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घोटाले के मामलों में टीएमसी नेताओं की रिहाई पर विवाद, ममता पर सवाल क्यों?

घोटाले के मामलों में टीएमसी नेताओं की रिहाई पर विवाद, ममता पर सवाल क्यों?

क्या अडानी मुद्दे पर और इंडिया गठबंधन को लेकर ममता बनर्जी और टीएमसी का रवैया पहले से बदल गया है? क्या इनका रुख बदलने की कुछ और वजह है? जानिए, टीएमसी नेताओं को जमानत मिलने पर क्या आरोप लग रहे हैं।

पश्चिम बंगाल में टीएमसी नेताओं पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उनको जेल जाना पड़ा, उस मामले में अब उनको राहत क्यों मिल रही है? कम से कम पश्चिम बंगाल में तो यही मुद्दा उठ रहा है। कथित भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जाने वाले टीएमएसी नेताओं की जमानत मिलने पर विवाद हो रहा है और ममता बनर्जी पर सवाल उठ रहे हैं। 

इन मामलों में टीएमसी कार्यकर्ताओं और नेताओं की जेल से रिहाई पर सवाल उठाते हुए सीपीएम और कांग्रेस ने टीएमसी के साथ-साथ मुख्य विपक्षी दल भाजपा पर निशाना साधा है और उनके बीच सांठगांठ का आरोप लगाया है। उन्होंने आरोपियों को जल्द से जल्द सजा दिलाने के लिए घोटालों की उचित जांच न करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों पर निशाना साधा है। हालाँकि, टीएमसी और भाजपा दोनों ने उनकी रिहाई को कानूनी प्रक्रिया का नतीजा बताया है।

दरअसल, मामला पश्चिम बंगाल में स्कूल शिक्षकों की भर्ती, राशन और मवेशियों से संबंधित घोटाले जैसे कुछ बड़े घोटालों से जुड़ा है। इनके कई आरोपी हाल के महीनों में विभिन्न अदालतों द्वारा दी गई जमानत पर जेल से रिहा हुए हैं। 

सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियां ​​पिछले कुछ सालों से इन घोटालों की जांच कर रही हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हालांकि, टीएमसी के दो पूर्व मंत्री और पार्टी के दिग्गज पार्थ चटर्जी और ज्योतिप्रिया मलिक कई महीने पहले क्रमशः स्कूल नौकरी घोटाले और राशन घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार होने के बाद भी जेल में हैं।

रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2022 में तत्कालीन टीएमसी महासचिव पार्थ चटर्जी को स्कूल नौकरी घोटाले में ईडी ने गिरफ्तार किया था। इसी ने चटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी को भी गिरफ्तार किया था और कोलकाता में उनके फ्लैटों से 50 करोड़ रुपये से अधिक बरामद किए थे। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अब पार्थ की जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। मामले में अर्पिता, कुंतल घोष और माणिक भट्टाचार्य सहित तीन अन्य आरोपी पहले ही जमानत पर बाहर आ चुके हैं।

अंग्रेज़ी अख़बार ने ख़बर दी है कि राशन घोटाले में भी बाकिबुर रहमान, शंकर आध्या और विश्वजीत दास समेत कुछ आरोपियों को जमानत पर रिहा किया गया है। इस साल नवंबर में कोलकाता की एक विशेष ईडी अदालत ने अर्पिता को जमानत दी थी। निलंबित टीएमसी युवा नेता कुंतल घोष को सीबीआई और ईडी दोनों मामलों में जमानत दी गई थी। 

सितंबर में उच्च न्यायालय ने टीएमसी विधायक माणिक भट्टाचार्य को जमानत दी। राशन घोटाले के तीन आरोपियों, बाकिबुर, शंकर और विश्वजीत को इस साल अगस्त में कोलकाता की विशेष पीएमएलए अदालत ने जमानत दी थी।

बनगांव नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष आध्या को ईडी ने इस साल 6 जनवरी को गिरफ्तार किया था, जबकि घोटाले के पैसे को कथित तौर पर सफेद करने के आरोपी व्यवसायी विश्वजीत को 14 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था। इस साल 27 जुलाई को मवेशी तस्करी घोटाले के मुख्य आरोपी और टीएमसी के कद्दावर नेता और बीरभूम जिले के अध्यक्ष अनुब्रत मंडल को सीबीआई मामले में शीर्ष अदालत ने जमानत दे दी थी। 20 सितंबर को उन्हें ईडी मामले में दिल्ली की एक अदालत से भी जमानत मिल गई थी। मंडल को अगस्त 2022 में मवेशी घोटाले मामले में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। केस्टोडा के नाम से मशहूर वह टीएमसी सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी सहयोगियों में से एक रहे हैं। जहां पार्थ और ज्योतिप्रिया को उनकी गिरफ्तारी के बाद टीएमसी से निलंबित कर दिया गया, वहीं अनुब्रत को पार्टी की ओर से किसी अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा।

विभिन्न घोटालों में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को जमानत पर रिहा किए जाने का जिक्र करते हुए सीपीएम नेता सुजान चक्रवर्ती ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'मुझे नहीं पता कि क्या हो रहा है। सभी को जमानत कैसे मिल रही है। हर मामले में केंद्रीय एजेंसियां ​​जांच में देरी क्यों कर रही हैं। या तो वे जांच करना भूल गई हैं या जाँच की जगह राजनीतिक कारणों ने प्राथमिकता ले ली है।' कांग्रेस नेता सौम्या आइच रॉय ने आरोप लगाया, 'टीएमसी की भाजपा के साथ मौन सहमति है। अडानी और अन्य मुद्दों पर तृणमूल भाजपा का समर्थन कर रही है, उन पर चुप्पी साधे हुए है- और भाजपा घोटालों से तृणमूल नेताओं को बचा रही है। यह अब साफ़ है।' हालाँकि, टीएमसी और बीजेपी दोनों ने इसे क़ानूनी प्रक्रिया का नतीजा बताया है।

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