उत्तर भारत में बिहार चुनाव के शोर के बाद अब बारी दक्षिण की है। दक्षिण में इन दिनों हैदराबाद नगर निगम के चुनावों को लेकर माहौल गर्म है। माहौल गर्म होने के पीछे पहला कारण बीजेपी का निगम चुनाव में पूरी ताक़त के साथ उतरना है और दूसरा तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का अलग-अलग लड़ना।
टीआरएस और एआईएमआईएम के अलग-अलग लड़ने के पीछे वजह बीजेपी का ओवैसी पर हमलावर होना बताया जा रहा है। बीजेपी ओवैसी को जिन्ना बताने पर तुली हुई है।
टीआरएस के मुखिया और राज्य के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) को डर है कि ओवैसी के साथ गठबंधन जारी रखने से हिंदू मतदाता नाराज़ होकर बीजेपी के पाले में जा सकते हैं। ऐसे में केसीआर का यह क़दम आने वाले वक़्त में तेलंगाना की राजनीति में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति को पैदा करेगा क्योंकि बीजेपी भी राज्य में जनाधार बढ़ा रही है।
चुनाव के लिए मतदान 1 दिसंबर को होगा। इस चुनाव में टीआरएस, बीजेपी, कांग्रेस और एआईएमआईएम के बीच सीधा मुक़ाबला है। हैदराबाद नगर निगम में 150 वार्ड हैं और 40 फ़ीसदी मुसलिम आबादी है।
2016 के निगम चुनाव में एआईएमआईएम को 44 सीटें मिली थीं जबकि टीआरएस को 99। इस चुनाव को राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमी फ़ाइनल माना जा रहा है।
ध्रुवीकरण में जुटी बीजेपी
बीजेपी तेलंगाना में ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है और इसीलिए उसके नेता चुनाव में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठा रहे हैं। बीजेपी नेता तेजस्वी सूर्या ने कहा है कि हर एक वोट जो ओवैसी को मिलेगा वो भारत के ख़िलाफ़ जाएगा। सूर्या का कहना है कि असदउद्दीन ओवैसी मुहम्मद अली जिन्ना की भाषा बोलते हैं।
दक्षिण में विस्तार में जुटी बीजेपी
तेलंगाना में बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन उसे आंध्र प्रदेश में भी मजबूती देगा। वैसे भी अमित शाह, इन दिनों दक्षिण में पार्टी को मजबूत करने के काम में जुटे हुए हैं। हाल ही में वह तमिलनाडु का दौरा करके लौटे हैं और केरल और पुडुचेरी के चुनाव पर भी उनकी नज़र है। इन तीनों ही राज्यों में 6 महीने के भीतर चुनाव होने हैं।
दुब्बका उपचुनाव में बीजेपी जीती
नगर निगम चुनाव के साथ ही राज्य में कुछ ही दिन पहले दुब्बका सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे की बात करनी होगी। दुब्बका सीट पर मिली जीत से पता चलता है कि तेलंगाना में बीजेपी की स्वीकार्यता बढ़ रही है क्योंकि दो साल पहले ही इस सीट पर टीआरएस को बड़ी जीत मिली थी।
दिसंबर, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में टीआरएस को जबरदस्त जीत मिली थी और इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वह राज्य की 17 में से 11 सीटें जीती थी। लेकिन दुब्बका सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी से मिली हार के बाद उसे इस बात का डर सता रहा है कि कहीं ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन रखना उसके लिए ख़तरा न बन जाए।
बीजेपी की कोशिश तेलंगाना में कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेलकर टीआरएस से सीधा मुक़ाबला करने की है। इसलिए, इस बार उसने प्रकाश जावड़ेकर, स्मृति ईरानी से लेकर कई बड़े नेताओं को प्रचार में उतारा है।
भूपेंद्र यादव को दी जिम्मेदारी
तेलंगाना में बीजेपी के पास चार सांसद और दो विधायक हैं। नगर निगम चुनाव को लेकर वह कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि बिहार चुनाव में जीत के शिल्पी रहे पार्टी प्रभारी भूपेंद्र यादव को हैदराबाद चुनाव में भी जीत दिलाने की जिम्मेदारी दी गई है। पार्टी नेताओं का कहना है कि दुब्बका के नतीजे बताते हैं कि राज्य की जनता टीआरएस के विकल्प के रूप में उसे देख रही है।
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 7.1 फ़ीसदी वोट मिले थे जो लोकसभा चुनाव में बढ़कर 19.45 फ़ीसदी हो गए थे। बीजेपी को इस बार जन सेना पार्टी का भी साथ मिला है। इस पार्टी के अध्यक्ष और अभिनेता पवन कल्याण ने कहा है कि वह चुनाव लड़ने के बजाए बीजेपी का समर्थन करेंगे।
करीमनगर से बीजेपी सांसद और तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष बांडी संजय कुमार के नेतृत्व में पार्टी लगातार केसीआर सरकार पर हमलावर है।
केसीआर को सतर्क रहना होगा
केसीआर और उनके बेटे केटीआर ने बीजेपी की राजनीति को बांटने वाला बताया है और कहा है कि इस पार्टी के कारण देश में आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। यह तेलंगाना में बीजेपी की बढ़ती ताक़त को दिखाता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में केसीआर कांग्रेस को अपना सियासी प्रतिद्वंद्वी बताते थे और बीजेपी को मुक़ाबले में नहीं मानते थे। जबकि नगर निगम के चुनाव में वे कांग्रेस को नज़रअंदाज कर बीजेपी पर हमले कर रहे हैं।
एंटी बीजेपी फ्रंट बनाने की मुहिम में जुटने जा रहे केसीआर को तेलंगाना का अपना किला बचाए रखना होगा क्योंकि बीजेपी ने दक्षिण में विस्तार को अपना मक़सद बना लिया है।