उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 जैसे- जैसे नज़दीक आ रहा है, बीजेपी अलग-अलग जातियों को रिझाने और उन्हें खुद से जोड़ने की जोड़-तोड़ में तेज़ी से लग रही है, लेकिन कुछ जातियों की नाराज़गी बढ़ रही है और इसका साथ ही बढ़ रहा है सत्ता में अधिक से अधिक हिस्सेदारी के लिए उनका दवाब।
निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने शुक्रवार की रैली के बाद शनिवार को 'आज तक' से कहा कि यदि बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सरकार बनानी है तो निषादों की समस्या का निपटारा चुनाव के पहले ही करना होगा।
संजय निषाद का अल्टीमेटम
उनकी यह बात बीजेपी नेता अमित शाह के उस एलान के जवाब में है कि सरकार बनने पर निषादों की समस्या का हल निकाल लिया जाएगा।
संजय निषाद के कहने का मतलब साफ है कि चुनाव के बाद नहीं, पहले ही इस मुद्दे पर अंतिम बात हो जानी चाहिए और एक फ़ैसला ले लिया जाना चाहिए।
संजय निषाद ने कहा,
“
मैं प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखने जा रहा हूँ जिसमें निषादों की माँग तुरन्त मानने की माँग की जाएगी। हम चाहते हैं कि निषादों के लिए आरक्षण का एलान तुरन्त कर दिया जाए, चार महीने से हम इंतजार कर रहे हैं, पर अब तक कुछ नहीं हुआ है।
संजय निषाद, नेता, निषाद पार्टी
बीजेपी से गुस्सा
शुक्रवार को लखनऊ में बीजेपी व निषाद पार्टी का साझा कार्यक्रम हुआ। इस रैली में संजय निषाद की अगुआई में निषाद समाज के लोग भारी संख्या में एकत्रित हुए थे। उन्हें उम्मीद थी कि अमित शाह निषादों के आरक्षण को लेकर औपचारिक घोषणा करेंगे। लेकिन, गृहमंत्री ने इस बाबत कोई ठोस ऐलान नहीं किया। उन्होंने सिर्फ यह कहा कि सरकार बनाने के बाद इस पर निर्णय करेंगे।
इससे लोग नाराज़ हो गए और रैली में ही बीजेपी के ख़िलाफ़ बोलने लगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जैसे ही बोलना शुरू किया, रैली में विरोध के स्वर सुनाई पड़ने लगे।
लोग गुस्सा हो गए और बीजेपी को वोट नहीं देने की बात खुले आम कहने लगे।
संजय निषाद ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि लोगों को उम्मीद थी कि गृह मंत्री स्वयं रैली में आ रहे हैं तो वे कुछ न कुछ एलान ज़रूर करेंगे, ऐसा नहीं किए जाने से लोगों को निराशा हुई।
ओबीसी में हैं निषाद
बता दें कि उत्तर प्रदेश-बिहार में निषादों को दूसरा पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समूह में रखा गया है जबकि दिल्ली व दूसरे राज्यों में उन्हें अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी में रखा गया है। निषाद समाज की माँग है कि उन्हें भी अनूसूचित जाति में शामिल किया जाए।
अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व में समाजवादी पार्टी की तत्कालीन सरकार ने दिसंबर 2016 में अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के आरक्षण अधिनियम-1994 की धारा-13 में संशोधन कर केवट, बिंद, मल्लाह, नोनिया, मांझी, गौंड, निषाद, धीवर, बिंद, कहार, कश्यप, भर और राजभर को ओबीसी की श्रेणी से एससी में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। इस प्रस्ताव को अदालत में चुनौती देने से निषाद समाज को आरक्षण का मसला हल नहीं हो पाया।
निषाद पार्टी ने अब यह मुद्दा उठाया है और बीजेपी के साथ हाथ मिला कर 'सरकार बनाओ, अधिकार पाओ' का नारा दिया है।