ख़बरदार, जो उत्तर प्रदेश में प्रिंट मीडिया के किसी पत्रकार ने किसी घटना का वीडियो बनाने की कोशिश भी की तो आपके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज हो सकती है। यह बात कह रहे हैं मिर्ज़ापुर के जिलाधिकारी अनुराग पटेल। यह बात कह रहे हैं मिर्ज़ापुर के जिलाधिकारी। जिलाधिकारी के इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है। मामला देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल का है, जहाँ स्कूल में बच्चों को मिड डे मील में नमक के साथ रोटी दिये जाने का वीडियो बनाना पत्रकार को भारी पड़ गया।
डीएम के कहने का मतलब साफ़ है कि प्रिंट मीडिया के पत्रकार को फलां काम करना चाहिए और फलां नहीं। जब उनसे यह पूछा गया कि पत्रकार ख़बर बनाने गया था तो वह दोषी कैसे हो गया, वह साज़िशकर्ता कैसे हो गया। इस पर डीएम कहते हैं, ‘ख़बर बनाने का तरीक़ा अलग होता है। आप प्रिंट मीडिया के पत्रकार हो तो आप फ़ोटो खींच लेते, आप को जो गंभीरता लग रही थी, ग़लत हो रहा था, उसे आप छाप सकते थे लेकिन उन्होंने (पत्रकार ने) ऐसा नहीं किया, इसलिए उनकी भूमिका संदिग्ध लगी और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया।’
डीएम का बयान सुनने के बाद पत्रकारिता की थोड़ी सी समझ रखने वाला व्यक्ति सिर्फ़ अपना सिर पीट सकता है। सोशल मीडिया के इस दौर में जहाँ लगभग हर इंसान के पास स्मार्टफ़ोन है और लोग कई तरह के वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करते हैं, ऐसे में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता में काम कर रहा एक शख़्स अगर उसे कई दिनों से सूचना मिल रही है कि उसके इलाक़े के एक स्कूल में बच्चों को मिड डे मील में नमक-रोटी दी जा रही है तो वह वीडियो भी नहीं बना सकता।
किसके कहने पर दिया बयान!
डीएम साहब से पूछा जाना चाहिए कि आख़िर किसके कहने पर उन्होंने यह बयान दे दिया। क्योंकि डीएम का ओहदा बहुत बड़ा होता है और वह जिले में शासन का प्रतिनिधि होता है। बच्चों के नमक रोटी खाने का वीडियो सोशल मीडया पर जोरदार ढंग से वायरल होने के बाद यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की बहुत किरकिरी हो रही है। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि डीएम के ओहदे पर बैठे शख़्स ने बिना ‘ऊपरी’ निर्देश के प्रिंट मीडिया के पत्रकार को यह नहीं बताया होगा कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
यह वही डीएम हैं जिन्होंने इस मामले के सामने आने के बाद एबीएसए बृजेश सिंह को निलंबित कर दिया था। साथ ही बीएसए को ट्रांसफ़र करने की शासन से सिफ़ारिश करने के साथ कार्यमुक्त भी कर दिया था। तब डीएम ने घटना को लेकर कड़ी कार्रवाई की थी तो तीन दिन में ऐसा क्या हो गया कि डीएम को यह बताना पड़ा कि पत्रकार का क्या काम है। और अगर अब डीएम को यह लग रहा है कि यह घटना साज़िश थी तो उस समय उन्हें कार्रवाई करने की क्या ज़रूरत थी।
पत्रकार पवन जायसवाल के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज होने से पत्रकारों में ग़ुस्सा है और उन्होंने मिर्जापुर में जोरदार प्रदर्शन किया है। यूपी सरकार की इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ मिर्ज़ापुर में पत्रकारों ने धरना दिया।
अंत में सवाल देश में सिर्फ़ पत्रकारों से ही नहीं, मीडिया संस्थानों, सामाजिक संगठनों और हर उस व्यक्ति से है, जो चाहता है कि लोकतंत्र में आवाज उठाने की आज़ादी बरक़रार रहे। क्योंकि सही के पक्ष में और अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का अधिकार हमें संविधान ने दिया है और ऐसे लोग जो आवाज़ उठाने पर मुक़दमे दर्ज करवा रहे हैं, वे हमारे संवैधानिक अधिकारों को कुचल देना चाहते हैं। इसलिए यह वह मौक़ा है जब सभी को डीएम के बयान का, यूपी सरकार की कार्रवाई का लिखित, मौखिक या प्रदर्शन कर विरोध करना चाहिए। क्योंकि डीएम का यह फ़रमान और सरकार की यह कार्रवाई बेहद ख़तरनाक संकेत है।