चुनावी गहमागहमी के वातावरण के बीच पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में भ्रमण करने का अवसर मिला। सरकार द्वारा जिस विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा है उसका तो कहीं दूर तक नाम-ओ-निशान नहीं दिखाई दिया। शहरों व क़स्बों में वही टूटी-फूटी गड्ढेदार धूल भरी सड़कें, जगह जगह सड़कों व चौराहों पर लावारिस पशुओं के क़ब्ज़े, जाम पड़े सड़ांध मारते नाले व नालियां, आम लोगों के चेहरों पर छाई मायूसियाँ, युवाओं में अपने करियर के प्रति असुरक्षा का भय, महंगाई से दुखी जनता की पीड़ा, ग़रीबी सब कुछ साफ़ नज़र आता है।
परन्तु इन धरातलीय स्थिति के बावजूद इन्हीं सड़कों पर सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रदेश में हज़ारों की संख्या में बड़े से बड़े इश्तेहारी फ़्लैक्स लगवाकर यह दावा किया गया है कि 'सोच ईमानदार-काम दमदार= फिर एक बार -भाजपा सरकार'। यह दावा इश्तेहार के नीचे के हिस्से में छपा है जबकि ऊपरी भाग में लिखा है -फ़र्क़ साफ़ है -तब-राम लला थे टेंट में= अब-भव्य राम मंदिर का निर्माण। 'तब' का अर्थ जब भाजपा सत्ता में नहीं थी और अब का अर्थ है कि भाजपा के शासन में मंदिर का निर्माण हो रहा है। गोया भाजपा अदालती फ़ैसले के बजाये राम मंदिर निर्माण का श्रेय स्वयं लेने को तत्पर है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को चूँकि राजनैतिक विश्लेषक इस नज़रिये से भी देख रहे हैं कि यदि बंगाल की तरह उत्तर प्रदेश में भी भाजपा का विजय रथ अवरोधित हो गया तो 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम भी प्रभावित हो सकते हैं। लिहाज़ा उत्तर प्रदेश जीतने के लिये मतदाताओं विशेषकर धर्म के आधार पर बहुसंख्य मतदाताओं को लुभाने के लिये ही इस तरह के इश्तेहार अभियान चलाये गये हैं। प्रदेश में वाहनों में लाउडस्पीकर पर नारे लगाये जा रहे हैं कि 'अयोध्या तो झाँकी है, काशी-मथुरा बाक़ी है।'
राजनैतिक विद्वेष भरे इस चुनाव में भाजपा केवल यही श्रेय मात्र नहीं ले रही है कि राम मंदिर हमने बनवाया है और यह हमारा दमदार काम है। बल्कि इसके साथ ही वह जनता को इस बात के लिए भी गुमराह कर रही है कि यदि समाजवादी पार्टी सत्ता में आ गयी तो वह मंदिर निर्माण में बाधा खड़ी करेगी।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के जालौन में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जहां अपने विरोधियों पर निशाना साधते हुये तमाम बातें कहीं वहीं उन्होंने यह भी कहा कि 'विपक्ष राम मंदिर का निर्माण नहीं चाहता'।
अमित शाह ने कहा कि अखिलेश यादव इस इंतज़ार में हैं कि उनकी सरकार बने और राम मंदिर का निर्माण रोक दिया जाए।
इसके पहले भी भाजपा की इसी रणनीति के तहत कुछ समय पूर्व सोशल मीडिया पर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के फ़र्ज़ी ट्वीट की एक फ़ोटो वायरल की गयी थी जिसमें लिखा गया था- “उत्तर प्रदेश में अगर हमारी सरकार बनी, तो हम अपने मुसलिम भाइयों से यह वादा करते हैं कि बाबरी मसजिद का निर्माण उसी स्थान पर करायेंगे, जहां पर आज राम मंदिर का निर्माण हो रहा है”। जांच करने पर पता चला था कि यह एक फ़र्ज़ी ट्ववीट का स्क्रीन शॉट था जिसे अखिलेश यादव को बदनाम करने के लिये वायरल कराया गया था। जबकि मंदिर निर्माण पर आये अदालती फ़ैसले का अखिलेश यादव ने सम्मान करते हुए यह कहा था - “जब राम मंदिर बनेगा तब मैं पत्नी-बच्चों संग दर्शन करूंगा, भगवान विष्णु के जितने अवतार हैं हम सभी को मानते हैं।”
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने तो अपने पद व क़द के अनुसार एक और बड़ा बयान यह दे डाला कि- “अखिलेश यादव राम मंदिर पर बुलडोज़र चलाने के लिए सत्ता में आना चाहते हैं।” इतना भड़काऊ ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान देने से साफ़ ज़ाहिर होता है कि इस बार फिर चुनाव काम नहीं बल्कि 'राम' भरोसे ही है।
वैसे भी पूरे साल चले किसान आंदोलन के बाद विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह किसानों का भाजपा से मोहभंग हुआ है और इसके साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुसलिम एकता एक बार फिर से सामने आई है उसे देखकर भी भाजपा के हाथ पांव फूले हुए हैं। और देश के सबसे बड़े व अयोध्या-काशी-मथुरा जैसे प्रमुख तीर्थों के राज्य, उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की राजनीति करना भाजपा के लिए पहले भी फ़ायदेमंद ही साबित हुआ है।
यही वह राज्य है जहां 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'क़ब्रिस्तान बनाम श्मशान' का 'विराट दर्शन ' प्रस्तुत किया था। और इस बार फिर हिन्दू मुसलिम व मंदिर मसजिद के तरह-तरह के नये नये 'दर्शन ' पेश किये जा रहे हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे योगी आदित्यनाथ स्वयं कह रहे हैं कि इस बार 'मुक़ाबला अस्सी बनाम बीस है’। बीस प्रतिशत से उनका तात्पर्य क्या हो सकता है? इन दिनों भाजपा नेताओं के भाषणों के पसंदीदा शब्द 'अब्बा जान, जिन्ना, जालीदार टोपी, पाकिस्तान’ आदि यही सब रह गये हैं। अपने विज्ञापनों में भी सरकार जब अपराधी माफ़िया को समाप्त करने का उल्लेख करती है तो उसे अतीक़ अहमद व मुख़्तार अंसारी जैसे चेहरे ही दिखाई दिये, विकास दूबे का नाम नज़र नहीं आया।
कहा तो यही जाता है कि असीम (भगवान) को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। जो लोग भगवान अथवा महापुरुषों को धर्म अथवा वर्ग विशेष तक सीमित रखने का प्रयास करते हैं वे दरअसल असीम को सीमित करने की ही चेष्टा करते हैं। राम-मुहम्मद-ईसा-नानक जैसे महापुरुषों को किसी धर्म विशेष की 'संपत्ति' कैसे माना जा सकता है। परन्तु भाजपा ने तो सीमित क्या बल्कि भगवान राम को इतना 'अति सीमित' कर दिया है कि गोया राम देश के समस्त हिन्दुओं के भी नहीं बल्कि केवल भाजपाई हिन्दुओं के ही आराध्य हैं। और जो दल या नेता भाजपा की विचारधारा से सहमत नहीं या चुनावों में इनका विरोधी है वह इनकी नज़रों में राम विरोधी ही नहीं बल्कि राम द्रोही भी है। चुनावी प्रचार का यह तल्ख़ अंदाज़ फ़िलहाल तो यही बता रहा है कि इस बार भी भाजपा उत्तर प्रदेश में काम नहीं बल्कि फिर 'राम' के ही भरोसे है।