जैक डॉर्सी ने इवान विलियम्स और अन्य के साथ मिलकर 2006 में ट्विटर की स्थापना की थी। एक छोटे से समूह के लिए ‘एसएमएस’ किस्म की सर्विस देने के उद्देश्य से जब इसकी स्थापना की गई थी तब इसके सामाजिक-राजनैतिक प्रभाव के बारे में आँकलन नहीं किया गया था। लेकिन जल्द ही 2013 में यह कंपनी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज हो गई। 2016 में ट्विटर के बढ़ते प्रभाव के कारण इसे खरीदने को लेकर होड़ मचना शुरू हो गई। तमाम नामी गिरामी कंपनियां जैसे-एल्फाबेट, माइक्रोसॉफ्ट और डिज़्नी आदि ने इसे खरीदने में अपनी रुचि दिखाई लेकिन अंततः बात नहीं बन पाई।
2016 में ब्लूमबर्ग टेक्नॉलॉजी और द वर्ज में छपी खबरों की मानें तो ट्विटर को खरीदने में खरीददार इसलिए पीछे हट गए क्योंकि इस प्लेटफॉर्म की छवि लगातार खराब हो रही थी। रिपोर्ट्स यह बता रही थीं कि ट्विटर में खुलेआम उत्पीड़न और दुर्व्यवहार बढ़ रहा था और इसलिए डिज़्नी जैसी कंपनियां जो इसे खरीदने के बिल्कुल करीब तक पहुँच गई थीं, ने हाथ खींच लिये। लेकिन ट्विटर को इस बदनामी से आर्थिक लाभ हुआ।
अब दुनिया को पता चल गया था कि ट्विटर को खरीदने में बड़ी कंपनियां शामिल हैं इसकी वजह से ट्विटर के शेयरों में 20% तक का उछाल देखा गया। अक्टूबर 2022 आते-आते उद्योगपति एलोन मस्क ने ट्विटर को खरीद लिया। प्लेटफॉर्म को खरीदने से पहले 2022 में मस्क ने ट्विटर पर लिखा कि वह इस प्लेटफॉर्म को इसलिए खरीदना चाहते हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि इतना अधिक प्रभाव रखने वाले मंच में हो रही ‘सेन्सर्शिप’ की वजह से ‘फ्री-स्पीच’(वाक् स्वतंत्रता) जैसे सामाजिक-राजनैतिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़े। मस्क ने कहा "मैंने ट्विटर में निवेश किया क्योंकि मैं दुनिया भर में वाक् स्वतंत्रता के लिए मंच बनने की इसकी क्षमता में विश्वास करता हूं, और मेरा मानना है कि वाक् स्वतंत्रता एक कार्यात्मक लोकतंत्र के लिए एक सामाजिक अनिवार्यता है।" लेकिन वास्तविकता बिल्कुल उलट नजर आ रही है कम से कम शोध तो यही कह रहा है।
अप्रैल, 2023 में लॉस एंजेल्स टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक, USC, UCLA, UC मर्सिड और ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, मस्क द्वारा बिक्री को अंतिम रूप दिए जाने के बाद उन लोगों द्वारा हेट स्पीच का दैनिक उपयोग लगभग दो गुना हो गया, जो पहले नफरत भरे ट्वीट पोस्ट कर रहे थे। इसके साथ ही हेट स्पीच की कुल मात्रा भी वेबसाइट में दोगुनी हो गई। इस शोध के एक शोधकर्ता ने कहा कि, "यह चिंताजनक है जब ट्विटर जैसी पहुंच वाला एक प्लेटफॉर्म ‘एक व्यक्ति’ द्वारा खरीदा जा सकता है और इसे अधिक सामाजिक रूप से रचनात्मक उद्देश्यों की ओर मोड़ने के मामूली प्रयासों को भी तोड़ दिया जाता है...।”
