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अयोग्यता पर फ़ैसले से पहले स्पीकर-शिंदे मुलाकात पर आपत्ति क्यों?

अयोग्यता पर फ़ैसले से पहले स्पीकर-शिंदे मुलाकात पर आपत्ति क्यों?

उद्धव ठाकरे की शिवसेना से बगावत कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले एकनाथ शिंदे खेमे के विधायकों की अयोग्यता पर फ़ैसले से पहले गहमागहमी क्यों? जानिए, आख़िर उद्धव खेमा सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुँचा। 

शिवसेना विधायक अयोग्यता मामले में फ़ैसले से पहले फिर से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है। अयोग्यता मामले में स्पीकर द्वारा फ़ैसला 10 जनवरी को शाम 4 बजे तक घोषित किया जाना है।

लेकिन इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच बैठक हो गई। यही आपत्ति की वजह है। शिवसेना के यूबीटी गुट ने इसी पर आपत्ति जताई और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। शिवसेना ने स्पीकर को लेकर सवाल उठाया है कि क्या जज उस आरोपी से फ़ैसले सुनाने से पहले मिल सकते हैं जिसके ख़िलाफ़ फ़ैसला देना हो।

ऐसी ख़बरें हैं कि 7 जनवरी को स्पीकर राहुल नार्वेकर की मुख्यमंत्री शिंदे से उनके आवास पर मुलाकात पर उद्धव ठाकरे गुट ने आपत्ति जताई। सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने आवेदन में शिवसेना यूबीटी नेता सुनील प्रभु ने कहा कि उन्हें खतरनाक खबर मिली है कि महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ उनके आधिकारिक आवास पर बैठक की है।

शिंदे गुट के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं के शीघ्र निपटान और रिकॉर्ड पर अतिरिक्त दस्तावेज रखने की मांग करते हुए रिट याचिका में आवेदन दायर किया गया। इसमें कहा गया, 'अयोग्यता याचिका पर निर्णय लेने से तीन दिन पहले स्पीकर का एकनाथ शिंदे से मिलना बेहद अनुचित है। स्पीकर को निष्पक्ष तरीके से कार्य करना ज़रूरी है। हालाँकि, स्पीकर का वर्तमान कार्य निर्णय में उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।'

याचिका में कहा गया है, 'अध्यक्ष का वर्तमान कार्य उस कानूनी सिद्धांत का उल्लंघन है जिसमें कहा जाता है कि न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए।'

इस मामले की शुरुआत जून 2022 में तब हुई थी जब शिंदे और कई विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। इस वजह से शिवसेना में विभाजन हो गया और महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई।

शिंदे और ठाकरे गुटों द्वारा दलबदल विरोधी कानूनों के तहत एक दूसरे के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए क्रॉस याचिकाएं दायर की गईं। दोनों गुटों के पदाधिकारियों ने कहा कि स्पीकर के प्रतिकूल फैसले की स्थिति में वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। जून 2022 में विद्रोह के बाद शिंदे भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने।

इस बीच चुनाव आयोग ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को 'शिवसेना' नाम और 'धनुष और तीर' प्रतीक दिया, जबकि ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को शिवसेना (यूबीटी) नाम दिया गया, जिसका प्रतीक एक जलती हुई मशाल है।

इस बीच, अयोग्यता वाले मामले का फ़ैसला लटका रहा। बहरहाल, इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर 10 जनवरी को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और कई विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुनाएंगे। इन विधायकों के विद्रोह की वजह से जून 2022 में शिवसेना विभाजित हो गई थी। बगावत के तुरंत बाद ही उन विधायकों की अयोग्यता के लिए आवेदन दिया गया था। लेकिन तब से लेकर अब तक इस पर फ़ैसला नहीं हो सका है। इतनी देरी की वजह से ही सुप्रीम कोर्ट में यह मामला गया और अदालत ने स्पीकर की जमकर खिंचाई की। इसने दो बार स्पीकर को तय समय में फ़ैसला सुनाने को कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने की समय सीमा 31 दिसंबर 2023 तय की थी, लेकिन उससे कुछ दिन पहले 15 दिसंबर को कोर्ट ने 10 दिन की मोहलत देते हुए फैसले की नई तारीख 10 जनवरी तय की थी।

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