बीते बुधवार, 27 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘यूट्यूब फैनफेस्ट इंडिया-2023’ को संबोधित किया। अपने लगभग 5 मिनट के सम्बोधन का अंत पीएम मोदी ने "मेरे सभी अपडेट प्राप्त करने के लिए मेरे चैनल को सब्सक्राइब करें और घंटी आइकन दबाएं", यह कहते हुए किया। सोशल मीडिया में उनके इस कदम को लेकर तरह-तरह की आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया। कोई उन पर ‘पद की गरिमा’ को लेकर प्रश्न उठा रहा है तो कोई ‘नैतिकता’ को लेकर उन पर सवाल उठा रहा है। व्यक्तिगत रूप से मुझे इसमें कोई कमी समझ नहीं आती, मुझे नहीं लगता कि कानून या संविधान उन्हे अपने चैनल को सबस्क्राइब करने वाली अपील करने के लिए रोकता है।
पीएम मोदी अपने गुजरात मुख्यमंत्री काल से ही यूट्यूब में सक्रिय हैं।15 साल पुराना उनका चैनल लगभग 1.8 करोड़ सब्स्क्राइबर आधार वाला प्लेटफॉर्म है। मेरी नजर में तो उन्होंने यह अच्छा ही किया कि वो अब और भी आधिकारिक रूप से यूट्यूब में उनके ‘सभी अपडेट’ को साझा किया करेंगे।
लोगों को उनके यूट्यूब पर सक्रिय होने को लेकर आशान्वित और सकारात्मक रहना चाहिए। एक प्रधानमंत्री जो संसद के दोनो सदनों में यदाकदा ही दिखता हो वह अगर यूट्यूब पर आकर बोलने लगे तो इसमें क्या बुराई है, यह अलग बात है कि संसद में आना, वहाँ बोलना, सदस्यों से अपनी बात साझा करना और संसद के माध्यम से देश और उसकी समस्याओं को संबोधित करना और उनका समाधान पेश करना उनका संवैधानिक दायित्व है। अब चूंकि पीएम मोदी यूट्यूब पर सक्रिय होने वाले हैं और अपडेट देने वाले हैं इसलिए मैंने अपनी एक ‘अपडेट विश लिस्ट’ बनाई है। जैसे- मुझे आशा है कि पीएम मोदी जल्द ही मणिपुर के मुद्दे पर यूट्यूब में आएंगे और वहाँ के हालात से देश को अवगत कराएंगे। मुझे इंतजार है जब वो यूट्यूब में आकर मणिपुर में अपनी ही पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष, शारदा देवी की उस बात का खंडन करेंगे या फिर समाधान पेश करेंगे जिसमें उन्होंने यह बताया है कि उनके अपने आवास में दो बार हमले हो चुके हैं।
मणिपुर की बदहाल हालत और बीजेपी पर से उठते विश्वास का आँकलन उनकी इस बात से लगाया जा सकता है, जिसमें वह कहती हैं कि “सरकार चलाने वाली पार्टी के लिए ऐसी दुश्मनी कभी नहीं देखी”।बीबीसी ने एक पड़ताल में जानकारी दी है कि मणिपुर के मुर्दाघरों में लावारिस लाशें पड़ी हुई हैं और शव पहचानने तक के लिए लोग सामने नहीं आ रहे हैं। शायद भारत को अब यह पता चल जाए कि मणिपुर की डरावनी स्थिति के जिम्मेदार, व्यक्तियों, परिस्थितियों और इसमें सुधार को लेकर पीएम ने भारत के राष्ट्रपति को बताकर अपनी संवैधानिक ड्यूटी पूरी की है या नहीं? अगर ड्यूटी पूरी नहीं की है तो वह ‘अपडेट’ में यह बताएं कि वह ऐसा कब करने वाले हैं और अगर वह राष्ट्रपति अर्थात भारत के ‘प्रथम नागरिक’ को मणिपुर के बारे में बता चुके हैं तो इंतजार इस बात का रहेगा कि भारत का प्रथम नागरिक, भारत के ‘अन्य’ नागरिकों को सुदूर उत्तर-पूर्व में स्थित इस राज्य की स्थिति के बारे में कब बताने वाली हैं।
