राहुल की नागरिकता पर निर्णय के लिए केंद्र को 24 मार्च तक का वक़्त क्यों दिया?
राहुल गांधी की नागरिकता पर केंद्र के पास अब निर्णय लेने के लिए 24 मार्च तक का समय है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि नागरिकता से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने के लिए केंद्र सरकार सक्षम प्राधिकारी है। अदालत ने मामले में की गई कार्रवाई की जानकारी पेश करने के लिए केंद्र को 24 मार्च तक का और समय दे दिया। पहले 19 दिसंबर तक इस पर निर्णय लेने का आदेश दिया गया था।
हाईकोर्ट कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की कथित ब्रिटिश नागरिकता की केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई से जांच कराने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और जस्टिस जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने कर्नाटक के बीजेपी सांसद एस. विग्नेश शिशिर द्वारा दायर याचिका के जवाब में यह आदेश जारी किया।
25 नवंबर को दिए गए पिछले आदेश में अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह केंद्रीय गृह मंत्रालय में दायर एक आवेदन के संबंध में की गई किसी भी कार्रवाई का विवरण दे, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिकता रखते हैं।
हालांकि, सरकार जवाब देने की समय सीमा को पूरा करने में विफल रही। इस वजह से उसके वकील ने अतिरिक्त समय का अनुरोध किया। अदालत ने विस्तार दिया और 24 मार्च, 2025 तक जवाब दाखिल करने की अनुमति दी।
बता दें कि 6 नवंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया गया था कि नागरिकता मामले में सीबीआई जांच शुरू कर दी गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष मामला भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर था। स्वामी ने राहुल की भारतीय नागरिकता रद्द करने की मांग करने पर निर्णय लेने के लिए गृह मंत्रालय को निर्देश देने की मांग की थी।
अपनी याचिका में स्वामी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के खिलाफ उनके द्वारा दायर याचिका पर स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के लिए मंत्रालय को निर्देश देने की भी मांग की थी।
हाईकोर्ट ने जुलाई में शिशिर को इसी तरह की याचिका वापस लेने की अनुमति दी थी और नागरिकता अधिनियम के तहत उपाय करने की स्वतंत्रता दी थी। उन्होंने इस पर निर्णय के लिए फिर से अदालत का रुख किया है। शिशिर ने अदालत को बताया कि हाईकोर्ट के समक्ष अपनी पिछली याचिका वापस लेने के बाद उन्होंने गृह मंत्रालय में सक्षम प्राधिकारी को दो आवेदन दिए। अदालत ने साफ़ किया था कि अब तक उसका ध्यान केवल इस बात पर है कि क्या केंद्र सरकार को आवेदन मिले हैं और वह क्या निर्णय या कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखती है।
राहुल गांधी के ख़िलाफ़ अदालत ने इस साल अगस्त में भी एक अहम फ़ैसला दिया था। एक रिट याचिका में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ अपनी शिकायतों पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए गृह मंत्रालय को उच्च न्यायालय के निर्देश मांगे थे। इसके पीछे उन्होंने वो कारण बताया है जिसमें राहुल के ब्रिटिश नागरिक होने का दावा किया गया है।
बता दें कि स्वामी ने 2019 में गृह मंत्रालय को पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि एक फर्म 2003 में यूनाइटेड किंगडम में पंजीकृत हुई थी और कांग्रेस सांसद इसके निदेशक और सचिव में से एक थे। उन्होंने पत्र में लिखा था कि वह ब्रिटिश नागरिक हैं, जो ब्रिटिश पासपोर्ट रखने के बराबर है।
स्वामी ने आरोप लगाया कि राहुल ने भारतीय नागरिक होने के नाते भारतीय संविधान के अनुच्छेद 9 का उल्लंघन किया है। यह भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 में है। स्वामी ने दावा किया है कि राहुल भारतीय नागरिक नहीं रह पाएँगे। भारत के संविधान के अनुच्छेद 9 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा या उसे भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा यदि उसने स्वेच्छा से किसी विदेशी देश की नागरिकता प्राप्त की है। केंद्र सरकार द्वारा राहुल को 20 अप्रैल, 2019 को नागरिकता के संबंध में शिकायत मामले में एक नोटिस भेजा गया था।
स्वामी ने लिखा था कि बैकऑप्स लिमिटेड नामक एक कंपनी 2003 में यूनाइटेड किंगडम में पंजीकृत हुई थी, जिसमें राहुल निदेशक और सचिव थे। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि 2005 और 2006 में दायर कंपनी के वार्षिक रिटर्न में राहुल गांधी की जन्मतिथि 19 जून, 1970 बताई गई थी और उनकी राष्ट्रीयता ब्रिटिश बताई गई थी। स्वामी ने कहा है कि केंद्र सरकार को उनकी शिकायत के अपडेट और स्थिति के बारे में पूछने के लिए कई बार आवेदन किए जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है।