हमास की अल कासम ब्रिगेड ने 7 अक्टूबर को ऑपरेशन अल अक्सा फ्लड की घोषणा करते हुए कहा कि अब मसजिद अल अक्सा में कब्जाधारियों के सभी अपराधों को खत्म करने का समय आ गया है। इसके बाद इजराइल पर पांच हजार रॉकेट दागे गए, मिसाइलें छोड़ी गईं। हमास लड़ाके इजराइल-ग़ज़ा सीमा पर लगी बाड़ को तोड़ते हुए इजराइल के अंदर घुस गए। पूरी दुनिया को चंद मिनटों में ही इस हमले की सूचना मिल गई। दुनिया की नंबर 1 सेना का दावा करने वाली इजराइली सेना कुछ समझ नहीं पाई और मोस्साद के आला जासूस तेल अवीव में सिर धुनते नजर आए।
युद्ध का 11 अक्टूबर को पांचवां दिन है। इजराइल ने बुधवार को स्वीकार किया है कि इस हमले में इजराइल में 1200 लोग मारे गए हैं, जिनमें कुछ विदेशी भी हैं। दूसरी तरफ ग़ज़ा में की गई जवाबी इजराइली कार्रवाई में 900 लोग मारे गए हैं। ग़ज़ा पूरी तरह तबाह हो गया है। ग़ज़ा पर अब इजराइल जमीनी हमले किसी भी समय शुरू करने वाला है। ऐसे में इस युद्ध का तांडव और बढ़ेगा। इजराइल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कह ही चुके हैं कि इसे हमास ने शुरू किया है लेकिन खत्म हम करेंगे।
इस युद्ध का नतीजा फिलहाल यह निकला है कि पश्चिमी एशिया में शांति के जो दावे किए जा रहे थे, वे नाकाम रहे हैं। फिलिस्तीन का मुद्दा फिर से दुनिया के सामने है। इजराइल पहले भी हमास को खत्म करने की बात कहता रहा है। ग़ज़ा पर उसने इस वजह से कई बार हमले भी किए हैं लेकिन हमास पहले से ज्यादा मजबूत होकर सामने आया है।
द हिन्दू अखबार ने हमास क्या है, इस पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के कुछ इनपुट उससे भी लिए गए हैं। 2007 में हमास ने फिलिस्तीन में चुनाव जीता और ग़ज़ा पर उसका नियंत्रण हो गया। उसके बाद से हमास और इजराइल के बीच कई संघर्ष हुए, जिसमें हजारों फिलिस्तीनी मारे गए। दरअसल, हमास के अस्तित्व में आने के बाद से दोनों पक्षों में लड़ाई चल रही है और इस बार का संघर्ष ज्यादा गंभीर नजर आ रहा है। यह हकीकत है कि 1870 और 1980 के दशक में जब यासिर अराफात फिलिस्तीन के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे तो इजराइल ने हमास को बढ़ावा दिया गया। सेकुलर विचारों के अराफात के सामने हमास इजराइल की मदद से अपना कट्टर चेहरा फिलिस्तीनियों के बीच लेकर आया था।
दरअसल, हमास की जड़ें मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ी हुईं हैं। 1928 में मिस्र के इस्लामवादी हसन अल-बन्ना ने मुस्लिम ब्रदरहुड को स्थापित किया। उस समय फिलिस्तीन ब्रिटेन द्वारा शासित था। ब्रदरहुड ने 1930 के दशक में फिलिस्तीन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। बन्ना ने अपने भाई अब्द अल-रहमान अल-बन्ना को फ़िलिस्तीन के मुसलमानों के बीच राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन छेड़ने के लिए भेजा। यानी मुस्लिम ब्रदरहुड फिलिस्तीन पहुंच गया। लेकिन 1964 में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) स्थापित हुआ। 1967 में इज़राइल ने जॉर्डन नियंत्रित वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम और मिस्र नियंत्रित ग़ज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद पीएलओ ने पूरे फिलिस्तीन को आज़ाद कराने की कसम खाई। पीएलओ ने इज़राइल के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया। फिलिस्तीन में मुस्लिम ब्रदरहुड राजनीति से दूर था, लेकिन उसका नेतृत्व पीएलओ के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की आलोचना करता रहा।
इजराइल का खेल
