आधिकारिक तौर पर अब भी बीसीसीआई ने विराट कोहली से टेस्ट कप्तानी नहीं ली है लेकिन इस बात में अब शायद ही कोई संदेह है कि कप्तान के तौर पर विराट कोहली युग भारतीय क्रिकेट में ख़त्म हो चुका है। बीसीसीआई और भारतीय चयनकर्ताओं ने पहले ही सफेद गेंद की कप्तानी से उनकी अजीबोग़रीब अंदाज़ में विदाई करवा ही दी है और अगर उनकी टेस्ट कप्तानी को एक बात कुछ समय तक और खींच सकती थी तो वो थी साउथ अफ्रीका में पहली बार टेस्ट सीरीज़ में जीत। लेकिन, ऐसा हो ना सका।
इस नतीजे की उम्मीद ना तो भारतीय फैंस को थी ना ही कप्तान कोहली को। कप्तान तो शायद इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने इतने अहम दौरे से पहले सार्वजिनक तौर पर अपने बोर्ड और उसके अध्यक्ष सौरव गांगुली से दो-दो हाथ करने से पीछे नहीं हटे।
कोहली को ये एहसास था कि मौजूदा समय में अफ्रीकी टीम बेहद कमज़ोर है और उनके पास भारतीय इतिहास का सबसे लाजवाब आक्रमण मौजूद है। अगर उनकी टीम टेस्ट सीरीज़ इस बार नहीं जीत सकती तो शायद कोई भी टीम नहीं जीत सकती।
हैरानी की बात है कि इस बार अफ्रीकी दौरे पर कोहली थोड़े बुझे-बुझे हुए दिखे। उनके अंदाज़ में वो उस चिर-परिचित आक्रामकता जो उनकी सबसे बड़ी पहचान बन चुकी है, उसकी कमी दिखी। पूरी सीरीज़ के दौरान कोहली ना सिर्फ बल्लेबाज़ बल्कि कप्तान के तौर पर भी खोये-खोये से ही दिखे। शायद, उन्हें भी इस बात का आभास हो चला है कि भारतीय क्रिकेट में उनकी शख्सियत अब उतनी विराट नहीं रही। हो सकता है कि कोहली के इस नये शांत-रुप में कोच राहुल द्रविड़ का प्रभाव रहा हो लेकिन सीरीज़ ख़त्म होते-होते कोहली एक बार फिर से अपने पूराने रुप में नज़र आये। लेकिन, ये भद्दा नज़ारा रहा।
कोहली की झुंझलाहट
साउथ अफ्रीका के कप्तान डीन एल्गर के ख़िलाफ़ निश्चित तौर पर निर्णय का ख़िलाफ़ जाना काफी मायूस करने वाला रहा लेकिन बावजूद इसके स्टंप्स माइक पर जाकर फब्तियां कसना किसी गली मोहल्ले के कप्तान को भी शोभा नहीं देता, फिर तो ये कोहली थे। शायद, कोहली की झुंझलाहट को सिर्फ उस लम्हें से समझा जा सकता है। कोहली को ये समझ में आ गया कि भारतीय क्रिकेट में उनका ताज इस सीरीज़ हार के साथ ही छिन चुका है।
बल्लेबाज़ के तौर पर उनकी नाकामी कुछ हद तक इसलिए छिप जायेगी क्योंकि अजिंक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा और बुरी तरह से नाकाम रहे हैं। रहाणे और पुजारा तो अब टेस्ट क्रिकेट में एक साथ दिखेंगे ही नहीं।
रहाणे तो निश्चित तौर पर नहीं क्योंकि 2021 की शुरुआत से लेकर अब तक उन्होंने 20 की मामूली औसत से बस किसी तरह से 500 से ज़्यादा रन बनायें हैं। मुमकिन है कि पुजारा ने भी अपना आखिरी टेस्ट खेल लिया हो।
