बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह रविवार को पार्टी को छोड़ कर अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी में लौट गए। वह बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई के उपाध्यक्ष थे। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले 2019 में टीएमसी छोड़ दी थी और वह बीजेपी में शामिल हो गए थे। बहरहाल, उन्होंने रविवार दोपहर टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी से मुलाक़ात की।
मुलाक़ात के कुछ ही समय बाद अभिषेक बनर्जी ने ट्वीट किया, 'श्री अर्जुन सिंह का गर्मजोशी से स्वागत किया, जिन्होंने बीजेपी की विभाजनकारी ताक़तों को खारिज कर दिया और आज टीएमसी परिवार में शामिल हो गए। देश भर के लोग पीड़ित हैं और उन्हें अब पहले से कहीं ज़्यादा हमारी ज़रूरत है। आइए लड़ाई को जारी रखें!'
टीएमसी ने भी एक बयान में कहा है, 'बंगाल बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष और बैरकपुर से सांसद अर्जुन सिंह का अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस परिवार में गर्मजोशी से स्वागत किया। वह आज हमारे राष्ट्रीय महासचिव श्री अभिषेक बनर्जी की उपस्थिति में हमारे साथ शामिल हुए।'
पश्चिम बंगाल के मंत्री ज्योतिप्रिया मल्लिक ने कहा, 'यह हमारी पार्टी की नैतिक जीत है। अगर हर कोई ममता बनर्जी के नेतृत्व में पार्टी में वापस आता है, तो हम उनका स्वागत करेंगे।'
यह घटनाक्रम तब हुआ है जब अर्जुन सिंह ने पार्टी के राज्य नेतृत्व पर आरोप लगाया था कि संगठन में एक वरिष्ठ पद पर होने के बावजूद उन्हें ठीक से काम नहीं करने दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर पार्टी की राज्य इकाई की स्थिति के बारे में बताया था। उन्होंने आरोप लगाया कि समर्पित कार्यकर्ताओं को उचित प्रतिष्ठा नहीं मिलती है।
अर्जुन सिंह और उनसे पहले बाबुल सुप्रियो के टीएमसी में जाने के बाद पश्चिम बंगाल से बीजेपी के सांसदों की संख्या 18 से घटकर अब 16 रह गई है। पिछले साल सितंबर में बाबुल सुप्रियो बीजेपी छोड़कर टीएमसी में शामिल हो गए थे। वह उस समय आसनसोल के सांसद थे।
इसी साल मार्च में बीजेपी के एक और नेता जय प्रकाश मजूमदार ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया था। उनसे पहले विश्वजीत दास, तन्मय घोष और मुकुल राय जैसे नेता भी बीजेपी छोड़कर टीएमसी में वापस शामिल हो चुके हैं।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही राज्य में बीजेपी गुटबाज़ी, चरमराते संगठनात्मक ढांचे और शीर्ष स्तर से जमीनी स्तर पर नेताओं के पलायन की समस्या से जूझ रही है। मई 2021 में विधानसभा चुनावों में 77 सीटों के साथ मज़बूत विपक्षी दल के रूप में उभरने के बाद पार्टी हाल के निकाय चुनावों में एक भी नगर पालिका निकाय जीतने में विफल रही।