कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली में ऑक्सीजन की ज़रूरत पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी दोफाड़ है, इसके सदस्यों की राय साफ रूप से बँटी हुई है।
दिल्ली सरकार से जुड़े सदस्यों की राय एक ओर है तो केंद्र सरकार से जुड़े लोगों की राय बिल्कुल उससे उलट है। नतीजा यह है कि कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट ही बंटी हुई है।
दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (गृह) बी. एस. भल्ला और मैक्स हेल्थकेअर के निदेशक संदीप बुद्धिराज इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने एक बैठक में भाग नहीं लिया, इतना ही नहीं, उन्होंने अपना विरोध जताते हुए औपचारिक असहमति पत्र (लेटर ऑफ़ डिसेंट) भी लगा दिया।
'डिसेंट नोट'
भल्ला ने फ़ाइल पर नोट लिखा, ‘ऐसा लगता है कि अंतरिम रिपोर्ट में कोई ज़रूरी बदलाव किए ब़गैर ही केंद्र सरकार को इसे भेज दिया गया, इसे न तो सदस्यों को दिखाया गया न ही उनकी मंज़ूरी ली गई।’
उन्होंने इसके आगे लिखा, ‘अंतरिम रिपोर्ट के अंत में विरोध और असहमतियाँ दर्ज की गई हैं ताकि भविष्य में लोगों को यह पता लग सके, यह रिपोर्ट पढ़ने वाले पर निर्भर करता है कि वह पूरे रिपोर्ट की व्याख्या किस रूप में करता है और उसका क्या निष्कर्ष निकालता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण और अस्वीकार्य है।’
राजनीति
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जमा की गई अंतरिम रिपोर्ट को सभी सदस्यों की रजामंदी हासिल नहीं है।
इस कमेटी के दूसरे सदस्य एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया, जल शक्ति मंत्रालय के संयुक्त सचिव सुबोध यादव और पीईएसओ के निदेशक डॉक्टर संजय कुमार सिंह हैं।
इस रिपोर्ट पर राजनीतिक जंग छिड़ गई, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के लोगों ने एक दूसरे पर ज़ोरदार हमला बोल दिया।
कोरोना की दूसरी लहर जब अपने चरम पर थी तब यानी अप्रैल-मई में ऑक्सीजन की सबसे अधिक जरूरत अलग-अलग दिखाए जाने की वजह यह थी कि इसके लिए केंद्र और राज्य के अलग-अलग फ़ॉर्मूले थे।
फ़ॉर्मूला
केंद्र सरकार का फ़ॉर्मूला यह था कि ग़ैर-आईसीयू बेड में से सिर्फ आधे पर ऑक्सीजन लगा हुआ था जबकि राज्य सरकार का कहना था कि ग़ैर-आईसीयू के सभी बेड को ऑक्सीजन की ज़रूरत थी।
आईसीयू बेड से साथ ऑक्सीजन की आपूर्ति की व्यवस्था अपने आप होती है, लेकिन ग़ैर-आईसीयू बेड पर रोगी की ज़रूरत के हिसाब से ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है या बढ़ाई जाती है।
केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकार के फ़ॉर्मूले को माना जाय तो ऑक्सीजन की आपूर्ति ज़रूरत से ज़्यादा हो जाएगी।
भल्ला केंद्र के फ़ॉर्मूल को खारिज करते हुए कहते हैं कि असली बात का पता तो ज़मीनी स्तर पर अध्ययन के बाद ही चलेगा।
भल्ला, बुद्धिराज और देव का कहना है कि कमेटी ने छोटे नर्सिंग होम, एंबुलेंस, रीफिल करने वाले और होम आइसोलेशन में पड़े रोगियों की ज़रूरत का ख्याल नहीं रखा।
क्या कहना था केंद्र के लोगों का?
केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों ने सिफ़ारिश की थी कि दिल्ली को रोज़ाना 300 मीट्रिक टन ऑक्सीजन और शाम चार बजे के बाद ज़रूरत के हिसाब से 100 मीट्रिक टन अतिरिक्त ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाए।
दूसरी ओर, दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों ने रोज़ाना 568 मीट्रिक टन ऑक्सीजन देने की सिफ़ारिश की थी।
रिपोर्ट में 13 मई को नोट लिखा गया,
“
इस पर बात हुई थी कि ज़रूरत का चार गुणा ऑक्सीजन माँगा गया था। बेड की संख्या को देखते हुए 289 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आपूर्ति की ज़रूरत थी, लेकिन 1140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन माँगा गया था।
कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट का हिस्सा
भल्ला ने अंत में कहा कि सभी बातों का ख्याल रख कर अंत में पाया गया था कि दिल्ली को रोज़ाना 289 नहीं, बल्कि 474 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की ज़रूरत थी।
मुख्य सचिव देव ने भी लिखा कि ऐसा लगता है कि ‘कमेटी ने सभी बातों का ध्यान नहीं रखा। 550 मीट्रिक टन से ज़्यादा ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ने पर ही एसओएस जारी किया गया था, एक दिन 700 मीट्रिक टन से ज़्यादा की ज़रूरत हो गई थी।’
बुद्धिराज ने अंत में कहा कि ‘ऑक्सीजन की आपूर्ति किसी फ़ॉर्मूले पर नहीं बल्कि वास्तविक ज़रूरत को ख्याल में रख कर की जानी चाहिए।’
रिपोर्ट पर हंगामा क्यों?
बता दें कि इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व पीयूष गोयल सहित कई नेताओं ने केजरीवाल सरकार पर हमला बोल दिया।
सिसोदिया ने कहा है कि इस रिपोर्ट को लेकर बीजेपी के नेता अरविंद केजरीवाल को गालियां दे रहे हैं लेकिन ऐसी कोई रिपोर्ट आई ही नहीं है।
याद दिला दें कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के पीक पर होने के दौरान (अप्रैल-मई 2021) केंद्र सरकार द्वारा किस राज्य को कितनी ऑक्सीजन दी जा रही है, इसे लेकर विवाद खड़ा हुआ था। ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर केंद्र व दिल्ली सरकार के बीच जमकर नोक-झोंक भी हुई थी। ऑक्सीजन की कमी के कारण कई राज्यों में सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।