अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के हाथ में हुकूमत आने के बाद पाकिस्तान अपनी सुरक्षा के लिए भी परेशान हो गया है। पाकिस्तान ने वहां बनने वाली संभावित सरकार से कहा है कि वह आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को अपनी ज़मीन का इस्तेमाल न करने दे और उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करे।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने इस सवाल के जवाब में कि अफ़ग़ानिस्तान की जेलों से तमाम आतंकी संगठनों के अलावा टीटीपी के लोगों को भी रिहा किया गया है, कहा कि पाकिस्तान ने इसका विरोध किया है। रिहा होने वालों में टीटीपी का नेता मौलवी फक़ीर मोहम्मद भी शामिल है।
पाकिस्तान ने कहा, उसे उम्मीद है कि एक बार अफ़ग़ानिस्तान में नई सरकार कायम हो जाएगी तो वह इस बात को लेकर कड़े क़दम उठाएगी कि उसके मुल्क़ की ज़मीन का इस्तेमाल दूसरे देशों के ख़िलाफ़ न हो।
मुश्किल में इमरान
पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म इमरान ख़ान कहते हैं कि तालिबान ने ग़ुलामी की जंजीरें तोड़ दी हैं, ऐसा करके वह पीछे दरवाज़े से तालिबान का समर्थन करते हैं लेकिन उन्हें इस बात का डर भी है कि तालिबान का समर्थन करना कितना ख़तरनाक हो सकता है। वह जानते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुक़ूमत आते ही टीटीपी के आतंकवादी एक बार फिर सिर उठा सकते हैं। इसलिए इमरान सरकार काबुल से इस बात का भरोसा चाहती है कि अफ़ग़ानिस्तान में टीटीपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो।
पाकिस्तान तालिबान को भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की रणनीति के तहत कहीं अपने ही हाथ न जला ले क्योंकि बीते कुछ दिनों में तालिबान को पाकिस्तान के अंदर भी ख़ासा सपोर्ट मिला है। पाकिस्तान की कोशिश अफ़ग़ानिस्तान में बनने वाली सरकार में मजबूत पकड़ बनाकर इस पूरे इलाक़े में भारत के असर को कम करने की भी है।
लेकिन उसे इस बात का भी डर है कि तालिबान का खुलकर समर्थन करने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी वैधता पर सवाल खड़ा हो जाएगा और अगर तालिबान पहले की तरह ख़ून-ख़राबे पर उतर आया तो और मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।
टीटीपी से क्यों डरता है पाक?
टीटीपी शरिया क़ानून को लागू करने की हिमायत करता है और वह अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी और नैटो देशों की सेनाओं से लड़ चुका है, इसके साथ ही वह पाकिस्तान की सेना के ख़िलाफ़ जेहाद में भी शामिल हैं। टीटीपी का पाकिस्तान को लेकर रूख़ हमेशा से आक्रामक रहा है। टीटीपी के साथ ही कई और आतंकी संगठन भी शामिल हैं।
पाकिस्तान में टीटीपी का कहर
टीटीपी ने साल 2007 से 2014 तक पाकिस्तान में कहर बरपा दिया था। 2012 में टीटीपी पाकिस्तान में बहुत मजबूत था और इसके पास 25 हज़ार सदस्य थे। तब इसने पूरे पाकिस्तान में जमकर हमले किए थे और काफी ख़ून-ख़राबा हुआ था।
टीटीपी के हमलों में से 2011 में पाकिस्तान के हवाई अड्डे पर किया गया एक बड़ा हमला, कराची इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर 2014 में किया गया हमला, पेशावर के सैनिक स्कूल में 140 बच्चों का नरसंहार, प्रमुख हैं।
इसके बाद 2014 में पाकिस्तानी सेना ने टीटीपी पर हमले किए थे और तब यह आतंकी संगठन काफी कमजोर हो गया था। लेकिन बीते कुछ सालों में टीटीपी फिर से मजबूत हुआ है और इसके आतंकवादियों ने उत्तरी और दक्षिणी वज़ीरिस्तान में अपने शरिया नियमों को लागू करने का हुकुम सुनाया है।
जारी रहा कहर
साल, 2020 में टीटीपी की मीडिया विंग उमर मीडिया ने दो संगठनों जमात-उल-अहरर और हिज़बुल अहरर को मैदान में उतारा था। इन दोनों ने पाकिस्तान के अंदर बहुत धमाके किए थे और बाद में ये दोनों ही टीटीपी में शामिल हो गए थे। पाकिस्तान में टीटीपी के कहर का ये सिलसिला 2021 में भी जारी रहा, जब साल के पहले दो महीनों में 32 जगहों पर हमले हुए। इनमें से अधिकतर फ़ाटा के इलाके में हुए थे।
पाकिस्तान की परेशानी यही है कि तालिबान का असर अगर ज़्यादा बढ़ा तो शरिया क़ानूनों को लागू करने की उसकी जिद भी बढ़ेगी और टीटीपी के भी मज़बूत होने से उसके लिए भारी मुसीबत खड़ी हो जाएगी।
कुछ जानकारों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुक़ूमत आने के बाद टीटीपी को फिर से मजबूत होने में और मदद मिलेगी क्योंकि तालिबान चरमपंथी इसलामिक शासन को वैधता देता है और इस विचारधारा के समर्थकों को आगे बढ़ाता है। ऐसे हालात में टीटीपी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ और आक्रामक हो सकता है।
लेकिन ये इस पर भी निर्भर करेगा कि तालिबान और टीटीपी के रिश्ते कैसे रहते हैं। दोनों के रिश्ते अच्छे नहीं तो ख़राब भी नहीं रहे हैं। इन दोनों आतंकवादी तंजीमों के नेता एक-दूसरे के नेताओं के बारे में, इनके काम के तौर-तरीक़ों को जानते हैं। इसलिए पाकिस्तान किसी भी तरह टीटीपी को रोकना चाहता है वरना वह उसके लिए बेहद ख़तरनाक साबित होगा।