इजराइल की नजर मुस्लिम ब्रदरहुड पर थी। इज़राइल ने कब्जे वाले क्षेत्रों में ब्रदरहुड नेतृत्व से संपर्क स्थापित किया। ब्रदरहुड के मौलवी शेख अहमद यासीन ने 1973 में अल-मुजम्मा अल-इस्लाम (इस्लामिक सेंटर) की स्थापना की। वो विकलांग थे और आधे अंधे भी थे। इज़राइल ने यासीन के इस्लामिक केंद्र को दान दिया और फिर एक संगठन के रूप में मान्यता दी। इससे यासीन को धन जुटाने, मस्जिद बनाने और इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ ग़ज़ा स्थापित करने की अनुमति मिली।
उधर, 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई, जिसने अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका नियंत्रित शाह रजा पहलवी की हुकूमत को उखाड़ फेंका। ईरान की इस्लामिक क्रांति ने पूरे पश्चिम एशिया में इस्लामी राजनीति के परिदृश्य को बदल दिया। ईरान में मौलवियों की राजनीतिक सफलता देखकर कई देशों में इस्लामी संगठन राजनीतिक रूप से अधिक महत्वाकांक्षी और सक्रिय होने लगे। 1980 में कब्जे वाले क्षेत्रों में पीएलओ के वामपंथी समर्थकों और इस्लामवादियों के बीच बार-बार झड़पें हुईं। यानी यासिर अराफात की पीएलओ और इजराइल समर्थक मुस्लिम ब्रदरहुड के लोग आपस में टकराने लगे।
हमास का उदयः 1987 में हमास पहला इंतिफादा शुरू होने के बाद बना। 8 दिसंबर, 1987 को ग़ज़ा में एक मामूली ट्रैफिक जाम के दौरान हुई घटना में कई फिलिस्तीनी मारे गए। इस घटना का जिम्मेदार एक इजराइली ड्राइवर था। इस घटना से फिलिस्तीनियों का गुस्सा फूट पड़ा, जो पीएलओ के आंदोलन से ऊब चुके थे। इजराइल के कब्जे वाले क्षेत्र बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू हो गई। पीएलओ ने अपने समर्थकों से इंतिफादा में शामिल होने का आह्वान किया। ब्रदरहुड को भी इस संघर्ष में शामिल होने का अवसर मिला। 14 दिसंबर को यासीन के ब्रदरहुड ने एक बयान जारी किया, जिसमें फिलिस्तीनियों से इजराइली कब्जे के खिलाफ खड़े होने के लिए कहा गया। जनवरी 1988 में ब्रदरहुड ने हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया (इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन) स्थापित किया। इसका संक्षिप्त नाम हमास है, जिसका अरबी में अर्थ है "उत्साह।" हमास को अलग तरह का काम सौंपा गया। एक साल बाद ही 1989 में, हमास ने अपना पहला हमला किया। उसने दो इजराइली सैनिकों का अपहरण कर हत्या कर दी। इज़राइल ने समूह पर कार्रवाई की, यासीन को गिरफ्तार कर लिया और उसे आजीवन कारावास की सजा दी।
फिलिस्तीन की आजादी की मांग उठाई हमास ने
फिलिस्तीन में अराफात के पीएलओ का आंदोलन अपने ढंग से चलता रहा। लेकिन हमास खूंखार होता जा रहा था। 19 अगस्त, 1988 को हमास ने एक चार्टर जारी किया जिसके जरिए जायनिस्ट (Zionist) हुकुमत का विरोध करने की बात कही गई। हमास ने चार्टर में कहा कि फ़िलिस्तीन "एक इस्लामी वक्फ भूमि है।" इस जमीन को आजाद कराने के लिए "जिहाद के अलावा फ़िलिस्तीन समस्या का कोई समाधान नहीं है।" उसने कहा कि सभी शांति पहल "समय की बर्बादी और बेतुके काम" हैं। इसी बीच पीएलओ फिलिस्तीनी मुद्दे के समाधान की तलाश में शांति प्रयासों में शामिल होने के लिए आगे बढ़ा, तो हमास ने सख्त विरोध किया।
हमास ने ओस्लो समझौते का विरोध किया। ओस्लो समझौते के तहत इजराइल के कब्जे वाले क्षेत्रों के भीतर सीमित शक्तियों के साथ फिलिस्तीनी प्राधिकरण के गठन की अनुमति मिल गई। जब पीएलओ ने इज़राइल को मान्यता दी, तो हमास ने दो-देश समाधान को अस्वीकार कर दिया और पूरे फिलिस्तीन को आजाद करने की कसम दोहराई। इसने कई समूहों के साथ एक संगठन बनाया है। जिसमें इज़्ज़ अद-दीन अल-क़सम ब्रिगेड शामिल हैं। अक्टूबर 1994 में, ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर होने के एक साल बाद, हमास ने अपना पहला फिदायीन हमला किया, जिसमें तेल अवीव में 22 लोग मारे गए।