मुझे इस ‘अपडेट’ का भी बेसब्री से इंतजार है, जिसमें पीएम मोदी यूट्यूब पर आकर बताएंगे कि जिस कानून को लागू करने में 7 सालों से अधिक का समय बाकी है उसे अभी से प्रचारित क्यों कर रहे हैं? वो चाहें तो अपने चैनल में आकर ‘फ्रैंकली’ यह बता सकते हैं कि वह 2024 और 2029 दोनो के चुनावों में इस मुद्दे को लेकर वोट पाना चाहते हैं और बिना जिम्मेदारी के सत्ता पर काबिज रहना चाहते हैं, या फिर चाहें तो इतना देरी से कानून लागू करने के कारण के पीछे नेहरू-गाँधी का नाम ले लें, पर गुजारिश इतनी है कि जो भी हो, आकर ‘अपडेट’ जरूर कर दें।
मुझे आशा है कि पीएम मोदी जल्द ही कनाडा मुद्दे पर हो रही भारत की किरकिरी को लेकर भी कोई न कोई ‘अपडेट’ जरूर देंगे। और यह भी कि आखिर क्यों बाइडेन जैसे उनके ‘करीबी दोस्तों’ का प्रशासन भी भारत पर ही उंगली उठा रहा है और ‘फाइव आइज’ गठबंधन भारत को तिरछी नजर से देख रहा है। अमेरिका से बढ़ती ‘दोस्ती’ के बीच खबर यह भी है कि इस करीबी दोस्त ने ही कनाडा को वो सबूत उपलब्ध करवाएं हैं जिसकी वजह से भारत की अंतर्राष्ट्रीय किरीकिरी हो रही है। इस पर भी एक ‘अपडेट’ मिल जाता तो अच्छा होता।
एजुकेशन एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत नवोदय विद्यालय, बरुआसागर(झांसी) में ट्रेनिंग पर एक साल के लिए गए जवाहर नवोदय विद्यालय राजौरी(जम्मू एवं कश्मीर) के छात्रों की मारपीट हुई। इससे एक दिन पहले राजौरी के छात्रों द्वारा झांसी के छात्रों की पिटाई की सूचना आई थी। धारा 370 हटने के बाद भी, तमाम वादों के बावजूद जम्मू एवं कश्मीर व देश के अन्य हिस्सों के बीच खाई क्यों पटती नहीं दिख रही है? इतनी वैमनस्यता क्यों पैर पसार रही है, घृणा का इतना अनवरत प्रसार क्यों जारी है?, पीएम मोदी से इस मुद्दे पर भी ‘अपडेट’ चाहिए। अच्छा होगा अगर पीएम मोदी नवोदय के मुद्दे के साथ-साथ उनके सांसद रमेश विधूड़ी द्वारा साथी सांसद, दानिश अली को भारत की नवनिर्मित संसद में धर्मसूचक, असंसदीय गालियां देने पर उनके खिलाफ की गई कार्यवाही और उनके ऐसे कृत्य के पीछे के कारण का भी ‘अपडेट’ दे देते तो अच्छा था। ‘अपडेट’ बड़ी अहम चीज है, इससे किसी विषय पर सबसे नवीनतम उपलब्ध जानकारी मिल जाती है। दानिश अली को भाजपा सांसद द्वारा मिली गालियां और ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ नारे का ‘वर्तमान स्टैटस’ भी ‘अपडेट’ के साथ मिल जाता तो यह समझने में आसानी होती कि 2024 के लोकसभा चुनावों में जनता को क्या करना है? इसके अपडेट में पीएम मोदी यदि उस पत्र का जवाब भी जोड़ दें तो अच्छा होगा, जोकि सांसद दानिश अली ने पीएम मोदी को लिखा है, जिसमें बसपा सांसद ने पीएम से निवेदन किया है कि रमेश बिधूड़ी को ‘युक्तियुक्त सजा’ दी जाए।
