निकहत ज़रीन ने महिला बॉक्सिंग विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया। लेकिन क्या इस ऐतिहासिक जीत तक पहुँचने की कहानी इतनी सरल और आसान रही है जितनी कि एक वाक्य में उनकी उपलब्धि को कह देना भर? निकहत ज़रीन के पिता की मानें तो ऐसे परिवार में बॉक्सिंग जैसा खेल खेलना और खेल के अनुसार कपड़े पहनने का काम भी कम चुनौती भरा नहीं रहा है।
ज़रीन के परिवार के सामने भी ऐसी चुनौतियाँ आईं। इस खेल में लड़कियों को शॉर्ट्स और ट्रेनिंग शर्ट पहनने की आवश्यकता होती है, जमील परिवार के लिए यह आसान नहीं था। और इसी कारण ज़रीन के पिता कहते हैं कि वर्ल्ड चैंपियनशिप में ज़रीन की जीत से लोगों को प्रेरणा मिलेगी। प्रेरणा मिलेगी परंपरागत विचारों और तौर-तरीकों से आगे बढ़ने की।
निकहत ज़रीन हैदराबाद के निज़ामाबाद की हैं। उनके पिता मोहम्मद जमील ने अपनी बेटी को एक ऐसे खेल में प्रवेश करने से हतोत्साहित नहीं किया, जिसमें 2000 के दशक के अंत में महिला मुक्केबाज निज़ामाबाद या हैदराबाद में प्रतिस्पर्धा करती नहीं दिखती थीं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' को ज़रीन के पिता मोहम्मद जमील ने बताया, 'जब निकहत ने हमें बॉक्सर बनने की अपनी इच्छा के बारे में बताया तो हमारे मन में कोई झिझक नहीं थी। लेकिन कभी-कभी, रिश्तेदार या दोस्त हमें कहते थे कि एक लड़की को ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए जिसमें उसे शॉर्ट्स पहनना पड़े। लेकिन हम जानते थे कि निकहत जो चाहेगी, हम उसके सपने का समर्थन करेंगे।'
जमील ने अख़बार से कहा, 'विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतना एक ऐसी चीज है जो मुसलिम लड़कियों के साथ-साथ देश की प्रत्येक लड़की को जीवन में बड़ा हासिल करने का लक्ष्य रखने के लिए प्रेरणा का काम करेगी। एक बच्चा, चाहे वह लड़का हो या लड़की, को अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है और निकहत ने अपना रास्ता खुद बनाया है।'
निकहत की तीन बहनें हैं। दो डॉक्टर हैं और एक सबसे छोटी बैडमिंटन खेलती हैं। मोहम्मद जमील कहते हैं कि निकहत को बॉक्सिंग में प्रेरणा के लिए उसे घर से बाहर पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। निकहत के चाचा समसमुद्दीन के बेटों एतेशामुद्दीन और इतिशामुद्दनी भी मुक्केबाज थे और इस वजह से उसे परिवार के दायरे से बाहर प्रेरणा की तलाश नहीं करनी पड़ी।
निकहत 2011 में विश्व युवा चैंपियन बनी, लेकिन सीनियर स्तर पर पहुँचने में समय लगा। 2016 में हरिद्वार में सीनियर स्तर पर मनीषा को फ्लाईवेट वर्ग में हराकर अपना पहला सीनियर राष्ट्रीय खिताब जीता था। 2012 के लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता मैरी कॉम भी उसी श्रेणी में प्रतिस्पर्धा कर रही थीं, सीनियर स्तर पर निकहत के लिए यह आसान नहीं था। लेकिन 2017 में कंधे की चोट के कारण वह एक साल के लिए राष्ट्रीय शिविर से बाहर थीं। इस वजह से उनका खेल प्रभावित हुआ।
2014 से निकहत को प्रशिक्षित करने वाले साई के पूर्व कोच इमानी चिरंजीवी का कहना है, 'निकहत की सबसे बड़ी ताकत उनकी इच्छा शक्ति और एक समझदार मुक्केबाज बनने की क्षमता रही है जो खेल को अच्छी तरह से समझती हैं। कब मुक्का मारना है, कब मुक्का रोकना या कम मुक्के को चकमा देना है, ऐसी चीजें स्वाभाविक रूप से उनको आती हैं और उनका दिमाग हमेशा मुकाबलों के दौरान भी विचार करने की स्थिति में रहता है।'