ट्विटर को ‘डिजिटल टाउन स्क्वेयर’ और खुद को ‘फ्री स्पीच के लिए निरंकुशतावादी’ बताने वाले मस्क, ट्विटर के अधिग्रहण के बाद सभी दावों से पीछे हट जाते हैं और उन्हे यह कहने में बिल्कुल संकोच नहीं होता कि ट्विटर में फ्री-स्पीच इस बात पर निर्भर है कि यह प्लेटफॉर्म किस देश में चल रहा है। मसलन अगर यह चीन में चलेगा तो उसमें ऐसा कुछ नहीं होगा जो चीन की सरकार की एकाधिकारवादी और लोकतंत्र विरोधी नीतियों के खिलाफ जाए, यदि यह भारत में चलेगा तो इसमें वह ही चलेगा जिसे सरकार चलने दे, ऐसा कुछ नहीं चल पाएगा जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को नुकसान पहुंचे या सत्तारूढ़ दल भाजपा को कोई चुनावी हानि हो! अफ्रीका के अलग अलग देशों में अलग अलग किस्म के तंत्र विकसित हैं जहां लोकतंत्र की पहुँच न के बराबर है तो ऐसे देशों में ट्विटर ऐसा कुछ भी नहीं चलाएगा जो लोकतंत्र का समर्थन करने वाला हो! शायद मस्क ने ट्विटर को कार कंपनी ‘टेस्ला’ की तरह चलाने और लोकतंत्र को पृथ्वी की जगह ‘स्पेसX’ के माध्यम से अंतरिक्ष में उड़ाने की सोच रख ली है।
ट्विटर कोई परचून की दुकान नहीं है, यह सिर्फ इस आधार पर लोगों की फ्री स्पीच नहीं छीन सकता कि इसे जिसने खरीद लिया है उसे अपने व्यावसायिक हित ज्यादा अहम नजर आने लगे हैं। करोड़ों की संख्या में लोगों ने जब ट्विटर ज्वाइन किया, तो उसके पीछे एक बिना दस्तावेजों का एक अदृश्य समझौता था जिसमें कंपनी के मालिक बदलने से ‘अभिव्यक्ति के अधिकार’ को बदलना या बाधित नहीं करना शामिल था। किसी भी हालत में बीबीसी की नरेंद्र मोदी पर आई डाक्यूमेंट्री को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए था लेकिन मस्क के नेतृत्व वाले ट्विटर ने यह काम किया और अभिव्यक्ति व फ्री स्पीच को बाधित किया। मस्क को भारत में उनके कर्मचारियों के जेल जाने का खतरा सताने लगा और वह अपनी हर प्रतिबद्धता से पीछे हट गए। मेरी नजर में अपनी मर्जी से प्रतिबद्धता जाहिर करने वाले और उससे पीछे हट जाने वाले मस्क के पीछे उनका जीनियस ‘अहंकार’ है।
लेकिन ट्विटर और एलोन मस्क के लिए भी सबकुछ अच्छा नहीं है। अधिग्रहण के लिए $44 बिलियन का सौदा पूरा होने के साथ, जनवरी 2023 तक कॉर्पोरेशन और ब्रांड के विज्ञापन राजस्व में 65% की गिरावट आई है। फॉक्स बिजनेस में छपी खबर के अनुसार मस्क के द्वारा ट्विटर लेने के बाद से एक साल के अंदर ही 80% कर्मचारी ट्विटर छोड़ चुके हैं। लगभग 44 बिलियन डॉलर में खरीदे गए ट्विटर की मार्केट वैल्यू मात्र 33% अर्थात 15 बिलियन डॉलर ही रह गई है। यह जरूर है कि इलोन मस्क की निजी संपत्ति पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है लेकिन मस्क की निजी विश्वसनीयता पर जरूर धब्बा लगा है।
एलोन मस्क ने जब ट्विटर का अधिग्रहण किया था तब उनका ‘दावा’ था कि वो ट्विटर को ‘बॉट्स’(एक किस्म के आर्टिफ़िशियल अकाउंट) से मुक्त करेंगे और ‘फ्री-स्पीच’ को किसी भी हालत में सुनिश्चित करेंगे। लेकिन UCLA व अन्य द्वारा किए गए शोध ने इस दावे को पूरी तरह नाकाम साबित कर दिया है। ‘बॉट्स’ को खत्म करने के मस्क के दावे के विपरीत वास्तविकता यह है कि इनकी संख्या और किस्म दोनो ही अधिग्रहण के बाद नाटकीय रूप से बढ़ चुके हैं। ‘फ्री-स्पीच’ और ‘पारदर्शिता’ को लेकर अधिग्रहण पूर्व के ट्विटर को लगातार कोसने वाले मस्क की हालत यह है कि यदि कोई उनके आधिकारिक प्रेस को जवाब देने वाले मेल पर संदेश भेजता है या कोई प्रश्न पूछता है तो उसे उत्तर के रूप में ‘पॉटी’ की इमोजी भेज दी जाती है। जबकि जैक डॉर्सी के नेतृत्व वाले ट्विटर में प्रेस से नियमित बात की जाती थी, और उनके सवालों के जवाब दिए जाते थे।