मुझे पूरा भरोसा है कि भारत, भारत के संविधान, भारत की संसद, भारत के लोगों, भारत के अल्पसंख्यक समाज, भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के आदर्श और भारत के स्वाधीनता आदोंलन की विरासत का एक साथ अपमान करने वाले अपने सांसद रमेश विधूड़ी को राजस्थान चुनाव में एक बड़ी राजनैतिक जिम्मेदारी लेने का निर्णय, स्वीकार करने के पीछे उनकी क्या मजबूरी थी, यह ‘अपडेट’ पूरे देश को जानना बहुत जरूरी है क्योंकि मुझे नहीं समझ आता कि 140 करोड़ आबादी वाले शक्तिशाली लोकतान्त्रिक देश के प्रधानमंत्री को कौन मजबूर कर सकता है? जनता के द्वारा चुना गया उनका प्रिय प्रतिनिधि किसके सामने मजबूर हो गया है? वह जनता का न होकर किसी और का कैसे हो गया? यह अपडेट बहुत ही जरूरी है।
अब प्रश्न यह है कि क्या पीएम मोदी सच में मजबूर हैं? क्या सच में वो सबकुछ ऐसा करना चाह रहे हैं ताकि 2024 के चुनावों में उनकी पार्टी की सरकार वापस आ जाए? इसके लिए उन्हे कुछ सही गलत नहीं लग रहा है? वो रमेश बिधूड़ी के साथ भी खड़े दिख रहे हैं, ब्रजभूषण के साथ भी और महात्मा गाँधी को गाली देने वाली उनकी एक और सांसद प्रज्ञा ठाकुर के साथ भी! वास्तविकता तो यह है कि ‘कार्यवाही’ के अभाव में उत्पन्न खाली स्थान ‘समर्थन’ के रूप में सामने आ जाता है। पीएम मोदी अपने सांसदों की निम्नस्तरीय, देश और समाज को कलंकित करने वाली हरकतों पर कार्यवाही करने में असमर्थ रहे इसलिए आज सभी को यह महसूस हो रहा है कि पीएम किसी न किसी रूप में इन सांसदों, का समर्थन कर रहे हैं। मणिपुर में हालात बिगड़ते रहे और पीएम मोदी कोई कार्यवाही नहीं कर सके अंततः वो मणिपुर के सीएम के समर्थन में खड़े ही दिख रहे हैं। यह वो सीएम हैं जो मणिपुर में घटी, देश की सबसे वीभत्स घटनाओं में से एक पर भी नहीं पसीजे और एक कदम और आगे बढ़कर अपनी घोर संवेदनहीनता और गैरजिम्मेदारी का परिचय देते रहे। पीएम मोदी को इन घटनाओं के साथ खड़े होते हुए नहीं ‘दिखना’ चाहिए था।
अब चुनाव करीब हैं और पीएम मोदी जनता तक अपनी बात पहुंचाने के सभी तरीके इस्तेमाल कर लेना चाह रहे हैं। ‘मन की बात’, 24 घंटों पीएम की तारीफ में बड़बड़ाते टीवी चैनल्स, हर गली चौराहे पर लगी पीएम मोदी की तस्वीर, हर पेट्रोल पंप पर लगे उनकी तारीफ़ों के बैनर पोस्टर, कोविड के दौरान वैक्सीन सर्टिफिकेट और राहत सामग्री तक में पीएम मोदी की तस्वीरचस्पा की गई, हर मंत्रालय की लगभग सभी छोटी बड़ी योजना के छोटे-बड़े लॉन्च, छोटे-बड़े उद्घाटन के दौरान, सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी को ही सामने रखने के बावजूद अभी भी जनता तक उनकी बात पूरी तरह नहीं पहुँच सकी? इसलिए उन्होंने यूट्यूब में 5000 यूट्यूबर्स को जोड़कर उनका साथ लेने की कोशिश शुरू कर दी है। पीएम, यूट्यूबर्स को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो भी "बिल्कुल उनके जैसे" हैं।
यह बात आसानी से नहीं पच सकती कि जिसे देश की जनता ने चुनकर भेजा, जिसे भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है वह स्वयं यूट्यूबर्स जैसा है? तो क्यों न किसी यूट्यूबर को ही प्रधानमंत्री की कुर्सी दे दी जाए? पीएम चाहें तो इस पर कोई अपडेट दे दें! पीएम पद न सही तो सीएम पद ही सही, किसी राज्य में क्यों न प्रदान कर दिया जाए? पर पीएम मोदी की किस बात पर कितना भरोसा किया जाए यह भी तो नहीं कहा जा सकता है!
