अमेरिका के नाटकीय चुनाव का अंतिम नाटक

08:33 am Jan 06, 2021 | शिवकांत | लंदन से - सत्य हिन्दी

अमेरिका के नाटकीय आमचुनाव का अंतिम नाटक इस बुधवार को खेला जाएगा। छह जनवरी को अमेरिका की नवनिर्वाचित संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन होगा, जिसमें निवर्तमान उपराष्ट्रपति माइक पेंस को अपनी चुनावी औपचारिकता निभाते हुए नए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की घोषणा करनी है। अमेरिका के सभी राज्यों के इलेक्टोरल कॉलेज या निर्वाचन मंडल अपने-अपने राज्यों से विजेताओं की घोषणा कर चुके हैं और राज्यों के निर्वाचन अधिकारी उनका अनुमोदन कर चुके हैं। 

प्रतिनिधि सभा की बैठक आज

 

निर्वाचन मंडल की 14 दिसंबर की घोषणा के अनुसार, जो बाइडन और कमला हैरिस को 306 इलेक्टरों या निर्वाचकों के वोट मिले हैं जबकि डोनल्ड ट्रंप और माइक पेंस केवल 232 वोट हासिल कर पाए हैं। राज्यों ने अपने-अपने निर्वाचन मंडलों के परिणाम नवनिर्वाचित प्रतिनिधि सभा को भेज दिए हैं।

प्रतिनिधि सभा बुधवार को इन परिणामों की जाँच करके इनका अनुमोदन करेगा। इसलिए संयुक्त संसदीय अधिवेशन में उपराष्ट्रपति माइक पेंस का काम महज औपचारिकता निभाना और जो बाइडन तथा कमला हैरिस को नया राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति घोषित करना है।

क्या करेंगे पेंस?

लेकिन ट्रंप साहब और उनके समर्थकों को यह हार पच नहीं रही है। उनका आरोप है कि चुनावों में धाँधली हुई है। जाली और अवैध वोट डलवा कर चुनावी जीत उनसे छीनी गई है। निर्वाचन अधिकारियों से लेकर निचली अदालतों और सर्वोच्च न्यायालय तक में हार जाने के बावजूद वे हार मानने को तैयार नहीं हैं और अब प्रतिनिधि सभा के कुछ सांसदों और सीनेट के सीनेटरों को चुनावी परिणाम पर आपत्तियाँ उठाने के प्रस्ताव लाने के लिए उकसा रहे हैं।

उन्होंने उपराष्ट्रपति माइक पेंस को भी अपने खेल में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया है। राष्ट्रपति ट्रंप ने एक चुनावी जनसभा में कहा है, “वे इस वाइट हाउस को नहीं छीन पाएँगे। हम आख़िरी दम तक लड़ेंगे।” 

माईक पेंस, उप राष्ट्रपति, अमेरिका

इस चुनाव में बहुत सी बातें अतिनाटकीय हैं और पहली बार हो रही हैं, जैसे पदासीन राष्ट्रपति का अपने ही देश की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाना और उसकी तुलना पिछड़े और तानाशाही तौर-तरीक़ों वाले देशों से करना। राष्ट्रपति का किसी राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी को फ़ोन कर धमकाना और जैसे-तैसे ग्यारह हज़ार वोटों का जुगाड़ करने की माँग रखना। 

खेल में शामिल सीनेटर

लेकिन संसद के संयुक्त अधिवेशन में निर्वाचन मंडल के नतीजों पर सवाल उठाना कोई नई बात नहीं है। ख़ासकर प्रतिनिधि सभा के नवनिर्वाचित सांसद नतीजों पर सवाल उठाते आए हैं। ऐसा लगता है कि इस बार कुछ सीनेटर भी इस खेल में शामिल होने वाले हैं। उससे भी बड़ी बात यह है कि सभापति के पद पर बैठने वाले उपराष्ट्रपति माइक पेंस आपत्ति उठाने वालों को शह दे रहे हैं। 

विडंबना यह है कि प्रतिनिधि सभा के जो सांसद चुनाव परिणामों पर आपत्ति उठाएँगे, वे स्वयं इसी चुनाव में जीत कर सांसद बने हैं।