हो सकता है कुछ जानकार ये तर्क दें कि एक साथ इतने अनुभव रखने वाले दो टेस्ट बल्लेबाज़ों को हटाना सही नहीं है लेकिन इस दलील में दम नहीं है। टीम इंडिया के पास जहां कोहली का अनुभव है वहीं रोहित शर्मा और के एल राहुल भी कम अनुभवी बल्लेबाज़ नहीं है। अगर आप भूल गयें हों तो आपको याद दिलाता हूं कि राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ने अपना आखिरी टेस्ट एक साथ जनवरी 2012 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ खेला था।उसके बाद अगले विदेशी दौरे यानि कि 2013 के साउथ अफ़्रीका के दौरे पर रहाणे और पुजारा हीरो बनकर उभरे थे। और तो और 1996 में इंग्लैंड दौरे पर जब द्रविड़ और सौरव गांगुली को एक साथ पहली बार टेस्ट खेलने का मौका मिला तो उसके बाद संजय मांजरेकर और नवजोत सिंह सिद्धू दोबारा टीम इंडिया में कभी नहीं दिखे।
कोहली ने भले ही अपनी प्रेस कांफ्रेस में पुजारा और रहाणे का बचाव किया लेकिन वो ये भी जानते हैं कि अब दुनिया में उनके बल्ले को लेकर भी बहस शुरु हो चुकी है। अगर कोहली को पूराना विराट बल्लेबाज़ ढूंढना है तो शायद उन्हें खुद से टेस्ट की कप्तानी को भी छोड़ना होगा वरना बीसीसीआई तो बस इंतज़ार ही कर रही है कि कैसे उन्हें उनकी गद्दी से उतारा जाय।
2018 में साउथ अफ्रीका में टीम इंडिया के पास सीरीज़ जीतने का शानदार मौक़ा था लेकिन वो पहले 2 टेस्ट हारे और आखिरी में वो एक बेहद ख़राब विकेट पर एक यादगार जीत हासिल करने में कामयाब हुए। सीरीज़ हारने के बावजूद कोहली ने अपनी टीम की जमकर तारीफ की थी। इस बार उनकी टीम ने सीरीज़ में 1-0 की बढ़त ली लेकिन अगले दो टेस्ट में हार का सामना करके कोहली ने ये सुनहरा मौका भी हाथ से जाने ही दिया।
कप्तान के तौर पर कोहली की जीत के आंकड़े क्रिकेट इतिहास के सर्वकालीन महान कप्तानों में से एक क्लाइव लॉयड और रिकी पोटिंग के बेहद करीब हैं लेकिन बिना साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड में टेस्ट सीरीज़ की जीत को भला कोहली की महानता को कौन मानेगा?
कोहली के पास अपने CV में सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ एक शानदार जीत है लेकिन आलोचक तो ये भी कह सकते हैं कि अंजिक्या रहाणे ने दो साल बाद उससे कमज़ोर भारतीय टीम के ज़रिए 2019 से ज़्यादा मज़बूत कंगारुओं को 2021 में मात देने में कामयाबी हासिल की। कहने का मतलब ये है कि टेस्ट कप्तान के तौर पर कोहली के पास अपना गुणगान कराने के लिए बहुत सारी उपल्बधियां तो नहीं हैं।
साउथ अफ्रीका के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ में कोहली अपनी 5 गेंदबाज़ों की रणनीति पर टिके रहे। उन्होंने इस बात से बिलकुल सबक नहीं लिया कि पिछली बार अफ्रीकी दौरे पर उनकी टीम ने सिर्फ एक ही मौके पर 300 का आंकड़ा पार किया था। इस बार भी इत्तेफाक से सिर्फ भारतीय बल्लेबाज़ों ने एक ही मौके पर 300 का आंकड़ा पार किया।जब अनुभवी मिड्ल ऑर्डर बुरी तरह से आउट ऑफ फॉर्म में दिख रहा था तो एक अतिरिक्त बल्लेबाज़ को प्लेइंग इलेवन में शामिल करने की बजाए कोहली ने कप्तान के तौर पर मज़बूत दिखने वाली गेंदबाज़ी आक्रमण को ही और मज़बूत करना क्यों सही माना? ये सवाल उन्हें अब हमेशा शायद परेशान करे।