‘भक्त-संस्कृति’ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में स्थापित हो चुकी है। मस्क भी एक वर्ग के भगवान हैं, उनकी चापलूसी करने वाले लोगों की एक बड़ी फौज विद्यमान है जो लगातार उनके हर कदम में एक भक्त की तरह उनके साथ और पास खड़ी नजर आती है। बिटकॉइन को ही ले लीजिए भक्तों की एक बड़ी तादाद इस क्रिप्टोकरेंसी के जन्मदाता के रूप में इलोन मस्क को स्वीकार कर रहे हैं, जबकि स्वयं मस्क कई बार इससे इंकार कर चुके हैं। भक्त इतना अधिक भाव-विह्वल नजर आते हैं कि यदि किसी ट्वीट में इलोन मस्क एक सिम्पल सा ‘डॉट’ भी टाइप कर दें तो उसे लाइक और रीट्वीट करने वालों की संख्या मिलियंस में पहुँच जाती है। वो भी इंसान हैं और आज इतनी अंधी भीड़ जिसके साथ भी खड़ी हो जाए उसे ‘अहंकार’ तो होगा ही।
लेकिन पे-पाल, टेस्ला, स्पेस-X जैसे उत्पाद बना चुके एलोन मस्क के पास ‘अहंकार’ के और भी बहुत से कारण हैं लेकिन क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि जो भी व्यक्ति टेक्नॉलजी के क्षेत्र में कुछ बेहतर और अलग करके दिखा देगा उसे अहम का लाइसेंस मिल चुका है? क्या माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स, और मार्क जकरबर्ग (फेसबुक), जेफ़ बेजो (amazon)और सर्जी ब्रेन और लैरी पेज (गूगल की स्थापना करने वाले)उद्योगपति कुछ कम प्रतिभावान हैं? निश्चित रूप से नहीं! मैं ‘विनम्रता’ की कोई कक्षा नहीं खोज रही हूँ लेकिन प्रतियोगिता और बदतमीजी में अंतर को समझना चाहिए। 2016 की बात है, फेसबुक के मालिक मार्क जकरबर्ग ने इलोन मस्क को अपने घर ‘आमंत्रित’ किया ताकि आर्टिफ़िशियल इन्टेलिजन्स(AI) को लेकर उनसे कुछ बात हो सके। सोचिए मस्क ने क्या किया होगा? उन्होंने घर आने के न्योते को न सिर्फ अस्वीकार कर दिया बल्कि खुलेआम ‘मेटा’ के उत्पाद ‘इंस्टाग्राम’ और ‘फेसबुक’ की यह कहकर आलोचना कि ये ‘लोगों को डिप्रेस करते हैं’। 2017 में मस्क ने एक लाइव पॉडकास्ट में यह कह दिया कि जकरबर्ग की AI को लेकर समझ ‘काफी सीमित है’। इसके अलावा मस्क, जकरबर्ग के खिलाफ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं जिन्हे यहाँ नहीं लिखा जा सकता। आज तो मस्क दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं लेकिन जकरबर्ग उन्हे आज भी डरा रहे हैं अब मस्क चाहते हैं कि वह जकरबर्ग के साथ बंद पिंजरे में एक फाइट करें। यह फाइट होगी या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन जो मस्क कर रहे हैं उसका प्रतिबिंब उनके प्लेटफॉर्म पर नजर आ रहा है।
जकरबर्ग एकमात्र व्यक्ति नहीं हैं जिनके खिलाफ मस्क विरोध और प्रतियोगिता से अलग अभद्रता की हद पर जा पहुंचे हैं। उनकी उम्र से 15 साल बड़े माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स की एक फोटो पर मस्क ने जो कमेन्ट किया है उसे भी यहाँ नहीं लिखा जा सकता है। लेकिन इतना जरूर बताया जा सकता है कि हेट स्पीच को रोकने का दावा करने वाले मस्क बिल गेट्स के खिलाफ ‘बॉडी शेमिंग’ का इस्तेमाल कर रहे थे वह भी खुलेआम पब्लिक प्लेटफॉर्म ट्विटर पर। AI का भूत बिल गेट्स के मामले में भी मस्क का पीछा नहीं छोड़ता और एक व्यक्ति को जवाब देते हुए मस्क गेट्स के बारे में कहते हैं कि "मुझे गेट्स के साथ शुरुआती मुलाकातें याद हैं। AI के बारे में उनकी समझ सीमित थी, अब भी है।"
