तमिल फ़िल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत की राजनीतिक पार्टी का नाम और चुनाव-चिह्न लगभग तय हो गया है। सूत्रों की मानें तो रजनीकांत की पार्टी का नाम 'मक्कल सेवई कच्ची' होगा। पर वह चुनाव को कितना प्रभावित करेंगे, सवाल यह है।
चुनाव चिह्न मिला
रजनीकांत ने 'दो खुली उंगलियों के साथ हाथ' वाले निशान को अपनी पार्टी का चुनाव-चिह्न बनवाने की कोशिश की। लेकिन चुनाव आयोग ने इसे नहीं माना। इनके बाद रजनीकांत ने 'ऑटो रिक्शा' का प्रस्ताव दिया। सुपरस्टार के करीबियों का दावा है कि ऑटो रिक्शा का निशान मंजूर हो गया है। सुपरहिट फिल्म 'बाशा' में रजनीकांत ने 'रॉक साइन' का इस्तेमाल किया था।
मुट्ठी की सिर्फ दो उँगलियाँ खोलकर हाथ दिखाने की मुद्रा रजनीकांत के चाहने वालों में काफी लोकप्रिय हुई थी। वैसे तो रजनीकांत के कई हावभाव और फिल्मी मुद्राएँ उनके चाहने वालों में काफ़ी लोकप्रिय हैं, लेकिन यह रॉक साइन सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुआ।
'ऑटो रिक्शा'
रजनी ने इस से भी राजनीतिक लाभ उठाने के मक़सद से इसे पार्टी का चुनाव चिह्न बनने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए। बताया जा रहा है कि ऑटो रिक्शा का निशान मिलने से भी रजनीकांत काफी खुश हैं। एक और सुपरहिट फिल्म 'बाशा' में रजनीकांत ने ऑटोचालक का किरदार निभाया था। लोगों ने इस किरदार को सिर आंखों पर बिठाया।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि ग़रीब और मध्यमवर्गीय लोगों को आकर्षित करने में 'ऑटो' का निशान फ़ायदेमंद साबित होगा। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में छह महीने से भी कम समय बचा है, लोगों के दिलोदिमाग में पार्टी के चुनाव चिह्न को रजिस्टर करवाने में कोई दिक्क़त नहीं आएगी।
ऑटो रिक्शा में प्रचार
सूत्रों ने यह भी बताया कि पार्टी के सभी उम्मीदवार ऑटो रिक्शा पर सवार होकर प्रचार करेंगे और मतदाताओं से आसानी से कनेक्ट होंगे।
रजनीकांत इन दिनों हैदराबाद में हैं। वे अपनी नयी फिल्म 'अन्नाते' की शूटिंग जल्द से जल्द ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं। रजनीकांत की कोशिश है कि फ़िल्म की सारी शूटिंग दिसंबर में ही ख़त्म हो जाये, ताकि वे 31 दिसंबर को नयी राजनीतिक पार्टी का ऐलान कर नये साल से चुनाव प्रचार शुरू कर सकें।
राजनीति में खलबली
रजनीकांत के राजनीति में आने की घोषणा से ही तमिलनाडु में सभी राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गयी है। घोषणा के बाद से जिस तरह चाहने वालों ने अपने उत्साह और अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना शुरू किया है, उससे कई राजनेता यह मानने लगे हैं कि रजनीकांत राजनीति में भी चमकेंगे।
समर्थकों ने तमिलनाडु में कई जगह पोस्टर में रजनीकांत की फ़ोटो लगाकर 'तमिलनाडु का अलग मुख्यमंत्री' लिखा है।
इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए लड़ाई डीएमके के स्टालिन और रजनीकांत के बीच है। कई लोग मानते हैं कि हर बार की तरह ही इस बार राज्य के वोटर पार्टी को देखकर नहीं, बल्कि नेता को देखकर पार्टी चुनेंगे।
व्यक्तित्व आधारित राजनीति
पिछले तीन दशकों से तमिलनाडु ने करुणानिधि और जयललिता के बीच सीधी टक्कर देखी थी। इससे पहले एम. जी. रामचंद्रन (एमजीआर) और करुणानिधि के बीच सीधी टक्कर देखी थी। कई वर्षों बाद यह पहला चुनाव है जब तमिलनाडु की राजनीति के तीनों दिग्गज - एमजीआर, जयललिता और करुणानिधि नहीं हैं। इसी वजह से कई विश्लेषकों का कहना है कि इस बार लड़ाई रजनीकांत और स्टालिन के बीच में है।
कुछ विश्लेषक यह भी कहने से नहीं हिचकिचाते हैं कि अगर रजनीकांत राजनीति में नहीं आते तो स्टालिन का मुख्यमंत्री बनना तय था। सत्ताधारी अन्ना डीएमके के पास कोई करिश्माई नेता नहीं है। जयललिता के निधन के बाद से पार्टी की लोकप्रियता लगातार घटी है।
ऐसे में कई विश्लेषकों को यह लगना लाज़मी है कि इस बार लड़ाई रजनीकांत और स्टालिन के बीच है। इस बात में दो राय नहीं कि रजनीकांत के राजनीति में आने से डीएमके की मुश्किलें ही ज़्यादा बढ़ी हैं। रजनीकांत के न आने की स्थिति में डीएमके की राह आसान थी।