यूट्यूबर्स की तरह उन्होंने महिला पहलवानों से कहा था कि तुम लोग मेरे ‘परिवार की तरह’ हो, तब भी उसका कोई मतलब नहीं था, जब उन्होंने सबके खाते में 15 लाख डालने की बात कही थी उसका भी कोई मतलब नहीं था, और जब महात्मा गाँधी को गाली देने वाली प्रज्ञा ठाकुर को ‘कभी माफ नहीं कर पाऊँगा’ वाली बात कही थी, उसका भी कोई मतलब नहीं था। उन्हे हर बार सिर्फ किसी भी तरह लोगों का समर्थन चाहिए होता है उसके लिए फिर चाहे कोई भी वादा क्यों न करना पड़े। यदि मैं इसमें कहीं गलत हूँ तो पीएम चाहें तो ‘अपडेट’ कर सकते हैं।
सबको सिर्फ अपनी बात सुनाने वाले पीएम मोदी, जनता की बात सुनने में कम दिलचस्पी लेते दिखते हैं। इसलिए उनकी तारीफ़ों और प्रचार के ग्लैमर के नीचे भारत की समस्याएं विकराल रूप ले चुकी हैं। चीन का विवाद ‘56 इंच’ की अवधारणा को नकार चुका है, बेरोजगारी की भयावह स्थिति ‘अमृत-काल’ में विष की मात्रा को बढ़ा चुकी है और कमर तोड़ महंगाई ने ‘अच्छे दिन’ को परीलोक की कथा साबित कर दिया है। और अब ताबूत में आखिरी कील महिला आरक्षण अधिनियम, एक ऐसा कानूनी वादा है जिसकी शुरुआत ही वर्षों बाद होने वाली है। वर्तमान के महिला सम्बधी लगभग हर मुद्दों पर चुप रह जाने वाले व्यक्ति पर देश की आधी आबादी कैसे भरोसा कर ले कि कई वर्ष बाद उसे एक अधिकार मिलने वाला है।
2024 के चुनावों को ‘वादा आधारित’ चुनाव बनाने की कोशिश की जा रही है, जिसमें यूट्यूब को भी ‘टूल’ की तरह इस्तेमाल किया जाना है, ताकि वादों के बीच फंसकर आधी आबादी महिलाओं के यौन शोषण और महिला अस्मिता पर पीएम मोदी की खामोशी को भुला दे। पीएम को समझना होगा कि ‘आधी आबादी’ और उसके बाद बची आधी आबादी, सिर्फ किसी भी ‘वादे’ पर उनके समर्थन में वोट डालने वाली नहीं है। उनकी मर्जी है वो जितने चाहें मंच बदल लें लेकिन जबतक वो ‘सबके पीएम’ के रूप में सामने नहीं आते तब तक वो ‘अगले पीएम’ के रूप में कभी नहीं आ पाएंगे। बाकि मुझे ‘अपडेट्स’ का इंतजार रहेगा।