संघ परिवार से जुड़े एक संगठन के सदस्य दशहरा के दिन यानी रविवार को कथित तौर पर भगवा झंडा लिए ताजमहल परिसर में घुसे और भगवान शिव की पूजा की। हिंदू जागरण मंच ने कथित तौर पर इसका वीडियो बनाया और इसको शेयर किया है। रिपोर्टों में कहा गया है कि हिंदू जागरण मंच के सदस्यों ने ताजमहल परिसर में शिव चालीसा का पाठ भी किया।
वीडियो में देखा जा सकता है कि ताजमहल परिसर में एक व्यक्ति अपनी आँखें बंद किए हुए एक बेंच पर बैठा दिखाई दे रहा है। एक अन्य व्यक्ति बेंच के पीछे भगवा झंडा लहरा रहा है। एक तीसरा आदमी अपने मोबाइल फ़ोन पर दोनों को रिकॉर्ड करता हुआ दिखाई दे रहा है। किसी चौथे व्यक्ति ने इस वीडियो को शूट किया होगा।
संगठन के आगरा के प्रभारी गौरव ठाकुर ने ताजमहल परिसर में आराधना करने की बात ख़ुद स्वीकारी। उन्होंने स्थानीय रिपोर्टरों से कहा कि ताजमहल मूल रूप से 'तेजो महालय' था। उन्होंने दावा किया, 'मैंने पिछले कुछ वर्षों में कम से कम पाँच बार ताजमहल में शिव की आराधना की है और तब तक ऐसा करता रहूँगा जब तक सरकार हिंदुओं को स्मारक सौंपने के लिए सहमत नहीं होती।'
बीजेपी और आरएसएस ने ख़ुद को इससे अलग किया है। 'द टेलीग्राफ़' की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में बीजेपी के मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ला ने कहा, 'वीडियो में कुछ युवा विजयादशमी के झंडे के साथ सेल्फ़ी लेते हुए देखे गए हैं। यह आरएसएस का झंडा नहीं है।' रिपोर्ट के अनुसार आगरा में आरएसएस के एक स्थानीय नेता ने कहा कि जो झंडा युवा लिए हुए थे वह आरएसएस का झंडा नहीं है।
बीजेपी और आरएसएस की यह सफ़ाई इसलिए काफ़ी अहम है कि उस झंडे को देखकर कहीं यह संदेह न हो जाए कि वह आरएसएस का झंडा है। यह इसलिए कि विजयादशमी पर कुछ इसी तरह का भगवा झंडा लिए शोभायात्राएँ निकालने के लिए संघ को जाना जाता है।
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वहाँ सुरक्षा में लगे सीआईएसएफ़ कमांडेंट राहुल यादव ने कहा, 'हमें यह पता नहीं चला कि यह कब हुआ और हम वीडियो की सत्यता का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं।' उन्होंने कहा है कि यदि ये आरोप सही पाए जाते हैं तो कार्रवाई की जाएगी।
बता दें कि हाल के वर्षों में यह दावा किया जाने लगा है कि शाहजहाँ ने 17वीं शताब्दी में ताजमहल को मंदिर के अवशेष पर बनाया गया है। इस मामले में कई दक्षिणपंथी लोग दावा करते रहे हैं कि वह ताजमहल नहीं है, बल्कि 'तेजो महालय' है।
यह मामला अप्रैल 2015 में तब प्रमुखता से उठा था जब आगरा ज़िला अदालत में छह वकीलों ने एक याचिका दाखिल की थी। उसमें कहा गया था कि ताजमहल एक शिव मंदिर था और इसे 'तेजो महालय' के नाम से जाना जाता था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, गृह सचिव और एएसआई से जवाब तलब किया था। इसी के बाद संस्कृति मंत्रालय ने नवंबर 2015 के दौरान लोकसभा में कहा था कि ताजमहल की जगह पर मंदिर होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।
सुनवाई के दौरान 2017 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने एक हलफनामा पेश कर कहा था, 'ताजमहल एक इसलामिक ढाँचा है, जबकि अपील करने वाले दूसरे धर्म के हैं। स्मारक पर कोई भी धार्मिक गतिविधि पहले कभी नहीं हुई थी।'
हाल के दिनों में जब से अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया है तब से कई जगहों पर ऐसे मामले आ रहे हैं। मथुरा और वाराणसी में भी इसी तरह से मुसलिम धार्मिक स्थलों के बारे में दावे किए जा रहे हैं कि वहाँ पहले मंदिर थे। हालाँकि छिटपुट मामले तो पहले से ही होते रहे हैं, लेकिन हाल के महीनों में इसमें तेज़ी आई है।
जिस तरह से ताजमहल के मामले में बीजेपी और संघ ख़ुद को अलग बता रहे हैं उसी तरह से मथुरा और वाराणसी के मामले में भी वे ख़ुद को अलग बताते हैं।