अफ़ग़ानिस्तान से आख़िरी अमेरिकी सैनिक भी लौट गए। अमेरिका ने इसकी पुष्टि की और तालिबान ने भी। 20 साल तक अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष करता रहा। अमेरिका ने जिस तालिबान को सत्ता से हटाया था आख़िरकार उसी तालिबान से वार्ता की। बातचीत के बाद जैसे-जैसे अमेरिकी सैनिक अपने देश लौटते रहे वैसे-वैसे तालिबान अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा जमाता गया। अब कट्टरपंथी इस्लामी तालिबान सत्ता में आ चुका है। आख़िरी अमेरिकी सैनिकों के लौटने के बाद काबुल में मंगलवार तड़के जश्न में गन फ़ायरिंक की आवाज़ें सुनी गईं और तालिबान ने इस घटना को एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में देखा।
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की वापसी बड़े उथल-पुथल के दौर में हुआ। हज़ारों अफ़ग़ान नागरिक भी देश छोड़कर निकलना चाहते थे लेकिन वे नहीं निकल पाए। इनमें से अधिकतर वे अफ़ग़ान हैं जिन्होंने उन देशों की मदद की थी और अब उन पर तालिबान के ख़तरे का अंदेशा है।
पश्चिमी देशों के अफ़ग़ानिस्तान से वापसी की आख़िरी तय सीमा 31 अगस्त को बढ़ाने की चर्चा भी हुई, लेकिन इस पर आगे बात नहीं बढ़ पाई। इस बीच काबुल एयरपोर्ट पर हुए धमाकों ने स्थिति को और नाजुक बना दिया। उसमें 100 से ज़्यादा अफ़ग़ानी तो मारे ही गए 13 अमेरिकी सैनिकी भी मारे गए। और इसके साथ ही आख़िरकार आज यानी 31 अगस्त की तय तारीख से पहले ही अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को अपना अभियान समेटना पड़ा।
अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के प्रवक्ता कारी यूसुफ़ ने कहा, 'अंतिम अमेरिकी सैनिक काबुल हवाई अड्डे से निकल गया है और हमारे देश को पूर्ण स्वतंत्रता मिली है।' 'रायटर्स' की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद एक बयान में कहा कि दुनिया तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिए सुरक्षित मार्ग की अनुमति देने की उसकी प्रतिबद्धता पर कायम रखेगी। बाइडेन ने इस ख़तरनाक निकासी अभियान के लिए अमेरिकी सेना को धन्यवाद दिया। समझा जाता है कि वह मंगलवार को अमेरिकी लोगों को संबोधित करेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक बयान में कहा, 'पिछले 17 दिनों में हमारे सैनिकों ने अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़े एयरलिफ्ट को अंजाम दिया है। उन्होंने इसे बेजोड़ साहस, प्रोफ़ेशनलिज़्म और संकल्प के साथ किया है। अब, अफ़ग़ानिस्तान में हमारी 20 साल की सैन्य उपस्थिति समाप्त हो गई है।'
बता दें कि अमेरिका ने आतंकवादियों को पनाह देने वाले जिस इस्लामी कट्टरपंथी तालिबान संगठन की जड़ें उखाड़ने के लिए सितंबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर चढ़ाई की थी उसी से पिंड छुड़ाने के लिए उसने उसके साथ वार्ता की। और उसने अपने हाथ वापस खींच लिए। अब तो अफ़ग़ानिस्तान आधिकारिक तौर पर तालिबान के कब्जे में है।
अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में 20 वर्षों में 8 बिलियन डॉलर यानी क़रीब 5.9 ख़रब रुपये ख़र्च कर चुका है। इसमें 2,400 से अधिक अमेरिकी सैनिक मारे गए।
दरअसल, 2001 में तालिबान के ख़िलाफ़ हमला करने के बाद से वहाँ तैनात किए गए सैनिकों को अमेरिका ने हाल के महीनों में वापस अपने देश बुलाना शुरू कर दिया था। तालिबान के साथ अमेरिका ने समझौता किया था। फ़रवरी 2020 में तत्कालीन डोनल्ड ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में तालिबान के साथ समझौते पर दस्तख़त किए गए थे। ट्रंप प्रशासन ने वार्ता के लिए विशेष दूत भेजे थे जो सीधे तालिबान से वार्ता कर रहा था। फ़रवरी 2020 में उस समझौते के बाद से ही तालिबान ने देश में कई जगहों पर कब्जे जमाने शुरू कर दिए थे।
आख़िरकार अमेरिका ने तय दोहा समझौते के मुताबिक़ 1 मई 2021 से अफ़ग़ानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस निकाले जाने की घोषणा की और इसके बदले में तालिबान ने आश्वासन दिया कि वह अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल आतंकवादी संगठनों को नहीं करने देगा।
इस समझौते से तालिबान में तो ऊर्जा का संचार हुआ, लेकिन अफ़ग़ानी सुरक्षा बल हतोत्साहित हो गए। दोहा वार्ता को ही तालिबान समर्थकों ने तालिबान की जीत और अमेरिका की हार के तौर पर लिया। इसके बाद तालिबान तेज़ी से एकजुट हुआ। यही कारण है कि जिस तालिबान को पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जे के लिए 90 दिन का समय लगने की संभावना जताई गई थी वहाँ उसने कुछ दिनों में ही काबुल तक पर कब्जा कर लिया।
अब तालिबान फिर से वहीं पहुँच गया है जहाँ वह 20 साल पहले था। यानी तालिबान से सत्ता छीनी गई थी और अब वह फिर सत्ता में लौट आया है।