यूपी उपचुनावः सपा-रालोद-बीजेपी की साख, राजनीति दांव पर

07:17 am Dec 05, 2022 | सत्य ब्यूरो

यूपी में लोकसभा की एक और विधानसभा की दो सीटों के लिए सोमवार को वोट डाले जा रहे हैं। तीनों उपचुनाव में बीजेपी और सपा-रालोद गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। बीएसपी और कांग्रेस इन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही हैं। इनके नतीजे भी 8 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे।

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण मैनपुरी संसदीय सीट पर उपचुनाव हो रहा है, वहीं रामपुर सदर और खतौली में, सपा विधायक आजम खान और बीजेपी विधायक विक्रम सिंह सैनी को विभिन्न मामलों में दोषी ठहराए जाने और अयोग्य घोषित किए जाने के बाद चुनाव हो रहे हैं। आजम खान को 2019 के हेट स्पीच मामले में एक अदालत द्वारा तीन साल की सजा सुनाए जाने के बाद अयोग्य घोषित कर दिया गया था, सैनी ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद विधानसभा की सदस्यता खो दी थी।

अखिलेश की परीक्षा

इन उपचुनावों के नतीजों का केंद्र या राज्य की बीजेपी सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि बीजेपी के पास दोनों जगह पर्याप्त बहुमत है। लेकिन यह जीत 2024 के आम चुनावों से पहले एक मनोवैज्ञानिक लाभ किसी भी पार्टी को दे सकती है। मैनपुरी में अगर सपा यह सीट निकाल लेती है तो उसके यादव-मुस्लिम गठजोड़ पर एक बार फिर से मुहर लगेगी। हालांकि डिंपल यादव खुद राजपूत समुदाय से हैं, लेकिन राजपूत परंपरागत रूप से बीजेपी का वोट बैंक है। इसलिए मैनपुरी में यादव-मुस्लिम मतदाता पर ही इस सीट का दारोमदार है। अगर सपा यह सीट नहीं निकाल पाती है तो इसका सीधा असर सपा और अखिलेश की राजनीति पर असर पड़ेगा। यही वजह है कि अखिलेश ने अपना सारा प्रचार मैनपुरी केंद्रित ही रखा। उन्होंने रामपुर और खतौली में प्रचार ही नहीं किया।

रामपुर में सपा से ज्यादा आजम की साख दांव परः इसी तरह रामपुर सीट सपा और उसके प्रत्याशी आसिम रजा से ज्यादा आजम खान की नाक का सवाल बनी हुई है। अगर सपा यहां से हारती है तो यह सीधे-सीधे आजम खान की हार होगी और यह माना जाएगा कि रामपुर के मुस्लिम वोटों पर अब उनकी पकड़ नहीं रह गई है। यही वजह है कि सपा से ज्यादा आजम यहां लड़ते हुए-दहाड़ते हुए दिख रहे हैं।

जयंत को खुद को साबित करने का मौका

खतौली की सीट रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह परिवार की साख इस चुनाव में दांव पर है। हालांकि बीजेपी को यह सीट निकालने में काफी मशक्कत करना पड़ रही है लेकिन वो जीत को लेकर आश्वस्त है। रालोद अगर यह सीट निकाल ले गई तो 2024 के लोकसभा चुनाव में वो सपा से सीटों का ज्यादा शेयर मांग सकती है। इसी तरह विपक्षी दलों में भी उसका महत्व बढ़ सकता है। इस सीट पर रालोद की जीत का एक मतलब यह भी होगा कि खतौली की जनता ने नफरत की राजनीति करने वालों को रिजेक्ट कर दिया है। खतौली में धर्मनिरपेक्ष राजनीति दांव पर है।

चुनाव आयोग के मुताबिक, मैनपुरी में छह उम्मीदवार, खतौली से 14 और रामपुर सदर से 10 उम्मीदवार मैदान में हैं।

मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की बड़ी बहू और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव हैं। बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य उनके खिलाफ खड़े हैं। बीजेपी उम्मीदवार, जो कभी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव के करीबी सहयोगी थे, इस साल के शुरू में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले भगवा पार्टी में शामिल हो गए। रामपुर सदर में बीजेपी ने पार्टी के पूर्व विधायक शिव बहादुर सक्सेना के बेटे आकाश सक्सेना को आजम खां के करीबी आसिम राजा के खिलाफ मैदान में उतारा है जबकि खतौली में विक्रम सिंह सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी (बीजेपी) और रालोद के मदन भैया के बीच मुकाबला है। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक और वरिष्ठ नेता भूपेंद्र चौधरी बीजेपी के शीर्ष प्रचारकों में शामिल थे। सपा प्रमुख अखिलेश यादव, जिन्होंने आजमगढ़ में पहले के उपचुनावों के लिए प्रचार नहीं किया था और रामपुर संसदीय सीटों पर, मैनपुरी में अपनी पत्नी के लिए एक आक्रामक अभियान का नेतृत्व किया और पार्टी के उम्मीदवार रज़ा के लिए वोट मांगने के लिए रामपुर सदर में खान और दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद के साथ एक रैली में भाग लिया। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी समर्थन हासिल करने के लिए खतौली में रहे।