मणिपुर हिंसा: दो मौतों के बाद फिर तनाव बढ़ा

08:05 am Jun 30, 2023 | सत्य ब्यूरो

पिछले क़रीब दो महीने में भी मणिपुर में हिंसा नहीं रुक पाई है। ताज़ा हिंसा में राज्य में दो लोगों की मौत हो गई। इसके बाद तनाव फिर से बढ़ गया। क़रीब दो हफ्ते तक हिंसा में कमी आई थी या फिर तनाव बढ़ता हुआ नहीं दिखा था। लेकिन दो लोगों की मौत के बाद जमा हुई भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने गुरुवार शाम आंसू गैस के गोले दागे। इसके बाद इम्फाल में भी तब तनाव बढ़ गया जब मृतक के शव राज्य की राजधानी में लाये गये।

प्रदर्शनकारी कर्फ्यू के आदेशों का उल्लंघन करते हुए और न्याय की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए। गुस्साई भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। यहाँ क़रीब दो हफ्ते बाद ऐसी स्थिति आई कि पुलिस को इस तरह की कार्रवाई करनी पड़ी।

रिपोर्ट है कि भारी गोलीबारी के बाद इम्फाल पश्चिम की सीमा पर कांगपोकपी जिले के हरोथेल गांव में मेइती समुदाय के सदस्यों के दो शव बरामद किए गए थे। द इंडियन एक्सप्रेस ने सेना के इनपुट के हवाले से ख़बर दी है कि घटना गुरुवार सुबह कुकी गांव हारोथेल पर हमले के साथ शुरू हुई। इसके बाद कुकी की ओर से जवाबी गोलीबारी हुई। 

दोनों समूहों में झड़प के बाद नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और के मुनलाई में तैनात असम राइफल्स की दो टुकड़ियों को तैनात किया गया और क्षेत्र में भेजा गया। रिपोर्ट के अनुसार, सेना के प्रवक्ता ने कहा, 'घटना स्थल की ओर जाते समय टुकड़ियों पर सशस्त्र दंगाइयों ने गोलीबारी की। किसी भी अतिरिक्त क्षति को रोकने के लिए सैनिकों ने सुव्यवस्थित तरीके से जवाब दिया। सैनिकों की त्वरित कार्रवाई के परिणामस्वरूप गोलीबारी बंद हो गई। अतिरिक्त टुकड़ियों को क्षेत्र में ले जाया गया।' सुबह करीब नौ बजे भारी गोलीबारी थमने के बाद हारोथेल से दो शव बरामद किए गए और घायलों को क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान ले जाया गया।

मणिपुर में 3 मई से मेइती लोगों और एसटी कूकी-ज़ोमी लोगों के बीच लगातार जातीय हिंसा देखी जा रही है। 27 मार्च के विवादास्पद आदेश के खिलाफ एक आदिवासी विरोध के तुरंत बाद हिंसा शुरू हो गई थी। अब तक 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों अन्य घायल हो गए हैं और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं।

समझा जाता है कि हिंसा की वजह मेइती और कुकी समुदायों के बीच तनाव है। कहा जा रहा है कि यह तनाव तब बढ़ गया जब मेइती को एसटी का दर्जा दिए जाने की बात कही जाने लगी।

इसको लेकर हजारों आदिवासियों ने राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में एक मार्च निकाला। इन जिलों में अधिकांश आदिवासी आबादी निवास करती है। यह मार्च इसलिए निकाला गया कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध किया जाए। मेइती समुदाय की आबादी मणिपुर की कुल आबादी का लगभग 53% है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है।

मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं। 

दूसरी ओर, आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है। लेकिन मेइती को एसटी का दर्जा दिए जाने की सिफारिश किए जाने के बाद कुकी लोगों में ग़ुस्सा फूट पड़ा।