यदि मान लिया जाए कि चुनावों में धाँधली हुई है, जिसकी वजह से जो बाइडन और कमला हैरिस की जीत को वैध नहीं माना जा सकता, तो फिर उन सांसदों की जीत पर भी सवालिया निशान लगता है जो इसी चुनाव में जीत कर आए हैं।

लेकिन नाटक की तरह इस चुनाव की भी बहुत सी बातें दर्शकों या पाठकों पर छोड़ देना ही बेहतर है। आपत्ति उठाने वाले सीनेटरों की अगुवाई टेक्सस राज्य के रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज़ कर रहे हैं जो पिछले चुनाव में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के दौर में डोनल्ड ट्रंप के सबसे प्रखर आलोचक थे। आज वे उनके सबसे प्रबल समर्थक बन गए हैं।

सदन में हो सकता है मतदान

बुधवार के संयुक्त संसदीय सत्र में सभापति के तौर पर उपराष्ट्रपति माइक पेंस राज्यों के निर्वाचन मंडलों के नतीजों को विचार करने के लिए एक-एक करके सदन में रखेंगे और सांसद उनका अनुमोदन करेंगे या अपनी आपत्तियाँ उठाएँगे। यदि किसी राज्य को नतीजों पर कम से कम एक प्रतिनिधि सभा सांसद और एक सीनेटर आपत्ति उठा देता है तो उस पर सदन में बहस होगी और बहस का फ़ैसला करने के लिए विभाजन और मतदान होगा।

डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

नवनिर्वाचित प्रतिनिधि सभा में जो बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है। सीनेट में इस समय डोनल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है। लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटरों में चुनाव और उसकी प्रक्रिया पर उठाई जा रही बेबुनियाद आपत्तियों को लेकर मतभेद है। बहुत से रिपब्लिकन सीनेटर इस नाटक से ख़ुश नहीं हैं इसलिये उनके मतदान में भाग लेने और विरोध में वोट डालने की संभावना कम है।

तमाशा क्यों

दिलचस्प बात यह है कि राज्यों के चुनाव परिणामों पर आपत्ति उठाना और बहस की माँग करना सांसदों का हक़ है। नतीजों पर आपत्ति उठाने के लिए उन्हें कोई कारण देने की ज़रूरत भी नहीं है। फिर भी सांसदों की आपत्तियाँ अनुमोदन की प्रक्रिया को लटकाने और बहस का तमाशा करने के अलावा कुछ नहीं हैं।

चुनावी क़ानून में स्पष्ट रूप से लिखा है कि राज्य निर्वाचन मंडलों द्वारा तय किए गए और राज्यों के निर्वाचन अधिकारियों द्वारा प्रमाणित किए गए नतीजे अंतिम हैं और कांग्रेस या संसद के पास उन्हें स्वीकार करने और उनका अनुमोदन करने के सिवा कोई विकल्प नहीं है।

सवाल उठता है कि ऐसे में डोनल्ड ट्रंप के समर्थक सांसद और सीनेटर राज्य निर्वाचन मंडलों के नतीजों पर आपत्तियाँ उठाने और बहस करने का तमाशा करना क्यों चाहते हैं। जवाब तमाशा अपने आप में है। डोनल्ड ट्रंप को भी इस बात का एहसास है कि वे चुनाव हार चुके हैं।

चुनाव हार कर भी वे उस राजनीतिक जंग को जीतना चाहते हैं जो उन्होंने जो बाइडन और उनके उन उदारवादी समर्थकों के ख़िलाफ़ छेड़ रखी है जिन्हें वे ‘लेफ़्ट रेडिकल’ या वामपंथी उग्रवादी कहते हैं। असली खेल जो बाइडन और कमला हैरिस के चुनाव की वैधता पर सवाल उठाकर असंतोष का माहौल खड़ा करना और बाइडन-हैरिस सरकार को पंगु बनाना है।

मक़सद में कामयाब

डोनल्ड ट्रंप और उनके पिछलग्गू एक हद तक अपने इस मक़सद में कामयाब भी हो चुके हैं। इसीलिए चुनावों के दो महीने बाद भी बड़ी संख्या में रिपब्लिकन सांसद और सीनेटर चुनाव परिणाम को स्वीकार करने और नए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को बधाई देने तक को तैयार नहीं हैं।

