जिस गोरखालैंड को अलग राज्य बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है उसको एक बार फिर से बीजेपी सांसद ने जोर शोर से उठाया है।
बीजेपी विधायक जॉन बारला की बार-बार अलग राज्य की मांग के बाद अब पार्टी के ही कर्सियोंग सांसद विष्णु प्रसाद शर्मा ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा को पत्र लिखकर गोरखालैंड को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग की। उन्होंने दावा किया कि उत्तर बंगाल लंबे समय से विकास से वंचित है और अलग राज्य का दर्जा ही एकमात्र इसका समाधान है।
सांसद विष्णु प्रसाद शर्मा ने सोमवार को लिखे ख़त में कहा है, 'अलग राज्य का दर्जा उत्तर बंगाल के लोगों की लंबे समय से लंबित मांग है। उत्तर बंगाल के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है और अब उत्तर बंगाल के लोगों ने 2019 और 2020 के चुनावों में भाजपा का समर्थन किया, उनकी मांगों को पूरा किया जाना चाहिए।'
उन्होंने पत्र में यह भी लिखा कि राजबंशी, रवा, टोटो, कोच, मेचे और आदिवासियों के अधिकारों पर भी केंद्र द्वारा ध्यान दिया जाना चाहिए।
शर्मा ने उत्तर बंगाल की स्वास्थ्य प्रणाली के विकास जैसे मुद्दों पर नड्डा का ध्यान दिलाया। उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से उत्तर बंगाल एम्स और नेपाली टेलीविजन चैनल और रेडियो नेटवर्क की स्थापना में तेजी लाने में मदद करने का आग्रह किया।
सांसद शर्मा ने चाय बागान श्रमिकों के न्यूनतम वेतन को बढ़ाने के लिए पत्र में लिखा और कहा कि इसका वादा केंद्रीय नेताओं ने 2021 के चुनाव अभियान के दौरान किया था।
उन्होंने पत्र में लिखा, 'पिछले चुनाव में अपने संबोधन के दौरान, हमने चाय मज़दूरों से वादा किया था कि उनकी दैनिक मज़दूरी बढ़ाकर 350 रुपये की जाएगी। यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है।' जबकि बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस दोनों ने 2021 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान चाय बागान श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन के रूप में 350 रुपये का वादा किया था, अभी तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।
बता दें कि 1980 के दशक में पश्चिम बंगाल में अलग गोरखालैंड की मांग के लिए आंदोलन शुरू हुआ था। उत्तर बंगाल में दार्जिलिंग की पहाड़ियों, सिलीगुड़ी के तराई क्षेत्र और दुआर के इलाक़ों को मिलाकर गोरखाओं के लिए अलग प्रदेश बनाए जाने की मांग उठी। इसके पीछे कारण दिया गया कि क्षेत्र का विकास नहीं हुआ और बिजली, स्वास्थ्य, स्कूल व रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। सन 1985-86 के समय में यह आंदोलन अपने शिखर पर था। कहा जाता है कि इस आंदोलन में क़रीब 1200 लोगों की मौत हो चुकी थी। 1988 में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल की स्थापना की गई, जिसने 23 सालों तक थोड़ी स्वायत्तता के साथ दार्जिलिंग की पहाड़ियों का प्रशासन संभाला।