उत्तर प्रदेश की राज्यपाल ने रविवार की शाम सात मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इनमें एक कैबिनेट मंत्री और छह राज्य मंत्री हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्रियों की अधिकतम संख्या 60 पूरी हो गई।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लगभग पाँच महीने पहले मंत्रिमंडल में फेरबदल कर जातीय समीकरण को दुरुस्त करने की कोशिश की गई है।
कम समय होने के कारण बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं किया गया है और ज़्यादातर मंत्रियों और उनके विभागों को बरक़रार रखा गया है।
योगी आदित्यनाथ की पकड़ पहले की तरह बनी हुई है और उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन कुछ ऐसे लोगों को सरकार में शामिल किया गया है जो एक खास जाति के हैं और पार्टी समझती थी कि उनका प्रतिनिधित्व कम है।
कुछ ही दिन पहले ही कांग्रेस से आए जितिन प्रसाद को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है। वे पूर्व कांग्रेस नेता जीतेंद्र प्रसाद के बेटे हैं, ब्राह्मण हैं। उन्हें ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ने के लिए मंत्री बनाया गया है।
मंत्री पद की शपथ लेने वाले छत्रपाल सिंह गंगवार कुर्मी नेता हैं। वे बरेली से हैं, इस जगह से पहले संतोष सिंह गंगवार बड़े नेता था। उनकी जगह छत्रपाल को सामने लाया जा रहा है। बुंदेलखंड और रुहेलखंड में कुर्मियों की अच्छी खासी संख्या है।
संगीता बलवंत बिंद निषाद समुदाय की हैं। पहले संजय निषाद को मंत्री बनाए जाने की बात थी, लेकिन उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाएगा। इस कारण संगीता को संजय निषाद के बदले राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
दिनेश खटिक अनुसूचित जाति के हैं। ब्राह्मणों के साथ ही अनुसूचित जाति को भी पार्टी से जोड़ने के लिए इन्हें मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है।
पलटू राम, संजीव कुमार और धर्मवीर प्रजापति को भी मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है।
नए चेहरे
जिन लोगों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है, वे अपेक्षाकृत नए हैं, वे पहली बार या दूसरी बार विधायक चुने गए हैं। वे बड़े और दिग्गज नेता नहीं हैं। समझा जाता है कि उन्हें मंत्री सिर्फ इसलिए बनाया गया है कि उनकी जातियों को लोगों को यह संकेत दिया जा सके कि बीजेपी उनके साथ हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी ने कई जातियों के लोगों को एक साथ जोड़ कर एक जातीय गुलदस्ता तैयार करने की कोशिश की है ताकि यह संकेत दिया जा सके कि यह समावेशी सरकार है जो सबको साथ लेकर चलती है।
बता दें कि कोरोना की चपेट में आकर उत्तर प्रदेश के तीन मंत्रियों की मौत हुई थी। उन तीन पदों के अलावा और जगह भी खाली थी, जिसे आज भरा गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री और दूसरी पिछड़ी जातियों के लोगों को राज्य मंत्री बनाए जाने से भी सवाल उठ सकता है। यह सवाल उठ सकता है कि योगी सरकार ने ब्राह्मणों का तुष्टिकरण किया है।
ग़ैर-यादव
उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण पर नज़र डालने से पता चलता है कि यादव लगभग 9 प्रतिशत हैं, जिनके वोटों का बड़ा हिस्सा अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी को जाता है। बीजेपी की कोशिश है कि ग़ैर-यादवों को अपनी ओर लाया जाए।
ग़ैर-जाटव
इसी तरह उत्तर प्रदेश में लगभग 21 प्रतिशत दलित हैं। इनमें से 11 प्रतिशत जाटव हैं, जिनका एकमुश्त वोट मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी को जाता है।
बीजेपी की कोशिश है कि वह ग़ैर-जाटव समुदायों के लोगों को अपनी ओर ला सके।
ये मंत्री कोई ख़ास काम नहीं कर पाएंगे, यह साफ है। इसकी वजह यह है जब तक ये काम समझेंगे, कोई योजना बनाएंगे और उससे जुड़ा आदेश देंगे व उसे शुरू करेंगे तब तक चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी।
लेकिन ये लोग अपने-अपने समाज में जाकर यह कह सकेंगे कि बीजेपी ने उन्हें मंत्री बनाया है और वे उसे वोट दें।