भारत ने कहा है कि केवल रूस और यूक्रेन दोनों को स्वीकार्य प्रस्ताव से ही शांति लायी जा सकती है। यह दलील देते हुए भारत ने स्विट्जरलैंड में शांति शिखर सम्मेलन के समापन पर जारी अंतिम दस्तावेज से खुद को अलग करने का फ़ैसला कर लिया। इस तरह सम्मेलन के आखिरी दिन साझे बयान पर सभी देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई।
यूक्रेन में शांति के लिए 90 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि स्विट्जरलैंड पहुंचे थे। शिखर सम्मेलर में लाए गए साझे प्रस्ताव का क़रीब 80 देशों ने समर्थन किया है। लेकिन भारत ऐसा करने वालों में से नहीं है। भारत कम से कम सात देशों में से एक है जिसने दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के स्थल बर्गेनस्टॉक में जारी 'शांति ढांचे पर साझा ज्ञापन' का समर्थन करने से इनकार कर दिया। भारत के अलावा सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मैक्सिको और संयुक्त अरब अमीरात बयान पर दस्तखत नहीं करने वाले देशों में रहे।
शिखर सम्मेलर में लाए गए साझे प्रस्ताव में इस पर जोर दिया गया कि यूक्रेन की 'क्षेत्रीय अखंडता' युद्ध खत्म करने से जुड़े किसी भी शांति समझौते का आधार होगी। बयान में घोषणा की गई कि हम मानते हैं कि शांति हासिल करने के लिए सभी पक्षों की हिस्सेदारी और उनमें आपसी संवाद जरूरी है। इसके साथ ही सभी युद्धबंदियों और डिपोर्ट किए गए बच्चों को भी लौटाने की अपील की गई।
विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) पवन कपूर ने यूक्रेन में शांति पर शिखर सम्मेलन में भारत के रुख को लेकर कहा कि संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए रूस और यूक्रेन के बीच ईमानदारी और व्यावहारिक भागीदारी ज़रूरी है। उन्होंने कहा, 'शिखर सम्मेलन में हमारी भागीदारी और सभी हितधारकों के साथ निरंतर संपर्क का उद्देश्य संघर्ष के स्थायी समाधान के लिए आगे का रास्ता खोजने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों और विकल्पों को समझना है। हमारे विचार में केवल वे विकल्प जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हों, स्थायी शांति की ओर ले जा सकते हैं।'
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने शिखर सम्मेलन को संबोधित किया, लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। स्विस अधिकारियों ने कहा कि रूस शांति के लिए 'रोड मैप' पर भविष्य के सम्मेलन में शामिल हो सकता है।
इस सम्मेलन से साफ़ हो गया है कि रूस का साथ दे रहे चीन जैसे देशों को साथ लाना एक बड़ी चुनौती होगी। साझा बयान के लिए स्विट्ज़रलैंड ने भारत को साथ लाने की पूरी कोशिश की।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार भारत के सम्मेलन में भाग न लेने के बारे में पूछे जाने पर भारत में स्विस राजदूत राल्फ हेकनर ने कहा कि निर्णय के बावजूद यह अच्छा था कि भारत सम्मेलन में उपस्थित था।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारत ने शिखर सम्मेलन में भाग लिया था। इसके साथ ही अगस्त 2023 में जेद्दा में एनएसए स्तर पर और जनवरी 2023 में दावोस में उप एनएसए स्तर पर पिछली बैठकों में भी भाग लिया था, जो बातचीत और कूटनीति के माध्यम से संघर्ष के स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान को सुगम बनाने की उसकी इच्छा के अनुरूप था।
भारत का संयुक्त वक्तव्य में भाग लेने, लेकिन उससे दूरी बनाए रखने का निर्णय भी सरकार की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र महासभा, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और मानवाधिकार परिषद में अब तक पारित सभी प्रस्तावों से दूर रहने की नीति के अनुरूप है। भारत के वक्तव्य फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की आलोचना करते हैं।
बता दें कि शिखर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भविष्य की शांति प्रक्रिया को प्रेरित करना था। रूस को शिखर सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया था, जबकि चीन ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने शिखर सम्मेलन के उद्घाटन और समापन पूर्ण सत्र में भाग लिया।
इस पर देशों के ताज़ा रुख से लगता है कि शांति लाना अभी भी दूर की कौड़ी है। ऐसा इसलिए कि रूस की शर्तें ही कुछ ऐसी हैं जिसे यूक्रेन शायद ही कभी माने। पुतिन का कहना है कि लड़ाई खत्म करने की दो शर्तें हैं- पहली शर्त यह कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा। दूसरी शर्त है कि यूक्रेन उन चार प्रांतों- डोनेत्स्क, लुहांस्क, खेरसॉन और जापोरिझिया- को रूस को सौंप देगा, जिन पर मॉस्को दावा करता है। क्या यह इतना आसान है?