‘बॉडी शेमिंग’ की ऐसी ही हरकत एलोन मस्क,अमेजॉन कंपनी के मालिक जेफ बेजो के खिलाफ भी कर चुके हैं। उन्होंने बेजो के खिलाफ यह टिप्पणी 1999 के बेजो के एक इंटरव्यू ‘द जे लेनो शो’ के आधार पर की थी। प्रतियोगिता करते करते इलोन मस्क व्यक्तिगत हो जाते हैं, हो सकता है इतनी अपार सफलता के बाद भी उनमें कुछ ऐसा रहा गया है जिसकी कमी आज भी उन्हे खलती हो। विडंबना ये है कि मस्क को अभद्रता के लिए भी आजादी चाहिए लेकिन ट्विटर पर वो लोकतान्त्रिक मूल्यों और असहमति को भी नकार रहे हैं।कोई व्यक्ति अपनी कंपनी का नाम ‘X’ रखे या Y लेकिन यह अलिखित समझौता दुनिया को समझना होगा कि अरबों खर्च करने के बावजूद ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म को व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में इस्तेमाल किए जाने से रोका जाना चाहिए अन्यथा ऐसे प्लेटफॉर्म और इनके मालिक अपने व्यावसायिक हित के लिए दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र को प्रदूषित और मैला करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
900 रुपये लेकर थोक में ब्लू टिक बाँट रहे एलोन मस्क ‘मजबूरी’ और लालच में करोड़ों ऐसे लोगों को ‘प्रामाणिकता’(ब्लू टिक) बाँट चुके हैं जो लाखों की संख्या में ट्वीट करके प्रतिदिन घृणा और झूठ फैला रहे हैं जिसकी वजह से कहीं हत्याएं हो रही हैं तो कहीं दंगे! पैसों के बल पर तैयार यह ब्लू टिक फ़ौज कायरता, गालियों और धमकियों के माध्यम से ट्विटर को असुरक्षित बना रही है। प्रोफेशनलिज़्म की मजबूरी ट्विटर जैसी कंपनियों को भारत जैसे देशों के राजनैतिक नेतृत्व के आगे बौना बना रही है, सरकार जिसका चाहे उसका अकाउंट ट्विटर से कहकर बंद करवा सकती है। ‘ED-युग’ के आज के भारत में यह सब आसान है क्योंकि ये अमेरिकी कंपनियां पैसा बनाने में लगी हैं और सरकार नाम बनाने में लगी है। लेकिन नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एल्गॉरीदम की बेड़ियों में इतना अधिक कसा जा रहा है ताकि अभिव्यक्ति स्वयं अपने वर्चस्व को खो दे।
बाध्यता और प्रोफेशनलिज़्म की आड़ में छिपने वाले उद्योगपतियों को ‘मैन ऑन फायर’ फिल्म के मिस्टर ग्रीसी(डैन्जयल वाशिंगटन) से सीखना चाहिए। नायक ग्रीसी व्यावसायिकता की आड़ में छिपे सफेदपोश अपराधियों से तंग आ जाता है। हर गलत काम को ‘बिजनेस’ की सफेद चादर के नीचे पहचान प्रदान करने वालों से वह दुखी है। इस तकलीफ की निरन्तरता में वह एक ऐसे ही व्यक्ति/बिजनेसमैन से कह पड़ता है कि “सब(अपराधी) यही कह रहे हैं: ‘मैं सिर्फ एक प्रोफेशनल हूँ’। हर कोई मुझसे यही कहे जा रहा है...मैं यह सुनकर तंग आ चुका हूँ, थक चुका हूँ। समझे तुम?”
फिल्म में इसके बाद की घटना हिंसक हो जाती है, जिसे असल में रोका जा सकता था लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। यदि धन के ऊपर बिस्तर लगाकर लेटने वाले उद्योगपति मानवता के विकास में बाधा न बनें और विभिन्न देशों में राजनीति के टूल न बनें तो शायद तकनीकी का इस्तेमाल एक बेहतर विश्व के निर्माण में किया जा सकता है।