अब एक और राज्य में राज्यपाल और सरकार के बीच घमासान तेज हो गया है । विपक्षी राज्यों में मोदी सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल राज्य सरकारों के काम काज में दख़लंदाज़ी करते हैं। ताज़ा उदाहरण तमिलनाडु का है। राज्य विधानसभा ने सोमवार को राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ विधानसभा द्वारा पारित कई विधेयकों को मंजूरी न देने तथा उनको अनिश्चितकाल के लिए रोक लगाने के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया।
प्रस्ताव पारित करने के थोड़ी ही देर बाद राज्यपाल आरएन रवि ने सरकार द्वारा पारित ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने और उनको विनयमित करने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी। राज्यपाल द्वारा जिस विधेयक को मंजूरी दी गई है, वह सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके लिए सरकार ने करीब चार महीने पहले सदन में एक बिल पारित कराया था। जिसे राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार था। राज्यपाल ने मंजूरी देने की बजाए बिल को 131 दिनों तक लटका कर रखने के बाद पिछले ही महीने सरकार को वापस लौटा दिया था। तब सरकार ने इसे फिर से सदन से पास कराकर दोबारा से राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा था। दोबारा भेजे गये बिल को भी राज्यपाल ने अपने पास रोक लिया था।
जिस बिल को राज्यपाल द्वारा मंजूरी दी गई है उसकी अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य में ऑनलाइन जुआ और मौका-आधारित ऑनलाइन गेम में भारी रकम खोने के बाद 41 लोगों ने आत्महत्या कर ली है। हालांकि ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के लिए पिछली अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा इसी तरह का कानून बनाया गया था, लेकिन एक अदालत ने इसे रद्द कर दिया था। द्रमुक ने सत्ता में आने के बाद पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति के चंद्रू की अध्यक्षता में विशेष रूप से गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर विधेयक तैयार किया था।
राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित इसके अलावा भी 13 और बिल रोक कर बैठे हैं। बिलों को रोकने और बाहर उनपर टिप्पणी करने के खिलाफ सोमवार को उनके खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया गया। प्रस्ताव पेश करने के थोड़ी ही देर बाद उन्होंने बिल को मंजूरी दे दी।
मुख्यमंत्री एम के स्टालिन द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में राज्यपाल आरएन रवि के कदमों पर गहरा खेद व्यक्त किया गया था। उन्होंने केंद्र सरकार तथा राष्ट्रपति से राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित करने का भी आग्रह किया।
राज्यपाल के खिलाफ बिल पेश करते हुए कहा गया कि ''यह विधानसभा, राज्यपाल द्वारा बिना अनुमति और बिना कोई वाजिब कारण बताए विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोके रखने के विरोध में यह प्रस्ताव पेश करती है। जिन विधेयकों को राज्यपाल द्वारा रोका गया है उन्हें तमिलनाडु की विधानसभा द्वारा पारित किया गया है।
राज्यपाल के खिलाफ पेश किये गये प्रस्ताव में विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों के बारे में उनकी विवादास्पद और सार्वजनिक तौर पर की गई टिप्पणियों की भी आलोचना की गई है। प्रस्ताव में कहा गया है कि वे उनके पद, उनके द्वारा ली गई शपथ तथा राज्य के हितों के अनुरूप नहीं हैं।
प्रस्ताव में राज्यपाल आरएन रवि पर संविधान तथा स्थापित परंपराओं के खिलाफ काम करने और सदन की गरिमा को कम करने, संसदीय लोकतंत्र में विधायिका की सर्वोच्चता को कम करने का आरोप भी लगाया गया है।
पेश किए गये प्रस्ताव में जोर देकर कहा गया है कि "केंद्र सरकार और राष्ट्रपति को एक निर्धारित अवधि के भीतर विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को तत्काल प्रभाव से निर्देश देना चाहिए।”
तमिलनाडु में हुआ यह घटनाक्रम मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चल रही रस्साकसी को ही उजागर कर रहा है। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब संवैधानिक पदों पर बैठे राज्य के सबसे बड़े दो व्यक्तियों के बीच किसी मुद्दे पर लड़ाई हुई हो। आरएन रवि तमिलनाडु का राज्यपाल बनने के बाद से ही विवादों में हैं और अक्सर उनके खिलाफ पोस्टर और नारे लगते रहते हैं।
इससे पहले के घटनाक्रम में राज्यपाल ने सिविल सेवकों के साथ एक बातचीत में कहा था कि राज्यपाल के पास सदन द्वारा पारित किसी भी विधेयक को खारिज करने या मंजूरी देने का अधिकार है। जिसका प्रयोग करते हुए उन्होंने सरकार द्वारा पारित कराये गये विधेयकों को मंजूरी नहीं दी है।
संविधान में किये गए प्रावधानों के अनुसार सदन द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपाल(राष्ट्रपति भी) केवल एक बार ही सरकार के पास दोबारा से विचार करने के लिए लौटा सकता है। अगर सरकार किसी भी विधेयक को संशोधित करके या फिर जस के तस दोबारा से मंजूरी के लिए भेजती है तो फिर राज्यपाल उस विधेयक को मंजूरी देने के लिए बाध्य है। हालांकि मंजूरी के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इसलिए वह चाहे तो उस विधेयक को अपने पास अनिश्चित काल के लिए रख सकता है। लेकिन यह स्थिति अक्सर तब आती है जब सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा हो और राज्यपाल को लग रहा हो कि इस बिल को नई सरकार के आने पर दोबारा से पारित करने की जरूरत हो।