तेलंगाना में फिलहाल केसीआर की पार्टी भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस पूर्ववर्ती टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्र समिति) की सरकार है। उसके सामने सरकार को बचाने की चुनौती है। कुछ चुनाव सर्वे कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते हुए या फिर उसे आगे भी दिखा रहे हैं। तो सवाल है कि आख़िर किस पार्टी की सरकार बनेगी?
वैसे, यह समझने के लिए 2018 के चुनाव नतीजे भी मददगार साबित हो सकते हैं। पिछले चुनाव में टीआरएस (बीआरएस नाम बदला) ने 88 सीटें जीती थी और वह सबसे बड़ी पार्टी थी। उसके सामने सबसे क़रीब कांग्रेस ही थी जिसने 19 सीटें जीती थी। हालाँकि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने 7 सीटें जीती थीं। अन्य ने 5 सीटों पर कब्जा किया था।
इतनी ज़्यादा सीटों के साथ टीआरएस ने सरकार बनाई थी। वैसे, टीआरएस सीटों में ही काफ़ी आगे नहीं थी, बल्कि वोट प्रतिशत के मामले में भी काफ़ी आगे थी। इसने 46.87 वोट हासिल किए थे। कांग्रेस 28.43 फ़ीसदी वोट हासिल कर सकी थी। 7 सीटें जीतने वाली एआईएमआईएम 2.71 फ़ीसदी वोट हासिल कर पाई थी।
राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर हैं। बीआरएस इस बार भी उनके चेहरे के साथ ही चुनाव में जाएगी। कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री पद की रेस में कई चेहरों की चर्चा होती है। इनमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी, सांसद कैप्टन एन उत्तमकुमार रेड्डी और वेंकट रेड्डी जैसे नेता शामिल हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा इस चुनाव में सामूहिक नेतृत्व के जरिए जनता के सामने जा रही है।
कहा तो जा रहा है कि इस चुनाव में मुख्य मुकाबला बीआरएस, कांग्रेस और भाजपा के बीच होने की संभावना है। इसके अलावा टीडीपी और एआईएमआईएम जैसे दल भी अपनी दावेदारी को मजबूत बता रहे हैं।
कहा जाता है कि तेलंगाना में रेड्डी और दलित-आदिवासी समाज काफ़ी दबदबा रखते हैं। राज्य में बेरोजगारी और पेपर लीक जैसे मुद्दे केसीआर सरकार की परेशानी का सबब बन सकते हैं। भर्तियों के मुद्दे पर राज्य में आए दिन बेरोजगार धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं। वैसे, मंत्री केटीआर रामाराव का दावा है कि राज्य सरकार ने दो लाख युवाओं को नौकरियां दी हैं। इस चुनाव में राज्य में महिलाओं, आदिवासियों और किसानों से जुड़े मुद्दे भी हैं।