हमास ने किए फिदायीन हमले
1990 और 2000 के दशक की शुरुआत में, हमास ने कई आत्मघाती हमले किए। 2000 में, जब दूसरा इंतिफ़ादा भड़का, हमास आगे-आगे था। हमास समर्थकों ने इजराइली सैनिकों के साथ सड़क पर सीधी लड़ाई छेड़ दी। इजराइल ने विरोध को कुचलने के लिए क्रूर बल का इस्तेमाल किया। इज़राइल ने टारगेट हत्याओं की नीति अपनाई। मार्च 2004 में, इज़राइल ने ग़ज़ा शहर में हेलीकॉप्टर से दागी गई मिसाइल से शेख यासीन को मार डाला। यासिन के उत्तराधिकारी अब्देल अजीज अल-रंतीसी की अप्रैल 2004 में हत्या कर दी गई। एक अन्य शीर्ष नेता खालिद मेशाल जॉर्डन में मोस्साद के हमले में बच गए। 2005 में, हमास के हिंसक प्रतिरोध का सामना करते हुए, इज़राइल ने एकतरफा रूप से ग़ज़ से बाहर निकलने का फैसला किया।
चुनावी कामयाबीः हमास की लोकप्रियता बढ़ती गई। फिलिस्तीनी क्षेत्र में 2006 के चुनावों में, हमास ने 132 सीटों में से 74 सीटें जीतीं, जबकि पीएलओ की रीढ़ फतह पार्टी को केवल 45 सीटें मिलीं। हमास ने अपने चुनाव घोषणापत्र में पहली बार नरमी के संकेत दिखाए। इसने इज़राइल के अंत का आह्वान छोड़ दिया, जिसका उल्लेख 1988 के चार्टर में किया गया था। हमास ने कहा कि अब उसकी पहली प्राथमिकता फ़िलिस्तीनियों के लिए स्थिति को बदलना है। हमास ने सरकार बनाई, लेकिन उसे इज़राइल और अधिकांश अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के विरोध का सामना करना पड़ा।
इज़राइल, यूएन की तरह, अमेरिका और कई यूरोपीय देशों ने हमास को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया। चुनाव जीतने के बाद जैसे ही वेस्ट बैंक में फतह और हमास के बीच तनाव बढ़ा, फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने हमास सरकार को भंग कर दिया और आपातकाल लगा दिया। फतह और हमास के बीच हिंसक झड़पें हुईं। 2007 में फतह ने हमास को वेस्ट बैंक से और हमास ने फतह को ग़ज़ा से बेदखल कर दिया। तब से ग़ज़ा में हमास की सरकार है। हमास की सरकार बनते ही इज़राइल ने ग़ज़ा पट्टी पर नाकाबंदी कर दी। इस तरह ग़ज़ा पट्टी अब एक खुली जेल में बदल गई है।
फिलिस्तीन और हमास की फिर चर्चा
हमास ने अब अपने पुराने रूप में लौटने का फैसला किया। उसने कहा कि उसकी लड़ाई यहूदी लोगों से नहीं है, बल्कि जॉायनिस्ट (Zionist) से है। इसलिए इजराइल को यहां से कब्जा छोड़कर जाना होगा। दूसरी तरफ दक्षिणपंथी इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू हमास को दुश्मन नंबर 1 मानते हैं। उनका कहना है कि वो हमास को खत्म किए बिना चैन नहीं लेंगे। जब उनकी पार्टी इजराइल में चुनाव लड़ती है तो हमास के खात्मे को चुनावी मुद्दा भी बनाती है।इधर कई वर्षों से फिलिस्तीन की आजादी की चर्चा दुनिया से गायब थी। सऊदी अरब और इजराइल का समझौता नए समीकरण का संकेत दे रहा था। मसजिद अल अक्सा पर इजराइली कार्रवाई बढ़ती जा रही थी लेकिन सऊदी अरब उसकी निन्दा करने से भी बच रहा था। ऐसे में हमास ने फिलिस्तीन की आजादी के मुद्दे को केंद्र में लाने के लिए इजराइल पर हमले की योजना बनाई। पूरी दुनिया में इस समय जहां हमास की हिंसा की निन्दा हो रही है, वहां ये सवाल भी पूछा जा रहा है कि आखिर फिलिस्तीन में इतने वर्षों से इजराइल जो कर रहा था, वो क्या था। कुछ देशों ने फिलिस्तीन की आजादी का मसला भी उठाया है। यानी हमास अपने मकसद में कामयाब हुआ। उसने इजराइल में घुसकर हमला किया। फिलिस्तीन पर दोबारा चर्चा शुरू हो गई। लेकिन यह सब ग़ज़ा के लोगों की कीमत पर हो रहा है। जो मलबे के ढेर पर बैठे अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।