सेक्युलरिज्म को अपनी राजनीति का आधार बताने वाली जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को आख़िर ऐसी क्या मुसीबत आन पड़ी कि उसने मालेगांव बम धमाकों के अभियुक्त को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। न सिर्फ़ शामिल किया बल्कि उन्हें उत्तर प्रदेश में जेडीयू की पूर्व सैनिक सेल का राज्य संयोजक भी नियुक्त कर दिया। अभियुक्त का नाम रमेश उपाध्याय है और वह आर्मी में मेजर रह चुके हैं।
2008 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के मुसलिम बहुल आबादी वाले इलाक़े मालेगांव में कई जगहों पर बम धमाके हुए थे। महाराष्ट्र एटीएस ने रमेश उपाध्याय के अलावा बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर, लेफ़्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को भी इस मामले में गिरफ़्तार किया था। हालांकि 2017 में उपाध्याय को जमानत मिल गई थी लेकिन इस मामले में एनआईए की स्पेशल अदालत में मुक़दमा अभी भी चल रहा है। इन धमाकों में 6 लोगों की जान गई थी और 100 से अधिक लोग जख्मी हुए थे।
नागरिकता संशोधन क़ानून, तीन तलाक़, धारा 370 के मसले पर बीजेपी के ख़िलाफ़ सख़्त रूख़ न अपनाने के आरोपों के कारण जेडीयू मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुसलिमों की ख़ासी आलोचना का शिकार होना पड़ा था।
भयंकर राजनीतिक नुक़सान की आशंका से परेशान नीतीश ने इसके बाद बिहार की विधानसभा में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस (एनआरसी) के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास करवाया था और नेशनल पॉपुलेशन ऑफ़ रजिस्टर (एनपीआर) 2020 को भी मौजूदा रूप में लागू करने से इनकार कर दिया था।
लेकिन अब नीतीश कुमार ने ये क़दम क्यों उठा लिया। यह सवाल नीतीश से ही पूछा जाएगा क्योंकि मालेगांव बम धमाकों के आरोपी को पार्टी में शामिल करने से पहले उनकी राय ज़रूर पूछी गयी होगी। इतना बड़ा फ़ैसला उनकी ‘हां’ के बगैर नहीं हुआ होगा।
महाराष्ट्र एटीएस को मालेगांव बम धमाकों की जांच के दौरान कर्नल पुरोहित और और उपाध्याय के बीच हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग मिली थी। इसमें प्रज्ञा ठाकुर के बारे में लंबी बातचीत हुई थी।
चुनाव लड़ चुके हैं उपाध्याय
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया के रहने वाले रमेश उपाध्याय वर्तमान में पुणे में रहते हैं लेकिन उनकी सियासी ख़्वाहिश उत्तर प्रदेश में ही सियासी करियर बनाने की दिखती है। इसी वजह से उन्होंने 2019 में बलिया सीट से लोकसभा का चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा था। उससे पहले 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी वह बलिया की बैरिया सीट से हिंदू महासभा के टिकट पर सियासी भाग्य आज़मा चुके हैं।
उपाध्याय ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में कहा, ‘जेडीयू के सदस्यों ने मुझसे संपर्क किया। बातचीत के बाद मैंने पार्टी के लिए काम करने का फ़ैसला किया। मेरा चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है। मैं पुणे में रह रहा हूं लेकिन पार्टी के काम के लिए उत्तर प्रदेश जाता रहूंगा।’
उपाध्याय ने अख़बार से कहा कि वह जेडीयू के विचार- ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ पर भरोसा रखते हैं। उपाध्याय ने कहा कि वह समाज के लिए काम करना चाहते हैं और जेडीयू इस दिशा में ही काम कर रही है।
ख़ुद पर लगे आरोपों को लेकर जब उपाध्याय से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं निर्दोष हूं। मैं राष्ट्रवादी हूं, देशभक्त हूं और सेक्युलर व्यक्ति हूं। मुझे मालेगांव बम धमाकों के मामले में झूठा फंसाया गया और मैं दोष मुक्त होने का इंतजार कर रहा हूं।’
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी 2019 में बीजेपी के टिकट पर भोपाल से चुनाव लड़ीं और सांसद बनी थीं। लेकिन एनडीए में साथ रहते हुए भी बीजेपी और जेडीयू की विचारधारा में अंतर है। बीजेपी जहां हिंदुत्व की राजनीति करती है, वहीं जेडीयू सेक्युलरिज्म को अपनी राजनीति का आधार मानती है।
हिंदुत्व की राजनीति करेंगे नीतीश
ऐसे वक्त में जब बिहार में विधानसभा का चुनाव चल रहा है। क्या नीतीश कुमार को यह अहसास नहीं रहा होगा कि आरजेडी, कांग्रेस उपाध्याय को पार्टी में शामिल करने को चुनावी मुद्दा बना सकते हैं। मुसलिम मतदाताओं के रूख़ को लेकर पहले से ही परेशान नीतीश कुमार ने क्या सोच कर रमेश उपाध्याय को पार्टी में शामिल किया है, ये तो वे ही जानते होंगे लेकिन राजनीति के जानकार सवाल पूछ रहे हैं कि क्या वे सेक्युलर राजनीति से हिंदुत्व की राजनीति की ओर शिफ़्ट कर रहे हैं।