अमेरिका के एक तिहाई से ज़्यादा लोग ट्रंप के बेबुनियाद आरोपों और अटपटे बयानों पर विश्वास करने लगे हैं। लेकिन प्रेक्षकों का मानना है कि ट्रंप के गद्दी छोड़ने के बाद लोगों का ध्यान तथ्यों की तरफ़ जाएगा और उनका प्रभाव कम होता जाएगा।

जॉर्जिया की जंग 

ट्रंप अपनी बाइडन विरोधी जंग का असली मोर्चा दक्षिणपूर्वी राज्य जॉर्जिया को बनाना चाहते हैं जो लंबे अरसे से उनकी रिपब्लिकन पार्टी का गढ़ रहा है। ज़ॉर्जिया में राष्ट्रपति पद का चुनाव तो वे हार गए हैं, लेकिन सीनेट की दो सीटों के चुनाव में हार-जीत का फ़ैसला नहीं हो पाया था क्योंकि नवंबर के चुनाव में किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत वोट नहीं मिल पाए थे।

अमेरिका  में राष्ट्रपति की सरकार के बाद दूसरी सबसे शक्तिशाली संस्था सीनेट है, जिसकी अनुमति के बिना राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की नियुक्ति से लेकर बजट और रक्षा प्रस्ताव जैसे ज़रूरी कानून पास नहीं करा सकता। 

इसलिए डोनल्ड ट्रंप और उनके रिपब्लिकन समर्थकों की नज़र इस समय जॉर्जिया पर है जहाँ मंगलवार को हुए सीनेट की दो सीटों के चुनाव की मतगणना चल रही है। 

इस समय सौ सदस्यों वाली सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के पास 50 और डेमोक्रेटिक पार्टी के पास 48 सीटें हैं। इसलिए जो पार्टी जॉर्जिया की दो सीटें जीतेगी सीनेट पर उसी का नियंत्रण हो जाएगा।

अमेरिकी सीनेट

पिछले नवंबर के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार सीनेटर कैली लोफ़्लर और डेविड पर्ड्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों रफ़ैल वार्नोक और जोन ऑसोफ़ से आगे थे।

बेहद अहम दो सीटें 

पिछले 20 सालों से इन सीटों पर रिपब्लिकन पार्टी का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार 40 प्रतिशत से अधिक लोगों ने चुनावी दिन से पहले अग्रिम रूप से मतदान किया है। इसलिए डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं की जीत की उम्मीद नज़र आ रही है।

डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए सीनेट की इन दोनों सीटों को हासिल करना बेहद अहम है जिसके बिना सीनेट रिपब्लिकन पार्टी के हाथों में चली जाएगी और बाइडन-हैरिस के लिए सरकार चलाना कठिन हो जाएगा। 

डोनल्ड ट्रंप और उनके समर्थक इन दोनों सीटों या इनमें से कम-से-कम एक सीट पर जीत कर बाइडन-हैरिस की सरकार को पंगु बनाना चाहते हैं। वे राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद अब सीनेट को जीत कर बाइडन-हैरिस सरकार से उसकी शासकीय ताकत छीनना चाहते हैं।

चुनावी लामबंदी

यदि ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी किसी कारणवश सीनेट की इन दोनों सीटों या उनमें से एक सीट पर हार भी जाते हैं तो वे निश्चित रूप से राष्ट्रपतीय चुनाव की तरह धाँधली के आरोप लगाएँगे और नतीजों को तमाम तरह की चुनौतियाँ देने की कोशिश करेंगे।

इस बहाने रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक बाइडन-हैरिस सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ दो वर्ष बाद होने वाले प्रतिनिधि सभा और सीनेट के चुनावों तक लामबंद रहेंगे और चुनावों में दोनों सदनों में अपना बहुमत बढ़ा कर बाइडन-हैरिस सरकार को पंगु बनाने की कोशिश करेंगे।

कुल मिला कर लगता यह है कि ट्रंप के बेबुनियाद और अटपटे लगने वाले दावों का असली उद्देश्य चुनाव पलटना नहीं, बल्कि बाइडन-हैरिस सरकार की वैधता पर सवाल उठाना और संसद के दोनों सदनों में बहुमत हासिल करके उनकी जीत को नाकाम बनाना है।

 

 

 

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