उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के पीड़ित परिवारों की ओर से दायर याचिका के जवाब में कहा है कि यह अपराध बेहद गंभीर है और इसकी निंदा करने के लिए शब्द कम पड़ गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने यह भी कहा कि उसने हाई कोर्ट में आशीष मिश्रा को जमानत दिए जाने का पुरजोर विरोध किया था।
'भागने का खतरा नहीं'
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि आशीष मिश्रा के देश छोड़कर भागने का कोई खतरा नहीं है और वह कोई आदतन अपराधी भी नहीं हैं।
वकील ने कहा कि अगर वह आदतन अपराधी होते तब उन्हें जमानत नहीं दी जानी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से एसआईटी के द्वारा आशीष मिश्रा की जमानत खारिज करने वाली सिफारिश पर जवाब मांगा। इस पर आशीष मिश्रा के अधिवक्ता ने अदालत से कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट जमानत को खारिज कर देती है तो कोई दूसरी अदालत इस मामले को नहीं सुनेगी।
तमाम दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया।
लखीमपुर खीरी की घटना में कुल 8 लोगों की मौत हुई थी। इन में से 4 किसान भी थे। किसानों के साथ ही बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं शुभम मिश्रा, श्याम सुंदर निषाद और हरि ओम मिश्रा की भीड़ ने जान ले ली थी। एक पत्रकार की भी मौत इस घटना में हुई थी।आशीष मिश्रा को बीते साल 9 अक्टूबर को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। लेकिन फरवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मिश्रा को जमानत दे दी थी। आशीष मिश्रा की जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
याचिका में आशीष मिश्रा को हाई कोर्ट के द्वारा दी गई जमानत को रद्द किए जाने का अनुरोध शीर्ष अदालत से किया गया था। 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और आशीष मिश्रा से जवाब मांगा था और पूछा था कि इस जमानत को रद्द क्यों न कर दिया जाए।
सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की। मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस मामले में अहम बातों को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ने घटना से पहले जनता के बीच एक सभा में प्रदर्शनकारी किसानों को धमकाया था।
दवे ने कहा कि घटना वाले दिन जिलाधिकारी ने वीआईपी रूट में बदलाव कर दिया था लेकिन यह जानते हुए भी अभियुक्त उसी रास्ते से गुजरे जहां पर 10 से 15 हजार लोग जमा थे। आशीष मिश्रा और उसके दोस्तों ने नारेबाजी की और उनकी हत्या करने के इरादे से उन्हें कुचल दिया और इस वजह से 4 किसानों और एक पत्रकार की मौत हो गई।
दवे ने कहा कि एसआईटी ने इस मामले की काफी पड़ताल की। उन्होंने सवाल उठाया कि हाईकोर्ट के जज इस मामले में फैसला देने को लेकर इतने परेशान क्यों थे। उन्होंने कहा कि यह मामला ऐसा नहीं था जिसमें जमानत दी जा सकती है।
इधर, इस मामले में बनाई गई कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी स्टेटस रिपोर्ट जमा कर दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले की जांच कर रही विशेष जांच टीम यानी एसआईटी ने दो बार मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्रा की जमानत रद्द किए जाने की सिफारिश उत्तर प्रदेश सरकार से की थी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आशीष मिश्रा के खिलाफ इस बात के सबूत हैं कि घटना वाले वक्त वह घटनास्थल पर मौजूद था और उसे इस बात की जानकारी थी कि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के रूट में बदलाव हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च को आशीष मिश्रा की जमानत को रद्द न करने पर उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर खिंचाई की थी।
बता दें कि पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज जस्टिस राकेश कुमार जैन को इस मामले की जांच निगरानी करने के लिए नियुक्त किया था।