जर्मनी, इटली, फ्रांस ने भी एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन रोकी; बड़ा झटका

09:48 am Mar 16, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

कोरोना के ख़िलाफ़ दुनिया भर में चलाए जा रहे टीकाकरण अभियान को बड़ा झटका लगा है। एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर अब यूरोपीय यूनियन के बड़े देशों- जर्मनी, इटली और फ्रांस ने भी तात्कालिक रोक लगा दी है। यूरोप के कई देशों ने पहले ही इस वैक्सीन पर रोक लगा रखी है। इन देशों को आशंका है कि इस वैक्सीन से ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून जमने की दिक्कतें आ रही हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी यानी यूएमए तक बार-बार एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को सुरक्षित बता रही हैं।

चार दिन पहले ही एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन पर डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड ने तात्कालिक रोक लगाई है। ये देश अब इस वैक्सीन की पड़ताल करने के बाद इस पर आगे फ़ैसला लेंगे। हालाँकि, एस्ट्राज़ेनेका ने कहा है कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन की अब तक दुनिया भर में तारीफ़ की जाती रही है।

'एएफ़पी' की रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी, इटली और फ़्रांस जैसे देशों द्वारा सोमवार को इस पर रोक लगाए जाने के बाद स्पेन, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लातविया जैसे देशों ने भी एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन पर रोक लगा दी है। यूरोप के बाहर के देश इंडोनेशिया ने भी इसकी वैक्सीन को लगाए जाने के अभियान में देरी होने की घोषणा की है। 

इन देशों द्वारा एस्ट्राज़ेनेका का टीका रोकने का मतलब होगा कि दुनिया भर में टीकाकरण अभियान धीमा पड़ जाएगा। यह इसलिए कि एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन काफ़ी तेज़ी से बनाई जा रही है और इसके सस्ता होने की वजह से दुनिया के ग़रीब देशों के लिए यह काफ़ी अहम है। दूसरी कंपनियों के टीके हैं, लेकिन उनकी पहुँच उन ग़रीब देशों तक शायद मुश्किल से हो पाए। 

एस्ट्राज़ेनेका के टीके पर रोक कितना बड़ा झटका होगा यह इससे भी समझा जा सकता है कि दुनिया भर में 12 करोड़ से ज़्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। अब तक 26 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अभी भी हर रोज़ दुनिया भर में क़रीब साढ़े तीन लाख संक्रमण के मामले आ रहे हैं और क़रीब साढ़े छह हज़ार लोगों की मौत हो रही है। 

डब्ल्यूएचओ और यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी ने एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन पर रोक लगाए जाने के मामले को गंभीरता से लिया है। दोनों संगठन इसी हफ़्ते उन देशों के साथ विशेष बैठक करेंगे जिन्होंने आगे की समीक्षा किए जाने का हवाला देकर एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन पर रोक लगा दी है।

बता दें कि डेनमार्क पहला देश है जिसने एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को निलंबित किया है। देश के स्वास्थ्य अधिकारियों ने एक बयान में कहा है कि ब्लड क्लॉटिंग की गंभीर शिकायतों के बाद यह क़दम उठाया गया। इसने कहा है कि यह एहतियात के तौर पर किया गया है। 

तब यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी यानी ईएमए ने कहा था कि 9 मार्च तक यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र में टीकाकरण किए गए 30 लाख से अधिक लोगों में से 22 मामलों में ख़ून जमने की शिकायत सामने आई है।

इससे पहले ऑस्ट्रिया ने तब एस्ट्राज़ेनेका की सप्लाई की गई एक ख़ास खेप की वैक्सीन पर तात्कालिक तौर पर रोक लगा दी थी जब वैक्सीन लगाने के कुछ दिनों बाद 49 साल के एक नर्स की मौत हो गई थी। तब मौत का कारण ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून का जमना बताया गया था। इसके अलावा चार अन्य यूरोपीय देशों- इस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और लग्ज़मबर्ग ने भी वैक्सीन की सप्लाई वाली उसी ख़ास खेप पर रोक लगाई। उस खेप में यूरोप के 17 देशों को 10 लाख वैक्सीन की खुराक भेजी गई थी। 

इस बीच यूरोप की मेडिसिन एजेंसी ईएमए ने कहा है कि शुरुआती जाँच में पता चलता है कि एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की जो खेप ऑस्ट्रेलिया में भेजी गई थी वह संभवत: नर्स की मौत का कारण नहीं थी। 

इन रिपोर्टों के बाद भी यूरोपीय देशों के विशेषज्ञों ने इस वैक्सीन को सुरक्षित और प्रभावी बताया है और कहा है कि रोक लगाने जैसे क़दम उठाना 'बहुत ज़्यादा एहतियात' है। 

बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है और इसे पूरी तरह सुरक्षित और कोरोना के ख़िलाफ़ प्रभावी बताया है। 

डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा,

हम नहीं चाहते हैं कि लोग घबराएँ और हम फ़िलहाल यह सलाह देते हैं कि देश एस्ट्राजेनेका के साथ टीकाकरण जारी रखें।


सौम्या स्वामीनाथन, डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक

एस्ट्राज़ेनेका ही वह कंपनी है जिसने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इस वैक्सीन को विकसित किया है और जिसका भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई गई वैक्सीन भारत में तो सप्लाई की ही जा रही है, दुनिया के कई देशों में भी सप्लाई की जा रही है। हालाँकि भारत जैसे कई देशों में ब्लड क्लॉटिंग जैसी कोई भी शिकायत नहीं आई है।