शार्ली एब्दू ने कहा- हार नहीं मानेंगे, विवादित कार्टून को फिर से छापा

12:09 am Sep 03, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

फ़्रांस की प्रसिद्ध पत्रिका शार्ली एब्दू (शार्ली एब्दो) ने पैगंबर मुहम्मद से सम्बन्धित उस विवादित कार्टून को एक बार फिर छापा है, जिसके कारण 2015 में उसके दफ़्तर पर इस्लामी चरमपंथियों ने ख़ूनी हमला कर एक दर्जन लोगों की हत्या कर दी थी। 

इस हमले के पाँच साल बाद शार्ली एब्दू पत्रिका ने उसी कार्टून को अपने ताज़ा अंक में दुबारा छापते हुए कहा है, ‘हम कभी झुकेंगे नहीं, हम कभी हार नहीं मानेंगे।’ पत्रिका के डायरेक्टर लोआँ रिस सूरीसू ने इस बारे में एक संपादकीय भी लिखा है।

इस कार्टून को छापे जाने को लेकर ही 7 जनवरी, 2015 को शार्ली एब्दू के पेरिस स्थित दफ़्तर पर इसलामी चरमपंथी दो सगे भाइयों सईद और शरीफ़ कुआशी ने हमला कर दिया था जिसमें फ़्रांस के कुछ जाने-माने कार्टूनिस्टों समेत 12 लोग मारे गए थे। पूरी दुनिया में इस हमले की व्यापक निन्दा हुई थी और फ़्रांस में भी इसे लेकर काफ़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी।

शार्ली एब्दू के दफ़्तर पर हमला करने वाले दोनों भाइयों को तो पुलिस ने मार गिराया था, लेकिन इसी हमले की कड़ी से जुड़े 14 और आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया था। इन लोगों पर एक यहूदी सुपरमार्केट पर हमला करने का आरोप था। इन सभी पर बुधवार से मुक़दमा शुरू होगा। 

शार्ली एब्दू के ताज़ा अंक के कवर पेज पर कई सारे पुराने कार्टून हैं। इनमें से एक कार्टून डैनिश अख़बार जीलाँच पास्टन द्वारा 2005 में प्रकाशित किया गया था और फिर 2006 में इसे शार्ली एब्दू ने फिर से प्रकाशित किया था। इसके बाद मुसलिम मुल्कों में इस कार्टून के ख़िलाफ़ गुस्सा फैल गया था और पत्रिका को इसे लेकर धमकियां मिली थीं। 

कवर पेज पर छपे इस कार्टून में शार्ली एब्दू के कार्टूनिस्ट ज्याँ कैबी ने पैगंबर मुहम्मद को लेकर भी एक कार्टून बनाया था। ज्याँ कैबी की भी इस हमले में मौत हो गई थी।

पत्रिका की संपादकीय टीम ने कहा है कि यह उन कार्टूनों को छापे जाने का सही समय है। उनका कहना है कि इस मामले में मुक़दमा शुरू हो चुका है और इसलिए इन कार्टूनों को छापना ज़रूरी है। टीम ने कहा है कि जनवरी, 2015 के बाद उनसे बार-बार यही कहा जाता रहा है कि हम पैगंबर मुहम्मद के दूसरे कैरिकेचर भी छापें।

टीम की ओर से कहा गया है, ‘हमने हमेशा से इससे इनकार किया, इसलिए नहीं कि ऐसा करना क़ानूनी तौर पर प्रतिबंधित था। क़ानून हमें ऐसा करने से नहीं रोकता। लेकिन हमने ऐसा नहीं किया कि क्योंकि इसके नहीं छापने के बहुत-से उचित कारण थे और हम चाहते थे कि इस पर लोगों के बीच चर्चा और बहस हो।’

इस हत्याकांड के बाद फ्रांस ही नहीं दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग हाथों में पोस्टर लेकर सड़कों पर निकल आए थे। इन पोस्टर में ‘मैं भी शार्ली’ लिखा होता था।