'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' फ़िल्म सुर्खियों में है और इसके साथ ही चर्चा में हैं जिस किताब पर यह फ़िल्म बनी, उसके लेखक संजय बारू। पर, संजय बारू हैं कौन
संजय बारू पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे। वे इस पद पर चार साल रहे- मई 2004 से अगस्त 2008 तक। प्रधानमंत्री को एक ऐसे आदमी की ज़रूरत थी जो प्रेस के साथ उनके रिश्ते संभाले। बारू के पिता बी. पी. आर. विट्ठल को मनमोहन सिंह जानते थे। वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट एन. एन. वोहरा ने प्रधानमंत्री के पूछने पर उन्हें बारू का नाम सुझाया।
संजय बारू ख़बरों में आए उन पर किताब लिखने के बाद। लेकिन उन्होंने पुस्तक लिखने की बात रिटायर होने के बाद ही सोची। उन्होंने उस पद पर रहते हुए सर्फ़ कुछ नोट्स तैयार किए थे। उसी के आधार पर किताब लिख डाली। बारू ने इस किताब में लिखा, '2012 के अंत तक मैने तय किया कि मै कोई किताब नहीं लिखूंगा। मगर पेंग्विन बुक्स इंडिया के चिकी सरकार और कामिनी महादेवन ने मेरे ख्याल को बदल दिया।'
'मनमोहन की ख़राब छवि'
बारू ने किताब के आमुख में लिखा कि किताब लिखने का मक़सद मनमोहन सिंह की उस समय तक काफ़ी ख़राब हो चुकी छवि को ठीक करना था। बारू लिखते हैं, 'उन्होंने(मनमोहन) कई गलतियां की, इस किताब में उसका उल्लेख करने में झिझक नहीं है। पहले कार्यकाल ठीक रहा, मगर दूसरा कार्यकाल वित्तीय घोटालों और बुरी खबरों से भरा रहा। उन्होंने राजनीति पर से नियंत्रण भी खो दिया। पीएमओ असरहीन हो गया। हाल यह हो गया कि पहले लोग कहते थे सिंग इज़ किंग, पर बाद में कहन लगे सिंग इज़ सिंकिंग।' (पहले लोग कहते थे सिंह ही राजा है, पर बाद में कहने लगे सिंह डूब रहा है।)
बारू ने यह भी लिखा है कि वे चाहते थे कि सिंह की अच्छी छवि पेश की जाए, हालांकि सिंह ख़ुद ऐसा नहीं चाहते थे। वे लिखते हैं, 'निरुत्साहित किए जाने के बावजूद मैंने उनके काम का प्रचार किया और उनके व्यक्तित्व को उभारा। इस कोशिश में मैं गाँधी परिवार के विश्वस्त लोगों के ग़ुस्से का शिकार बना जो सिंह के प्रचार को परिवार के ख़िलाफ़ मानते थे।'
बारू ने किताब में लिखा है. 'सिंह बेहद शाँत स्वभाव के हैं और हमेशा अपनी भावनाओं को हमेशा क़ाबू में रखते हैं। पर दो बार वे ग़ुस्सा हो गए। जब मैंने उनके एक विचार का प्रचार किया तो सिंह ने मुझे डाँटा क्योंकि गाँधी परिवार चाहता था कि उसे राहुल गाँधी के विचार के रूप में पेश किया जाए। सिंह बहुत गुस्सा में थे। उन्होंने मुझसे कहा, मुझे कोई क्रेडिट नहीं चाहिए।'
यह किताब 11 मई 2014 को छप कर बाज़ार में आई थी और उसके सिर्फ 11 दिन बाद लोकसभा चुनाव थे। इसके बाद एक राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ था। इससे गाँधी परिवार की काफ़ी किरकिरी हुई थी। फिल्म रिलीज़ होने के कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं। इस बार भी इस पर राजनीति शुरू हो गई है। बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर हमले कर रहे हैं। बारू चाहें या न चाहें, इस बार भी इस पर विवाद होगा, यह तय है।