लखीमपुर खीरी में हुई घटना को लेकर योगी सरकार ने फ़ैसला लिया है कि रिटायर्ड जज इस मामले की जांच करेंगे। यह भी फ़ैसला लिया गया है कि घटना में मारे गए किसानों के परिजनों को 45 लाख रुपये की आर्थिक सहायता राशि दी जाएगी। इस घटना को लेकर उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल बेहद गर्म है और विपक्षी दल योगी सरकार पर टूट पड़े हैं।
योगी सरकार घायलों को 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देगी। मृतकों के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी। यूपी के एडीजी प्रशांत कुमार ने कहा कि मारे गए लोगों के शवों का क़ानूनी प्रक्रिया के तहत पोस्टमार्टम कराया जाएगा और घटना के दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा।
सरकार के इस एलान के बाद किसानों ने प्रदर्शन ख़त्म कर दिया और वे शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए भी तैयार हो गए।
इससे पहले केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर मांग की कि इस मामले की जांच सीबीआई, एसआईटी या फिर सिटिंग/रिटायर्ड जज से कराई जानी चाहिए। उन्होंने यह भी मांग की कि इस घटना में मारे गए प्रत्येक बीजेपी कार्यकर्ता के परिजन को 50 लाख रुपये दिए जाने चाहिए।
टेनी ने कहा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं पर तलवारों और डंडों से हमला किया गया। उन्होंने अपने बेटे पर लगे आरोपों को भी पूरी तरह निराधार बताया और कहा कि अगर उनका बेटा वहां पर होता तो उसकी हत्या हो सकती थी। केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्र पर आरोप है कि उन्होंने अपनी कार से कथित रूप से किसानों को रौंद दिया।
नेताओं को जाने से रोका
कई सियासी दलों के नेताओं ने सोमवार को लखीमपुर खीरी पहुंचने की कोशिश की लेकिन उत्तर प्रदेश की पुलिस ने उन्हें रोक दिया। इनमें कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, एसपी के मुखिया अखिलेश यादव, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह, पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव आदि शामिल रहे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पंजाब के उप मुख्यमंत्री एसएस रंधावा को भी लखनऊ में हवाई हड्डे पर उतरने की इजाजत नहीं दी गई। इसे लेकर इन तमाम नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपना विरोध दर्ज कराया है।
इसके अलावा किसान नेता राकेश टिकैत सहित हरियाणा और पंजाब से भी कई नेताओं ने लखीमपुर की ओर कूच किया। सोमवार को किसान शव के साथ लखीमपुर खीरी में धरने पर बैठ गए और घटना के दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की मांग की थी।
घटना को लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कई जगहों पर किसानों के साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं ने भी सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में 5 महीने के अंदर चुनाव होने हैं। चुनाव से कुछ महीने पहले जिस तरह विपक्षी दलों ने इसे मुद्दा बनाया है, उससे निपट पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा।