति बाइडन ने अपने सहयोगियों से साफ कहा कि वे सऊदी शहजादे से कोई बात नहीं करेंगे, वे सिर्फ़ सऊदी शाह से बात करेंगे। उसके बाद बाइडन ने शाह सलमान से बात की। समझा जाता है कि इसके जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति यह संकेत देने चाहते थे कि पत्रकार की हत्या में एमबीएस का नाम आने के कारण वे उनसे किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते।
लेकिन शाह सलमान 85 साल के हैं, बेहद बूढ़े हैं, अशक्त व बीमार हैं, वे राजकाज या प्रशासन नहीं देखते, वे किसी तरह का कोई फ़ैसला नहीं लेते। ये सारे काम उनके बेटे मुहम्मद बिन सलमान करते हैं जिनका सलमान की मौत के बाद शाह बनना लगभग तय है।
सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति बाइडन एमबीएस के ख़िलाफ़ किसी तरह का प्रतिबंध लगाएंगे? क्या वे वैसे प्रतिबंध भी लगाएंगे जो शहज़ादे के सहयोगियों पर ट्रंप प्रशासन ने लगाए थे?
क्या है संभावना?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऐसी किसी संभावना की गुंजाइश बेहद कम है। सऊदी अरब के पूर्व शहजादे मुहम्मद-बिन-नईफ़ के सलाहकार साद अलज़बरी ने 'द गार्जियन' अख़बार से कहा, "एमबीएस पर ट्रंप के दंतविहीन प्रतिबंधों का कोई असर नहीं पड़ा था। बाइडन प्रशासन को सख़्त कदम उठाने चाहिए और सऊदी अरब के राजनेताओं और जिन संस्थाओं के लोगों की वजह से जमाल खशोजी की हत्या हुई, उनके ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाना चाहिए।"
जो बाइडन ने राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान यह साफ़ संकेत दिया था कि वे खशोजी हत्याकांड की वजह से सऊदी अरब को 'अछूत' मानते हैं और उससे कोई रिश्ता रखना नहीं चाहते। इसके मद्देनज़र अब उन्हें कड़ा कदम उठाना चाहिए।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी संभावना बेहद कम है। स्नोक्राफ़्ट मिडिल ईस्ट सिक्योरिटी इनीशिएटिव नामक सुरक्षा थिंकटैंक के कर्स्टन फ़ोन्तेरोज़ ने 'द गार्जियन' अख़बार से कहा, "मुझे नहीं लगता है कि वे लोग एमबीएस पर व्यक्तिगत प्रतिबंध लगाएंगे। लेकिन वे कम से कम सऊदी अरब की सरकारी संस्थाओं और ख़ास कर निवेश करने वाली पीआईएफ़ पर रोक लगा सकते हैं।"
कर्स्टन फ़ोन्तेरोज़ ने यह भी कहा कि यह ज़रूर हो सकता है कि बाइडन प्रशासन एक बयान जारी कर कहे कि वह उनसे किसी तरह का संपर्क नहीं रखना चाहता है, वैसे भी वे इसका संकेत पहले ही दे चुके हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि मध्य-पूर्व के भौगोलिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में सऊदी अरब की भूमिका पहले की तरह ही बनी हुई है। अमेरिका सऊदी अरब पर कच्चे तेल के लिए निर्भर है, वहां से उसे अरबों डॉलर का निवेश मिलने की संभावना है, इसके अलावा रियाद अमेरिका से अरबों डॉलर के हथियार खरीद सकता है। ऐसे में बाइडन प्रशासन किसी सूरत में सऊदी अरब को नाराज़ नहीं कर सकता।